मिर्च की फसल पर ‘ब्लैक थ्रिप्स’ का अटैक, हरियाणा सहित इन राज्यों में भारी नुकसान की संभावना

ब्लैक थ्रिप्स एक तरह का कीट है, जो फलों के रस को चूसने का काम करता है. फसलों पर इसके आक्रमण से फूल पौधों से गिर जाते हैं. इससे उपज प्रभावित होती है. वहीं, इस कीट से फसल को बचाने के लिए किसान कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे इनपुट लागत बढ़ गई है.

मिर्च की फसल में लगी नई बीमारी. (सांकेतिक फोटो) Image Credit: tv9

मिर्च उत्पादक किसानों के लिए ‘ब्लैक थ्रिप्स’ फिर से कहर बनकर सामने आया है. कहा जा रहा है कि एक साल के बाद फिर से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ इलाकों में इसका आतंक देखने को मिल रहा है. इससे मिर्च की फसलों को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है. खास बात यह है कि कर्नाटक के बल्लारी और आंध्र प्रदेश के रायलसीमा के कुछ हिस्सों में मिर्च की फसल पर ‘ब्लैक थ्रिप्स’ का असर कुछ ज्यादा ही है. वहीं, हरियाणा में भी मिर्च उत्पादक किसानों से इस संक्रण की शिकायतें मिली हैं. दरअसल, ब्लैक थ्रिप्स एक तरह का कीट है, जो फलों के रस को चूसने का काम करता है. फसलों पर इसके आक्रमण से फूल पौधों से गिर जाते हैं. इससे उपज प्रभावित होती है.

द बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड (जीएवीएल) के फसल संरक्षण व्यवसाय के सीईओ एनके राजावेलु ने कहा कि कर्नाटक में ब्लैक थ्रिप्स का संक्रमण बढ़ रहा है. खासकर मौजूदा फसल सीजन में बल्लारी के मिर्च उगाने वाले इलाकों में इसका असर ज्यादा देखने को मिल रहा है. बल्लारी के आसपास के फसल वाले इलाकों का करीब 60-70 फीसदी हिस्सा ब्लैक थ्रिप्स से संक्रमित है. यह जिला कर्नाटक का एक प्रमुख मिर्च उत्पादक क्षेत्र है, जहां गुंटूर की तीखी किस्मों और पाउडर बनाने में इस्तेमाल होने वाली संकर किस्मों की बड़े स्तर पर खेती की जाती है.

काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में कीटों का ज्यादा प्रकोप

हालांकि, राजावेलु ने कहा कि देश के मुख्य मिर्च उगाने वाले राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में, जहां फसल अभी शुरुआती अवस्था (35-50 दिन) में है, कीटों के संक्रमण की सूचना नहीं मिली है, लेकिन इन राज्यों में उत्पादक निवारक स्प्रे का इस्तेमाल कर रहे हैं. बल्लारी के हागरी में आईसीएआर-कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख गोविंदप्पा एमआर ने पुष्टि की कि पिछले साल की तुलना में इस साल जिले में ब्लैक थ्रिप्स का प्रकोप अधिक है. काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में इसका प्रकोप अधिक है और किसान इस कीट से निपटने के लिए सप्ताह में कम से कम दो बार छिड़काव कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि केवीके कीट से निपटने के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन पैकेज और जैव एजेंटों और जैव संघों के उपयोग के बारे में जागरूकता पैदा कर रहा है.

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बड़े पैमाने पर फसल का नुकसान

हम्पाली ट्रेडर्स के बसवराज हम्पाली ने कहा कि उत्पादक और व्यापार सतर्क हैं और फसल के विकास पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं. उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में कोई भी बेमौसम बारिश संक्रमण को बढ़ा सकती है. साल 2021-22 के फसल सत्र के दौरान प्रकोप के बाद से ही मिर्च उत्पादकों और व्यापार के लिए ब्लैक थ्रिप्स चिंता का विषय रहा है, क्योंकि संक्रमण के फैलने से बड़े पैमाने पर फसल का नुकसान हुआ है.

कीटनाशकों के इस्तेमाल से बढ़ गई लागत

जोधपुर में साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर (SABC) के संस्थापक निदेशक भागीरथ चौधरी ने कहा कि मिर्च के काले थ्रिप्स ने भारत के मिर्च उगाने वाले सभी क्षेत्रों में अपना पैर जमा लिया है, जिससे मिर्च के उत्पादन में काफी नुकसान हुआ है. जबकि किसानों द्वारा दो दर्जन से अधिक कीटनाशकों का छिड़काव किया गया है, जिस पर प्रति एकड़ कम से कम ₹8,000-10,000 का अतिरिक्त खर्च आया है.

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