Assembly Election: जीत का एक ही मंत्र लाभार्थी, लेकिन खजाने की सेहत का क्या

महाराष्ट्र-झारखंड चुनावों के नतीजों से साफ है कि अब चुनावों में जीत का मंत्र लाभार्थी हो गया है. यानी सीधे अकाउंट में जो पैसा पहुंच रहा है, वह वोटरों को भा रहा है. पार्टी कोई भी वो वोटरों को ये फॉर्मूला पसंद आ रहा है.

चुनाव का सबसे बड़ा फैक्टर लाभार्थी Image Credit: Money 9

Maharashtra, Jharkhand Assembly Election:नवंबर 2023 में जब मध्य प्रदेश विधान सभा चुनावों में भाजपा की बंपर जीत मिली, तो तत्तकालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरू की गई ला़डली बहन योजना को सबसे बड़ा फैक्टर माना गया था.उस जीत ने लगता है आगे के लिए नजीर पेश कर दी है, और अब चुनाव में जीत का सबसे बड़ा फैक्टर कैश योजनाएं हो गई हैं. यानी ऐसी योजनाएं जिनसे राज्य के लोगों को हर महीने कैश के रुप में पैसा मिलता है.

अब अगर महाराष्ट्र और झारखंड चुनावी नतीजों को देखा जाए तो उसमें भी यही कैश योजनाएं बड़ा फैक्टर बनी हैं. लेकिन कैश देकर इनडायरेक्टली वोट पाने का यह तरीका राज्यों की आर्थिक सेहत को बिगाड़ सकता है. खास तौर से छोटे राज्यों में इसका ज्यादा असर हो सकता है. सबसे पहले बात महाराष्ट्र की करते है…

लोक सभा नतीजों के बाद आई लाडकी बहीण योजना

असल में जब लोक सभा चुनाव के नतीजे जून 2024 में आए तो भाजपा को यूपी के बाद महाराष्ट्र में ही सबसे बड़ा झटका लगा था. चुनाव में भाजपा को 48 में से केवल 9 सीटें मिली थी. और को NDA केवल 17 सीटें ही मिली. उसके बाद वोटरों में पैठ बनाने के लिए एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने 28 जून 2024 को मुख्यमंत्री लाडकी बहीण योजना शुरू करने को मंजूरी दी थी. इस योजना के जरिए महाराष्ट्र में 21- 65 साल की पात्र महिलाओं को 1,500 रुपये की आर्थिक सहायता दी जा रही है. और इस योजना का लाभ सीधे डीबीटी द्वारा महिलाओं को उनके खाते में दिया जा रहा है.

यही नहीं पात्र महिलाओं को दिवाली बोनस 2024 पहल के जरिए चौथी और पांचवीं किस्त के भुगतान के रूप में 3,000 रुपये सीधे उनके बैंक खातों में जमा किए गए. इसके अलावा चुनावी घोषणा पत्र में राज्य सरकार ने 2100 रुपये देने का भी वादा कर दिया. और अब नतीजे और महिलाओं के बढ़े वोट प्रतिशत से साफ है कि योजना महायुति के लिए कमाल कर गई है. एक अनुमान के मुताबिक केवल इस योजना पर नई सरकार को 63000 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. जबकि दूसरे वादों को पूरा करने में कुल मिलाकर करीब एक लाख करोड़ का खर्च बढ़ जाएगा. अब सवाल उठता है कि क्या ये खर्च महाराष्ट्र की सेहत के लिए अच्छा होगा.

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इसे समझने से पहले केंद्रीय नितिन गडकरी का हालिया बयान देखना चाहिए. उन्होंने नागपुर के एक कार्यक्रम में कहा था कि लाडकी बहीण योजना में पैसा देने के लिए सब्सिडी में कटौती हो सकती है. यानी सरकार के खजाने पर असर हो रहा है. ऐसा इसलिए है कि जो वादे किए जा रहे हैं, उसके अनुसार राज्य की कमाई नहीं हो रही है. चिंता की बात इसलिए हैं क्योंकि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने कुछ समय पहले महाराष्ट्र की वित्तीय स्थिति को लेकर चेतावनी जारी की थी. इसलिए महायुति के ऐलान किए गए वादों को पूरा करने में राज्य सरकार के खजाने पर दबाव बढ़ सकता है. राज्य को सात साल में 2.75 लाख करोड़ रुपये का कर्ज चुकाना है.

हालांकि महाराष्ट्र ने अब तक अपनी राजकोषीय स्थिति को बेहतर बना रखा है. जो कि पिछले तीन वर्षों से 3 प्रतिशत से कम राजकोषीय घाटा है. लेकिन लोगों की इनकम बढ़ोतरी के मामले में राज्य पिछड़ता जा रहा है. साल 2019-20 से 2023-24 के बीच, प्रति व्यक्ति आय की सालाना वृद्धि दर (CAGR) 2.99 प्रतिशत रही. जो राष्ट्रीय औसत के CAGR 3.11 प्रतिशत से पीछे है. इसी तरह गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक ने प्रति व्यक्ति ग्रोथ के मामले में राज्य को पीछे छोड़ दिया है. जाहिर है कि नई सरकार के सामने वादों को पूरा करने से पहले खजाने पर भी ध्यान रखना होगा.

झारखंड की सेहत ज्यादा खराब

महाराष्ट्र जैसी जीत झारखंड में भी दिखी है, बस गठबंधन बदल गया है. और वहां पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व कर रहे हेमंत सोरेन ने भी महाराष्ट्र जैसा ही दांव चला था. सोरेन सरकार ने मईयां सम्मान योजना चला रखी है.इसके तहत योजना में पात्र महिला को 1000 रुपये कैश ट्रांसफर मिलता है. और चुनाव में वादा किया गया था कि हेमंत सरकार इसे बढ़ाकर 2500 रुपये कर देगी. यह कितनी कारगर होगी इसे जमदेशदपुर में एक परिवार में काम करने वाली बाई के बयान से समझा जा सकता है. उनसे पूछा गया कि किसे वोट देंगी तो उन्होंने कहा कि सोरेन को देंगे, क्योंकि अभी 1000 रुपये मिल रहा है फिर 2500 मिलेगा.

महिला वोट बैंक इतना सशक्त हो गया है कि राज्य सरकार करीब 11000 करोड़ रुपये सालाना विभिन्न योजनाओं पर खर्च कर रही है. लेकिन क्या राज्य की सेहत इसे करने के लिए मुफीद है तो इसे कुछ आंकड़ों से समझते हैं. झारखंड को अधिक गंभीर राजकोषीय दबावों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि पिछले तीन वर्षों से उसका लोन और GSDP अनुपात लगातार 30 प्रतिशत से ऊपर रहा है. इसी तरह झारखंड की प्रति व्यक्ति आय करीब 65000 रुपये है. जो देश में बिहार, उत्तर प्रदेश और मणिपुर जैसे कम आय वाले राज्यों की लिस्ट में है.

ये तो मौजूदा चुनावी राज्यों की कहानी है लेकिन अब जरा कर्नाटक की बात कर लेते हैं, जहां पर इसी तरह के लोक लुभावन वादों के साथ मौजूदा यूपीए सरकार चल रही है. और कुछ महीने पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे खुद नसीहत दे चुके हैं कि वादे उतने ही किए जाए जितने पूरे किए जा सके. साफ है कि नेताओं के सामने सभी नजीरें मौजूद हैं, लेकिन जब अमल की बात आती है तो केवल येन-केन प्रकारेण वोट ही नजर आता है.