कृषि सेक्टर में 46 फीसदी लोगों को मिल रहा रोजगार, फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए करने होंगे ये काम
आनंद रामनाथन ने कहा कि देश के खाद्यान्न में गेहूं और चावल की हिस्सेदारी लगभग 60 फीसदी है. जबकि डिमांड को पूरा करने के लिए 15 फीसदी दलहन का आयात किया जाता है. इसलिए खाद्य कैटेगरी में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए, दालें, तिलहन, मक्का और बाजरा जैसी फसलों को बढ़ावा देने की जरूरत है.
भारत एक कृषि प्रधान देश है. कृषि और इससे संबंधित सेक्टरों में करीब 46 फीसदी आबादी को रोजगार मिला है. ऐसे भारत ग्लोबल एग्रीकल्चर प्रोडक्शन में 11 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है. लेकिन, फूड प्रोडक्शन के टोटल एक्सपोर्ट में इसकी हिस्सेदारी केवल 2 से 3 फीसदी ही है. जबकि प्रोसेस्ड फूड कैटेगरी में एक्सपोर्ट का हिस्सा 1 से 2 प्रतिशत के बीच ही है.
Deloitte India में पार्टनर एंड कंज्यूमर, प्रोडक्ट्स एंड रिटेल सेक्टर लीडर आनंद रामनाथन ने कहा कि भारत में कृषि से संबंधित प्रोडक्ट का एक्सपोर्ट वित्त वर्ष 2024 में 2.2 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया. हालांकि यह वित्त वर्ष 2023 की तुलना में 5 फीसदी से कम है. इसका कारण गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और सरकार द्वारा लिए गए कुछ सख्त फैसले हैं.
सरकार चला रही कई योजनाएं
आनंद रामनाथन ने कहा कि हालांकि, केंद्र सरकार कृषि सेक्टर को मजबूती देने के लिए कई योजनाएं चला रही है. इन योजनओं में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्च, कृषि मशीनीकरण मिश और एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड शमिल है. ये योजनाएं कृषि क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई हैं. इसके अलावा सरकार कृषि सेक्टर में तकनीक को भी बढ़ावा दे रही है. इसके लिए उसने डिजिटल कृषि मिशन और एग्रीस्टैक जैसी योजनाएं शुरू की हैं.
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किसानों के पास मशीनों की कमी
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की इन कोशिशों से किसानों की आमदनी में भी बढ़ोतरी हुई है. अब किसान पारंपरिक फसलों के बजाए बागवानी, डेयरी, पोल्ट्री और मछली पालन में ज्यादा इंटरेस्ट ले रहे हैं. हालांकि, किसानों को अभी भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. खास कर अभी भी अधिकांश किसानों के पास मॉडर्न कृषि मशीनें नहीं हैं. साथ ही वे मिट्टी की खराब सेहत से भी जूझ रहे हैं. हालांकि, सरकार इन समस्यों को दूर करने के लिए 10,000 किसान उत्पादक संगठनों के साथ मिलकर काम कर रही है. इसमें उसे 90 फीसदी तक सफलता मिल गई है. ये संगठन किसानों को इन चुनौतियों से निकलने में मदद कर रहे हैं.
बेहतरीन क्वालिटी के बीज
आनंद रामनाथन ने कहा कि कृषि सेक्टर में बदलाव लाने के लिए सरकार को किसानों के बीच बेहतरीन क्वालिटी के बीज वितरित करना चाहिए. इससे फसलों की पैदावर में बढ़ोतरी होगी. साथ ही किसानों को ट्रेनिंग देने के लिए एक तंत्र विकसित करना होगा. उन्होंने कहा कि फसल कटाई के बाद अनाज को स्टोर करने के लिए किसानों की मदद की जरूरत है. उन्होंने कहा कि देश में पैदावार बढ़ाने के लिए कुछ चुनिंदा फसलों के लिए विशेष अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है.
चावल- गेहूं की हिस्सेदारी
आनंद रामनाथन ने कहा कि देश के खाद्यान्न में गेहूं और चावल की हिस्सेदारी लगभग 60 फीसदी है. जबकि डिमांड को पूरा करने के लिए 15 फीसदी दलहन का आयात किया जाता है. इसलिए खाद्य कैटेगरी में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए, दालें, तिलहन, मक्का और बाजरा जैसी फसलों को बढ़ावा देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) सीमांत किसानों के लिए क्रॉप प्राइस सीरीज के हर चरण में समर्थन प्रदान करके एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. इसलिए एफपीओ के गठन को बढ़ावा देना जरूरी है.
कैसे लागू करें योजनाएं
आनंद रामनाथन ने ये भी कहा कि भारत बहुत बड़ा देश है. ऐसे में एक साथ पूरे देश में सारी योजनाओं को लागू करना बहुत कठिन काम है. इसलिए सरकारी योजनाओं को धरातल पर लाने के लिए क्लस्टर सिस्टम अपनाने पर फायदा होगा. उन्होंने कहा कि देश में फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने के लिए, सरकार ने कई कदम उठाए हैं. इनमें से एक महत्वपूर्ण कदम है देश भर में स्टोरेज, ग्रेडिंग और कूलिंग यूनिट्स का निर्माण करना. इसके अलावा, सरकार फार्मगेट और ग्राम स्तर पर माइक्रो-कोल्ड स्टोरेज को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा कि मौजूदा योजनाओं जैसे एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (एआईएफ) का उपयोग इन सुविधाओं को विकसित करने और स्टेकहोल्डर्स की क्षमता बनाने के लिए किया जा सकता है. ताकि निजी खिलाड़ियों के साथ मिलकर कुशल संचालन सुनिश्चित किया जा सके.
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