नए साल में किसानों की जेब पर बढ़ने वाला है बोझ, 1 जनवरी से महंगी हो सकती है ये खाद, जानें वजह

यूरिया के बाद देश में दूसरा सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला उर्वरक डीएपी ही है. इसका एक बैग करीब 50 किलो वजन का होता है. कहा जा रहा है कि कीमतों पर अनौपचारिक सीमा हटा दी गई है. साथ ही कंपनियों को कीमतों में 10 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी करने की अनुमति दी गई है.

1 जनवरी से महंगी हो सकती है डीएपी खाद. Image Credit: Freepik

नए साल में किसानों की जेब पर बोझ बढ़ने वाला है. 1 जनवरी 2025 से डाय-अमोनिया फॉस्फेट (डीएपी) महंगी हो जाएगी. इसकी कीमत में कम से कम 12 से 15 फीसदी तक बढ़ोतरी की बात कही जा रही है. अगर ऐसा होता है, तो 1 नजवरी से किसानों को एक बैग डीएपी के लिए 1550 रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं. हालांकि, अभी 50 किलो के एक डीएपी बैग की कीमत 1,350 रुपये है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 4 साल के अंतराल के बाद डीएपी की कीमत में बढ़ोतरी होने की संभावना है. इसकी कीमत 1,350 रुपये प्रति बैग से बढ़कर 1550-1590 रुपये प्रति बैग हो जाएगी. संशोधित दरें 1 जनवरी, 2025 से प्रभावी हो सकती हैं. ऐसे में किसानों को नए साल के आगमन के साथ ही महंगाई से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए. वहीं, एक्सपर्ट की कहना है कि डीएपी की कीतम में बढ़ोतरी होने से खेती में इनपुट लागत बढ़ जाएगी. इससे किसानों की कमाई में गिरावट आएगी.

कीमतों में बढ़ोतरी की वजह

सरकार द्वारा डीएपी के आयात पर दिए जाने वाले स्पेशल इंसेंटिव की अवधि 31 दिसंबर को समाप्त हो जाएगी. साथ ही डॉलर के मुकाबले लगातार रुपये के कमजोर होने से इंपोर्ट लागत भी बढ़ गई है. ऐसे सरकार डीएपी के आयात पर 3500 रुपये प्रति टन इंसेंटिव देती है. लेकिन 31 दिसंबर के बाद उसकी समय सीमा समाप्त हो जाएगी. वहीं, ग्लोबल मार्केट में रुपये के कमजोर होने से डीएपी की कीमत करीब 1200 रुपये प्रति टन बढ़ गई है. यही वजह है कि डीएमपी की कीमतों में 235 रुपये प्रति बैग बढ़ोतरी की संभावना जताई जा रही है.

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11 मिलियन टन डीएपी का आयात

बता दें कि भारत अपनी वार्षिक डीएपी की जरूरत को पूरा करने के लिए लगभग आधा आयात करता है, जो कुल मिलाकर लगभग 11 मिलियन टन है. इसके अलावा घरेलू स्तर पर भी डीएपी का उत्पादन करने के लिए आवश्यक कच्चे माल का लगभग पूरा आयात किया जाता है, जिससे प्राइस डिटरमिनेशन पर और दबाव बढ़ जाता है. यह वृद्धि अन्य उर्वरक ग्रेडों पर भी लागू होने की उम्मीद है.

उद्योग कर रहे ये मांग

इसके अलावा, उर्वरक उद्योग लंबे समय से डीएपी की कीमतों पर अनौपचारिक सीमा हटाने के लिए दबाव बना रहा है. उनकना कहना है कि मौजूदा मूल्य निर्धारण संरचना कंपनियों की वित्तीय व्यवहार्यता को कमजोर करती है और उनके मार्जिन को कम करती है.

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