मंदिर में नंगे पैर चलने  के पीछे का साइंस

01 April 2025

Pratik Waghmare

मंदिरों में नंगे पैर चलना भारत समेत कई संस्कृतियों में पुरानी परंपरा है. इसे अक्सर धार्मिक आस्था और पवित्रता से जोड़ा जाता है, लेकिन आधुनिक विज्ञान ने भी इस प्रथा के कई शारीरिक और मानसिक लाभ खोजे हैं.

मंदिर और परंपरा

मंदिरों में पत्थर या संगमरमर जैसी प्राकृतिक  सतहों पर नंगे पैर चलने से हमारा शरीर धरती की प्राकृतिक ऊर्जा से जुड़ता है. इसे 'अर्थिंग' या 'ग्राउंडिंग' कहा जाता है. इससे नेगेटिविटी, सूजन, तनाव कम होता है और नींद अच्छी आती है.

अर्थिंग का विज्ञान

आयुर्वेद और एक्यूप्रेशर के अनुसार, हमारे पैरों के तलवे पर कई प्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जो शरीर के अलग-अलग अंगों से जुड़े होते हैं. जब हम असमान या ठंडे पत्थर पर चलते हैं, तो ये पॉइंट्स सक्रिय होते हैं, जिससे पाचन, मस्तिष्क, रक्त संचार मजबूत होता है.

एक्यूप्रेशर

जब हम नंगे पैर चलते हैं, तो हमारा रूट चक्र  (मूलाधार चक्र) सक्रिय होता है. यह हमें धरती से  जोड़ता है, जिससे शारीरिक स्थिरता और भावनात्मक संतुलन बढ़ता है.  

रूट चक्र

मंदिरों की विशेष वास्तुकला से निकलने वाली कॉस्मिक ऊर्जा पैरों के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करती है. यह चक्रों को पुनर्संतुलित करने और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ाने में मदद करता है.

एनर्जी गेट-वे

मंदिरों में पत्थर के फर्श विशेष रूप से इस तरह बनाए जाते हैं कि वे शरीर को ठंडक प्रदान करें. जब पैर इन पर चलते हैं, तो नर्वस सिस्टम शांत होता है और मन स्थिर होता है.

शांत और ठंडक

नंगे पैर चलना मंदिर की पवित्रता के प्रति सम्मान व्यक्त करता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि जूते बाहरी दुनिया की अशुद्धियां लाते हैं, इसलिए उन्हें मंदिर के बाहर छोड़ना होता है. यह भौतिक चिंताओं को पीछे छोड़ने और मंदिर में पूरी श्रद्धा के साथ प्रवेश करने का संकेत भी है.

सम्मान का प्रतीक 

मंदिरों में नंगे पैर चलने की परंपरा केवल आस्था का हिस्सा नहीं बल्कि एक विज्ञान आधारित प्रक्रिया भी है,  जो शरीर और मन को ऊर्जा, स्थिरता और शांति प्रदान करती है.

आस्था और विज्ञान