महाराष्ट्र नतीजे ठाकरे-पवार युग का अंत? वोटरों ने दिया बड़ा संदेश
दशकों से महाराष्ट्र की सियासत ठाकरे और पवार परिवार के इर्द-गिर्द केंद्रित रही है. यह पहली बार है, जब महाराष्ट्र की जनता ने दोनों पावरफुल परिवारों को लेकर ऐसे स्पष्ट संकेत दिए हैं, जो महाराष्ट्र के सियासी भविष्य का आकार तय कर सकते हैं. क्या ये नतीजे उद्धव ठाकरे और शरद पवार का सियासी सूर्यास्त हैं?
महाराष्ट्र के सियासी ताने-बाने में पिछले कई दशकों से ठाकरे और पवार परिवार सबसे मजबूत कड़ियां रही हैं. जहां, बाल ठाकरे ने शिवसेना को मराठा अस्मिता और हिंदुत्व के दो कोर पिलर्स पर खड़ा किया. वहीं, शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को जातिगत और ओबीसी आरक्षण व गन्ना किसानों के मुद्दों की लड़ियों से गुंथा. 1966 में स्थापित शिवसेना और 1999 में बनी एनसीपी लगभग एक ही समय में दो फाड़ हो गईं. ये पार्टियां सिर्फ टूटीं, तो इनके केंद्र में रहे परिवारों की ताकत भी बिखर गई.
2014 के डायनेमिक्स ने बदला खेल
2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 122 सीट जीतकर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. लेकिन, अकेले के दम पर सरकार नहीं बना पाई. भाजपा को उम्मीद थी कि उद्धव ठाकरे समर्थन देंगे. लेकिन, सभी को चौंकाते हुए शरद पावर ने भाजपा को बाहर से समर्थन देने का ऐलान किया. जबकि, ठाकरे हिचकिचाहट में रह गए. बाद में जब भाजपा और एनसीपी के बीच वैचारिक टकराव बढ़ा, तो ठाकरे सरकार में शामिल हुए. यहां से ही ठाकरे और पवार परिवार की सियासी पकड़ कमजोर होने लगी.
कोर से भटके तो दरकते चले गए
2014 के बाद ऐसे सियासी डायनेमिक्स बने की पार्टियां विचारधारा और अपने कोर इश्युज को दरकिनार कर दोनों पार्टी जैसे-तैसे सत्ता में शामिल होने और प्रासंगिक बने रहने के लिए संघर्ष करती दिखीं. 2019 के चुनाव में भाजपा और शिवसेना प्री-पोल अलायंस में साथ-साथ चुनाव लड़े. नतीजों के बाद उद्धव ठाकरे सीएम बनने के लिए अड़ गए. बात नहीं बनी, तो कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाई. ठाकरे और पवार के लिए यह दाव तब भारी पड़ गया, जब वैचारिक आधार पर उनकी पार्टियां दो फाड़ हो गईं. एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में जहां शिवसेना ने उद्धव ठाकरे को उनके पिता की खड़ी की पार्टी से बाहर धकेल दिया. दूसरी तरफ अजित पावर ने अपने चाचा शरद पावर को उनकी बनाई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से बाहर कर दिया.
क्या थे दोनों दलों के कोर पिलर
शिवसेना के लिए मराठा अस्मिता और हिंदुत्व दो कोर पिलर थे. जब उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के साथ सरकार बनाई, तो पार्टी के वोटर्स के लिए यह बड़ा झटका था. बाल ठाकरे ने पूरी जिंदगी कांग्रेस के खिलाफ काम किया. कांग्रेस की नीतियों की आलोचना की और कांग्रेस को हिंदू विरोधी दल बताते रहे. जब उद्धव ठाकरे ने सीएम बनने के लिए उसी कांग्रेस से हाथ मिलाया, तो पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता और परंपरागत वोटर्स ने खुद को ठगा हुआ पाया. इसी तरह शरद पवार, जिन्होंने कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी खड़ी की वे भी सिर्फ सत्ता के लिए कांग्रेस और वैचारिक रूप से पूरी तरह दूसरे किनारे पर खड़ी शिवसेना के साथ आए.
लैगेसी से बड़ी आईडियोलॉजी
इस बार नतीजों ने यह संकेत दे दिया है कि जनता और खासतौर पर पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता व कोर वोटर्स के लिए लैगेसी से बड़ी आईडियोलॉजी है. अक्सर चुनाव के बाद राजनीतिक दल जनादेश को अपनी जागीर समझ लेते हैं. इस लिहाज से जनता का यह साफ संदेश है कि जो दल सत्ता वैचारिक जमीन छोड़कर सत्ता के लिए बेमेल गठबंधन के दलदल में जाते हैं, वे असल में सत्ता और जनता दोनों से दूर हो जाते हैं.
नजीतों में दिखा जनता का फैसला
शिंदे गुट की शिवसेना ने 81 सीटों पर चुनाव लड़, जिनमें से 56 सीटों पर लीड कर रही है. वहीं, उद्धव की शिवसेना ने 95 सीटों चुनाव लड़ा जिनमें से सिर्फ 17 सीटों पर आगे है. इस तरह चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के बाद अब जनता ने भी मान लिया है कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली पार्टी ही असली शिवसेना है. यही स्थिति एनसीपी की है. अजित पवार के गुट को चुनाव आयोग ने असली पार्टी माना है. जनता ने भी इसकी तस्दीक कर दी है. अजित गुट की एनसीपी ने 52 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से 36 पर आगे है. वहीं, शरद पवार गुट की पार्टी ने 86 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 11 सीटों पर आगे है.
किस पार्टी का कितना स्ट्राइक रेट
पार्टी | सीटों पर चुनाव लड़े | सीटों पर आगे | स्ट्राइक रेट |
भाजपा | 149 | 130 | 87% |
शिवसेना शिंदे | 81 | 55 | 67% |
एनसीपी अजित | 59 | 40 | 67% |
कांग्रेस | 101 | 20 | 19% |
शिवसेना यूबीटी | 95 | 19 | 20% |
एनसीपी शरद | 86 | 11 | 12% |