07 April 2025
Tejaswita Upadhyay
बढ़ते टेक्नोलॉजी के साथ अब ऐसी घड़ी आई है जो सेल या बैटरी से नहीं पल्कि आपके पसीने से चार्ज हो जाएगी. दरअसल, तकनीक शरीर से निकलने वाले पसीने में मौजूद लैक्टेट जैसे जैव-रासायनिक तत्वों से बिजली उत्पन्न करने पर आधारित है. बायोफ्यूल सेल्स पसीने में मौजूद एंजाइम्स की मदद से रासायनिक ऊर्जा को इलेक्ट्रिकल ऊर्जा में बदलते हैं.
अभी तक के प्रोटोटाइप केवल कुछ मिलीवॉट तक बिजली बना सकते हैं, जो छोटे डिवाइस जैसे हेल्थ बैंड, सेंसर, या स्मार्टवॉच को अस्थायी रूप से पावर दे सकते हैं. यह स्मार्टफोन जैसी हाई-पावर डिवाइस को चार्ज करने में फिलहाल सक्षम नहीं है.
बिजली उत्पादन की क्षमता
University of California San Diego (UCSD), Tokyo University of Science, और Deakin University जैसे संस्थान इस तकनीक पर अग्रणी शोध कर रहे हैं. UCSD ने एक फिंगर रैप डिवाइस और Deakin University ने एक MXene आधारित स्किन पैच बनाया है.
प्रमुख शोध संस्थान
इस तकनीक में न तो कोई बैटरी बदलनी होती है, न ही बार-बार चार्जिंग की जरूरत होती है. यह पूरी तरह से self-sustainable और पर्यावरण के अनुकूल (eco-friendly) मानी जा रही है.
इको-फ्रेंडली और टिकाऊ
यह तकनीक हेल्थ ट्रैकिंग, फिटनेस सेंसर, सैन्य उपकरण, इमरजेंसी सर्वाइवल डिवाइस और IoT आधारित छोटे सेंसरों में उपयोगी हो सकती है. जहां चार्जिंग संभव नहीं होती वहां यह काफी कारगर सिद्ध हो सकती है.
कहां कर सकते हैं इस्तेमाल
फिलहाल यह तकनीक प्रयोगशाला स्तर तक सीमित है और वाणिज्यिक उत्पाद के रूप में उपलब्ध नहीं है. हालांकि आने वाले 5–10 वर्षों में यह फिटनेस और हेल्थकेयर मार्केट में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है.
उपलब्धता
जैसे-जैसे बायोफ्यूल सेल्स की दक्षता बढ़ेगी, यह तकनीक ज्यादा एनर्जी प्रोज्यूस कर पाएगी और संभव है कि भविष्य में मोबाइल फोन जैसे बड़े उपकरणों को भी चार्ज कर सके.
भविष्य की संभावनाएं