Economic Survey 2025: टमाटर-प्याज ने सबसे ज्यादा बिगाड़ा खेल, महंगाई को रोकने के लिए ये कदम जरूरी
असमान मॉनसून के कारण सब्जियों की पैदावर प्रभावित हुई. ऐसे में सप्लाई पर दबाव बनने से कीमतों में बढ़ोतरी आई. खास कर टमाटर और प्याज की बढ़ती कीमतों ने ओवरऑल इन्फ्लेशन दर बढ़ाने में अहम रोल अदा किया. जबकि, सरकार ने महंगाई कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं.
Agriculture Budget: 1 फरवरी को इकोनॉमी सर्वे संसद भव में पेश किया गया है. इसमें कहा गया है कि मौसम की मार के चलते टमाटर, प्याज और दलहन के उत्पादन में गिरावट आई है. इससे इनकी कीमतो में बहुत अधिक बढ़ोतरी आई. इसके चलते खुदरा महंगाई में इजाफा हुआ. कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स के मुताबिक, फाइनेंशियल ईयर 2025 के अप्रैल से दिसंबर के बीच खाद्य महंगाई दर पर दलाब बना, क्योंकि सब्जियों और दालों की कीमतें हाई पर पहुंच गईं.
ऐसे सब्जियां और दालें कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स में कुल 8.42 प्रतिशत हिस्सेदारी रखती हैं. हालांकि, अप्रैल से दिसंबर के दौरान ओवरऑल इन्फ्लेशन में दोनों का योगदान 32.3 प्रतिशत रहा. अगर इन दोनों खाद्य वस्तों को बाहर रख दें, तो अप्रैल-दिसंबर के दौरान खाद्य महंगाई दर 4.3 प्रतिशत ही रही, जो ओवरऑल इन्फ्लेशन से 4.1 प्रतिशत कम है.
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टमाटर-प्याज के चलते बढ़ी महंगाई
इकोनॉमी सर्वे के मुताबिक, असमान मॉनसून के कारण सब्जियों की पैदावर प्रभावित हुई. ऐसे में सप्लाई पर दबाव बनने से कीमतों में बढ़ोतरी आई. खास कर टमाटर और प्याज की बढ़ती कीमतों ने ओवरऑल इन्फ्लेशन दर बढ़ाने में अहम रोल अदा किया. सर्वे में कहा गया है कि अगर रोज इस्तेमाल की जाने वाली सब्जियां आलू, टमाटर और प्याज को जब हम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स से बाहर रखते हैं, तो खाद्य महंगाई दर 6.5 ही दर्ज की गई, जो मौजूदा खाद्य महंगाई से 1.9 प्रतिशत कम है.
कई स्टडी में पता चला है कि अनाजों के तुलना में सब्जयों के ऊपर मौसम की मार का ज्यादा असर पड़ता है. चक्रवात, भारी बारिश, बाढ़, आंधी, ओलावृष्टि और सूखे जैसी मौसम की घटनाएं सब्जियों की कीमतों को प्रभावित करती हैं. साल 2023-24 में बागवानी वस्तुओं की कीमतों में इजाफा मौसमी मार के तलते आया.
प्याज का देश में उत्पादन
प्याज खरीफ और रबी दोनों मौसमों में उगाया जाता है, जिसमें लगभग 70 प्रतिशत उत्पादन रबी मौसम में होता है. ताजा प्याज आमतौर पर ठंडी, सूखी और हवादार जगह में संग्रहीत होने पर लगभग 2-3 महीने तक रहता है. साल 2022-23 और 2023-24 में प्याज के कम उत्पादन के चलते वित्त वर्ष 24 और 25 के अप्रैल-दिसंबर के दौरान महंगाई पर दबाव बढ़ गया.
वहीं, टमाटर और प्याज के अलावा, तुअर दाल ने भी महंगाई बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है. साल 2022-23 और 2023-24 में तुअर के कम उत्पादन से इसकी कीमतों में बहुत अधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई. इसके बावजूद सरकार ने उपभोक्ता क्षेत्रों में आपूर्ति बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं. पिछले 5 साल के औसत की तुलना में 2022-23 में तुअर उत्पादन में 13.6 प्रतिशत और 2023-24 में 10.8 प्रतिशत की गिरावट आई, जिससे आपूर्ति प्रभावित हुई और कीमतें बढ़ीं.
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महंगाई को कम करने के लिए उठाए कदम
हालांकि, सरकार महंगाई को कम करने के लिए ओपन मार्केट सेल स्कीम के तहत केंद्रीय पूल से गेहूं और चावल की बिक्री कर रही है. साथ ही वह भारत ब्रांड के तहत कम कीमत पर गेहूं, चना दाल, मूंग दाल और मसूर दाल की भी बिक्री कर रही है. इसके अलावा सरकार ने 21 जून 2024 से 30 सितंबर 2024 तक तुअर और देसी चना पर स्टॉक सीमा तय की. जबकि, 31 मार्च 2025 तक देसी चना, तुअर, उड़द और मसूर के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी गई है. 20 फरवरी 2025 तक पीले मटर के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी गई. जबकि, सितंबर से दिसंबर 2024 तक सरकार ने महंगाई कम करने के लिए 35 रुपये किलो प्याज बेचा.
उत्पादन बढ़ाने के लिए क्या करें
देश में दलहन और तिलहन के उत्पादन में लगातार गिरावट आने की समस्या से निपटने के लिए जलवायु-अनुकूल फसल किस्मों को विकसित करने की जरूरत है, ताकि उपज को बढ़ाया जा सके. साथ दी धान की जगह दलन की बुवाई करने से भी दलहन उत्पादन में बढ़ावा मिलेगा और कीमतों को बढ़ने से रोका जा सकता है. इसके अलावा किसानों को ज्यादा पैदावार देने वाली रोग प्रतिरोधी फसल की किस्मों की खेती करनी चाहिए. इससे दाल, टमाटर और प्याज के उत्पादन बेहतर बनाने में मदद मिलेगी. साथ ही सरकार को कई स्तरों पर कीमत, स्टॉक और प्रसंस्करण सुविधाओं की निगरानी के लिए मजबूत डेटा संग्रह और विश्लेषण सिस्टम को लागू करना जरूरी है.