बजट से पहले वित्त मंत्री और किसानों की बैठक, PM-Kisan और MSP जैसे मुद्दों पर क्या-क्या बातचीत हुई?
Farmers Demand: किसानों ने बजट से पहले वित्त मंत्री के साथ बैठक की, इसमें वित्त और कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी, किसान उत्पादक कंपनियों, कृषि संगठनों और कॉरपोरेट जगत के प्रतिनिधि मौजूद थे. यहां कर्ज, टैक्स नें कटौती, PM Kisan योजना, MSP समेत कई मांगें रखी गईं.
2025 में बजट पेश होने से पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार, 7 दिसंबर को किसानों और कृषि विशेषज्ञों के साथ एक बैठक की. इस दौरान किसानों ने सरकार के सामने कई अहम मांगें रखीं हैं. किसानों ने कर्ज, टैक्स और PM-KISAN योजना को लेकर अपनी मांगें रखी और सरकार से अपील की है. बैठक में वित्त और कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी, किसान उत्पादक कंपनियों, कृषि संगठनों और कॉरपोरेट जगत के प्रतिनिधि मौजूद थे.
कर्ज को लेकर मांग
- किसानों ने सरकार से कर्ज को लेकर अपनी मांग में कहा कि कृषि के लिए मिलने वाले लोन पर लगने वाली ब्याज दर को घटाकर केवल 1 फीसदी किया जाना चाहिए.
- इसके अलावा, PM-KISAN योजना के तहत मिलने वाली राशि को डबल करने की भी अपील की यानी राशि को 6,000 से बढ़ाकर 12,000 करने की सिफारिश की गई है.
- इस बैठक में छोटे किसानों के लिए जीरो प्रीमियम फसल बीमा की वकालत भी की गई है.
टैक्स में कटौती की मांग
- टैक्स को लेकर कृषि उपकरण, खाद, बीज और दवाइयों पर GST छूट की अपील की गई है.
- कीटनाशकों पर GST 18 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी करने की मांग की गई है.
- नकली और तस्करी किए गए कीटनाशकों की बिक्री पर सख्ती की बात भी सामने आई है.
भारतीय कृषक समाज के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ ने बताया कि हर साल 1,000 करोड़ का निवेश चना, सोयाबीन और सरसों जैसी फसलों पर किया जाना चाहिए. इस निवेश से फसल उत्पादन बढ़ेगा, आयात पर निर्भरता कम होगी.
MSP को लेकर मांग
- वहीं न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP को लेकर तय करने में जमीन का किराया, खेती के श्रम का खर्च, और कटाई के बाद की लागत को शामिल करने की मांग की गई है.
- MSP को केवल 23 फसलों तक सीमित न रखकर इसे अधिक फसलों पर लागू करने की अपील की गई है.
- मंडी इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने और कृषि उपकरणों की कीमतें ऑनलाइन दिखाने की बात भी कही गई है.
इसके अलावा कृषि को संविधान की कॉन्करेंट लिस्ट में जोड़ने का सुझाव दिया गया है. इसका मतलब अभी कृषि का मामला पूरी तरह से राज्य सरकार के हाथ में होता है. कृषि को कॉन्करेंट लिस्ट में शामिल करने से ये मामला राज्य और केंद्र सरकार दोनों का मामला बन जाएगा. वहीं एक केंद्रीय भारतीय कृषि सेवा शुरू करने का भी प्रस्ताव रखा गया है.