11 Ian 2025
VIVEK SINGH
कुम्भ मेला दुनिया की सबसे बड़ी शांतिपूर्ण सभा है. हर साल लाखों लोग इस पवित्र आयोजन में भाग लेने के लिए एक साथ आते हैं. जब इतने लोग एक साथ एक स्थान पर होते हैं, तो यह एक अद्भुत दृश्य होता है.
कुम्भ मेला के चार प्रकार होते हैं. महा कुम्भ हर 144 साल में एक बार, पूर्ण कुम्भ हर 12 साल में, अर्ध कुम्भ हर 6 साल में, और माघ मेला हर साल प्रयागराज में होता है. हर प्रकार का कुम्भ अलग-अलग महत्व रखता है.
कुम्भ मेला एक पौराणिक मान्यता से जुड़ा हुआ है. माना जाता है कि जब देवता और राक्षसों ने समुद्र मंथन किया था, तब अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों पर गिरीं. इन्हीं स्थानों पर कुम्भ मेला आयोजित होता है.
महा कुम्भ का समय सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की स्थिति पर आधारित होता है. यह पूरी तरह से ग्रहों की स्थिति पर निर्भर है, जिससे इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है.
कुम्भ मेला को UNESCO ने "मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर" के रूप में मान्यता दी है. यह इसे एक महत्वपूर्ण और विश्व स्तर पर आयोजन बनाता है.
कुम्भ मेला में बहुत सारे साधु, संत और नागा साधु अपनी विशेष साधनाओं के साथ हिस्सा लेते हैं. इनकी जीवनशैली और दिखावट भी दर्शकों को बहुत आकर्षित करती है.
कुम्भ मेला में गंगा, यमुन और सरस्वती के संगम में स्नान करने से पाप खत्म हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसे बहुत महत्व दिया जाता है और लाखों लोग इसे अपनाते हैं.
कुम्भ मेला से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी फायदा होता है. इस दौरान रोजगार के कई अवसर पैदा होते हैं, जिससे पर्यटन, होटल, परिवहन और अन्य व्यवसायों को बढ़ावा मिलता है.
कुम्भ मेला के लिए एक अस्थायी शहर बनाया जाता है, जिसमें सभी आधुनिक सुविधाएं जैसे अस्पताल, शौचालय और सुरक्षा इंतजाम होते हैं. इस शहर को हर बार एक नया रूप दिया जाता है, ताकि लाखों लोग आराम से इस पवित्र आयोजन का हिस्सा बन सकें.