जैविक और नेचुरल फार्मिंग में क्या है अंतर, आसान भाषा में समझें पूरा गणित

जैविक और प्राकृतिक खेती को देश में बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके लिए किसानों को समय-समय पर सब्सिडी भी दी जाती है. खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती पर्यावरण के अनुकूल है. इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भी सुधार हो रहा है. साथ ही मिट्टी में जल धारण करने की शक्ति भी बढ़ रही है.

जैविक और प्राकृतिक खेती के फायदे. Image Credit: Freepik

केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी प्राकृतिक और जैविक खेती को बढ़ावा दे रही हैं. इसके लिए वे किसानों को सब्सिडी भी मुहैया करा रही हैं. सरकार की इन कोशिशों से देश में प्राकृतिक और जैविक खेती का रकबा भी बढ़ा है. लेकिन अभी भी प्राकृतिक खेती और जैविक खेती में अंतर को लेकर लोगों में असमंजस है. अधिकांश लोगों को लगता है कि जैविक खेती और प्राकृतिक खेती एक ही है, लेकिन ऐसी बात नहीं है. दोनों में बहुत अंतर है. तो आइए जानते हैं आखिर जैविक और प्राकृतिक खेती किस तरह से की जाती है.

प्राकृतिक खेती नेचर के साथ तालमेल बिठाकर की जाती है. इसमें किसी तरह की बाहरी इनपुट का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. प्राकृतिक विधि से खेती करने के लिए केवल मिट्टी, पानी और धूप की जरूरत होती है. यानी प्राकृतिक तरीके से खेती करने वाले किसान खेत में गोबर या वर्मी कंपोस्ट का भी उपयोग नहीं करते हैं. इसलिए प्राकृतिक खेती करना बहुत ही सस्ता है. इस खेती में इस्तेमाल आने वाले अधिकांश सामाग्री किसानों के पास उपलब्ध होती हैं. प्रकृतिक विधि से खेती करने वाले किसानों को बीजों की बुवाई करने के बाद केवल सिंचाई करने की ही जरूरत होती है.

रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं

जैविक खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. इसमें उर्वरक के रूप में गोबर और वर्मी कंपोस्ट का उपयोग होता है. वहीं, रासायनिक कीटनाशकों की जगह बीजामृत का इस्तेमाल किया जाता है. खास बात यह है कि बीजामृत गाय के गोबर, गोमूत्र, और बुझा चूने से तैयार किया जाता है. इसका छिड़काव करने से फसलों की ग्रोथ तेजी से होती है. साथ ही यह कीटों के हमले से भी फसल को बचाता है.

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मिट्टी की उर्वरा शक्ति में सुधार

एक्सपर्ट के मुताबिक, प्राकृतिक विधि से फसलों की खेती करने पर मिट्टी की उर्वरा शक्ति में तेजी से सुधार आता है. साथ ही मिट्टी में जल धारण करने की शक्ति बढ़ जाती है. सबसे बड़ी बात यह है कि जैविक और प्रकृतिक खेती पर्यावारण के अनुकूल हैं. दोनों विधि से खेती करने पर पर्यावारण को नुकसान नहीं पहुंचता है. साथ ही मिट्टी में मौजूद डैमसेल जैसे मित्र कीटों की मौत भी नहीं होती है. ये कीट फसलों और मिट्टी के फायदेमंद होते हैं.

देश में जैविक खेती का रकबा

पीआईबी की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में किसानों का रूझान प्राकृतिक और जैविक खेती की तरफ तेजी से बढ़ रहा है. परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन (एमओवीसीडीएनईआर) के तहत देश में जैविक खेती का रकबा 59.75 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है. वहीं, पीकेवीवाई के अंतर्गत प्राकृतिक खेती के लिए आठ राज्यों को 4.09 लाख हेक्टेयर भूमि आवंटित की गई.

सरकार की क्या है प्लानिंग

बता दें कि केंद्र सरकार देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है. बीते 25 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2,481 करोड़ रुपये के नए राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (एनएमएनएफ) को मंजूरी दी थी. इसका लक्ष्य प्राकृतिक खेती करने वाले लगभग 1 करोड़ किसानों को लाभ पहुंचाना है. सरकार ने 2019-20 में भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति नामक प्राकृतिक खेती पर एक कार्यक्रम शुरू किया. इसके बाद, 2022-23 में, देश भर में लगभग 960,000 हेक्टेयर को कवर करते हुए, गंगा नदी के किनारे पांच किलोमीटर का प्राकृतिक खेती गलियारा बनाने का निर्णय लिया गया.

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