कौन बनाता है DAP, जिसके लिए रात-रात भर लाइन में खड़े हैं किसान

DAP Shortage: देशभर में डीएपी खाद की कमी के कारण किसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ा रहा है. डीएपी का स्टॉक केवल 15-16 लाख टन है जबकि 27 से 30 लाख टन स्टॉक की जरूरत है.

देशभर में डीएपी की कमी, किसानों को हो रही परेशानी Image Credit: Getty Images Creative

देशभर में गेहूं की बुआई समेत रबी फसलों का सीजन जारी है और दूसरी तरफ डीएपी खाद की कमी होने की जानकारियां सामने आ रही हैं. कई ऐसी तस्वीरें भी हैं जिनमें किसानों को डीएपी खाद के लिए लंबी लाइनों में लगना पड़ रहा है. लेकिन डीएपी खाद की कमी का कारण क्या है? और अपने देश में कौन बनाता है डीएपी? चलिए जानते हैं सब कुछ.

हाल ही में, देशभर में डीएपी की भारी कमी देखी जा रही है, जिसके कारण कुछ वितरण केंद्रों पर भीड़-भाड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस तक को तैनात करना पड़ा है. फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, 1 अक्टूबर तक केवल 16 लाख मीट्रिक टन डीएपी खाद का स्टॉक उपलब्ध था. यह कुल जरूरत का केवल 29 प्रतिशत ही है.

क्या है डीएपी, पहले ये समझ लें?

डाय-अमोनियम फॉस्फेट यानी डीएपी यह एक तरह का खाद है जिसका खेती के लिए ज्यादा इस्तेमाल होता है. यह पैदावार बढ़ाने और अच्छी फसल के लिए काम आता है. डीएपी में 46 फीसदी फॉस्फोरस होता है, जो फसलों के लिए बहुत जरूरी पोषक तत्व है, खासकर जब जड़ें विकसित हो रही होती हैं. किसान इसे बुआई के समय बीज के साथ खेत में डालते हैं. सर्दी-बसंत में रबी सीजन में अनुमानित मांग करीब 60 लाख टन है, और ज्यादातर खपत अक्टूबर मध्य से दिसंबर मध्य के बीच होती है. इसलिए, बुआई के समय पर्याप्त स्टॉक होना बेहद जरूरी है.

क्या है डीएपी की कमी का कारण?

1 अक्टूबर को डीएपी का स्टॉक केवल 15-16 लाख टन था जबकि 27 से 30 लाख टन स्टॉक की जरूरत है. इस बार, अप्रैल से सितंबर के बीच केवल 19.7 लाख टन डीएपी आयात किया गया, जबकि पिछले साल इसी दौरान 34.5 लाख टन आयात हुआ था. भारत में भी डीएपी का प्रोडक्शन कम रहा है अप्रैल से सितंबर के बीच 21.5 लाख टन और पिछले साल 23.3 लाख टन. यही कारण है कि ज्यादातर राज्यों में डीएपी की कमी की शिकायतें आ रही हैं.

दरअसल डीएपी की बढ़ती कीमतों की वजह से कमी आई है. आंकड़ों ने बताया ही है कि देश में डीएपी का प्रोडक्शन कम है यानी बाकी का हमें आयात करना पड़ता है. अब वेस्ट एशिया में चल रहे तनाव के कारण चीजों की सप्लाई में दिक्कतें आ रही हैं जिसकी वजह से कीमतें बढ़ रही है.

साथ ही सरकार की नीतियों को भी जिम्मेदार माना जा रहा है, जिसमें खाद कंपनियों को डीएपी की अधिकतम रिटेल कीमत यानी MRP 27,000 प्रति टन निर्धारित करने की अनुमति दी गई है, और इसके ऊपर 21,911 प्रति टन की सब्सिडी भी दी जाती है. यह दोनों कीमतें मिलकर आयात की लागत, बैगिंग, वितरण और अन्य खर्चों को कवर नहीं कर पातीं, जिनका कुल खर्च 65,000 रुपये प्रति टन तक पहुंच जाता है. यानी डीएपी बेचने पर कंपनियों को एमआरपी 27 हजार प्लस सब्सिडी का पैसा 21,911 जो कुल मिलाकर बनता है 48 हजार रुपये. लेकिन डीएपी की कीमत आज की तारीख में कंपनियों को 65 हजार रुपये पड़ रही है. यानी कंपनियों का नुकसान उठाना पड़ रहा है.

अब जब कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है तो इस वजह से वे आयात भी कम कर रहे हैं ऐसे में डीएपी की कमी हो गई है.

रसायन और उर्वरक मंत्रालय के मुताबिक, 2019-2020 में 48.70 लाख मीट्र‍िक टन डीएपी का आयात क‍िया गया था, जो 2023-24 में बढ़कर 55.67 लाख मीट्र‍िक टन हो गया था. साल 2023-24 में डीएपी का घरेलू उत्पादन महज 42.93 लाख मीट्र‍िक टन ही रहा था.

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किसानों पर पड़ रहा असर

किसान डीएपी की मांग कर रहा है, लेकिन इसकी कमी के कारण किसानों को दिक्कतें आ रही हैं क्योंकि सरसों, आलू और गेहूं की बुआई का समय खत्म हो रहा है.

सरकार ने क्या कहा?

कुछ राज्यों की सरकारें डीएपी की कमी के हर दावे को सिरे से खारिज कर रही हैं. वहीं रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने कहा, “जनवरी से चल रहे लाल सागर संकट के कारण डीएपी का आयात कम हुआ है, क्योंकि खाद जहाजों को केप ऑफ गुड होप (रास्ते) के माध्यम से 6500 किलोमीटर की ज्यादा दूरी तय करनी पड़ी.” मंत्रालय ने कहा कि डीएपी की कीमत सितंबर, 2023 में 589 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन से लगभग 7.30 फीसदी बढ़कर सितंबर, 2024 में 632 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन हो गई थी.

भारत में कौन बनाता है डीएपी?