सालभर से रुला रहा लहसुन, क्यों 400 रुपये किलो से नीचे नहीं आ रही कीमत
मध्य प्रदेश में लहसुन की बड़े स्तर पर खेती होती है. यह राज्य देश में अकेले 62.85 फीसदी लहसुन का उत्पादन करता है. ऐसे देश भर में करीब 31.64 लाख टन सालाना लहसुन का उत्पादन होता है. मध्य प्रदेश के बाद गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और बिहार में भी किसान बड़े स्तर पर लहसुन की खेती करते हैं.
आम से लेकर खास तक की नजर केवल प्याज की बढ़ती कीमतों पर टीकी हुई है. लोगों को लग रहा है कि खाद्य पदार्थों में सबसे ज्यादा महंगा प्याज ही है, लेकिन ऐसी बात नहीं है. मार्केट में प्याज से भी ज्यादा महंगा लहसुन बिक रहा है. खास बात यह है कि लहसुन की कीमत पिछले एक साल से भी अधिक समय से हाई पर बनी हुई है. इसकी कीमत में गिरावट आने के बजाए बढ़ोतरी ही हो रही है. अभी बिहार, केरल, ओडिशा सहित कई राज्यों में यह 400 से 500 रुपये किलो के बीच बिक रहा है. महंगाई का आलम यह है कि कई परिवारों ने तो लहसुन खरीदना ही छोड़ दिया है. ऐसे में सवाल उठाता है कि आखिर लहसुन की कीमत में गिरावट क्यों नहीं आ रही है, जबकि भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा लहसुन उत्पादक देश है.
पिछले साल शुरुआती महीनों में लहसुन काफी सस्ता था. जनवरी 2023 के दौरान मंडियों में किसानों को उचित रेट तक नहीं मिल पा रहा था. किसान 5 रुपये किलो लहसुन बेच को मजबूर थे. वहीं, कई किसानों ने तो 1 से 2 रुपये किलो भाव मिलने के चलते नाराज होकर सड़कों पर लहसुन भेंक दिया था. आखिर ऐसा क्या हुआ है कि अगस्त आते-आते यही लहसुन 200 से 250 रुपये किलो हो गया. जबकि, 2024 के जनवरी आते-आते इसकी कीमत 400 से 500 रुपये किलो पर पहुंच गई, जो अभी भी बरकरार है.
इस वजह से किसानों ने बनाई दूरी
एक्सपर्ट के मुताबिक, साल 2023 के जनवरी में भाव न मिलने की वजह से मध्य प्रदेश में किसानों ने लहसुन की खेती से दूरी बना ली. घाटा होने के चलते किसान खरीफ लहसुन के बजाए दूसरी फसलों की खेती करने लगे. ऐसे में लहसुन के रकबे में गिरावट आने से उत्पादन प्रभावित हआ. इससे कीमतें पिछले साल के अगस्त महीने में अचानक बढ़ गई. जबकि, कीमत बढ़ने की वजह से किसानों ने साल 2023 में रबी लहसुन की बंपर बुवाई की. ऐसे में उम्मीद की जा रही थी, नई फसल के आने के बाद मार्च से लहसुन सस्ता हो जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
बारिश से फसल को पहुंचा नुकसान
जानकारों का कहना है कि बारिश और खराब मौसम के चलते रबी लहसुन की फसल को नुकसान पहुंचा. इससे फसल कटमाई में देरी होने से रबी लहसुन की आवक मंडियों में देरी से हुई. इससे कीमतों में गिरावट की उम्मीद धराशायी हो गई. यही वजह है कि इस साल भी रिटेल मार्केट में लहसुन की कीमतें लगातार 400 से 500 रुपये के बीच कारोबार कर रही हैं.
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हालांकि, रिटेल दुकानदारों का कहना है कि इस साल भी मॉनसून के दौरान मध्य प्रदेश सहित कई लहसुन उत्पादक राज्यो में बहुत अधिक बारिश हुई है. इससे भी खरीफ लहसुन को नुकसान पहुंचा है. साथ ही फसल कटाई में भी देरी हो रही है. उनका कहना है कि नवंबर से खरीफ लहसुन की सप्लाई बढ़ने पर इसकी कीमत में गिरावट आने की उम्मीद है.
इस वजह से बढ़ रही हैं कीमतें
जबकि, कुछ जानकारों का कहना है कि बड़े व्यापारियों की वजह से भी लहसुन की कीमतें कम नहीं हो रही हैं. क्योंकि कई व्यापारी अधिक लाभ कमाने के लिए लहसुन की जमाखोरी कर रहे हैं. यानी व्यापारियों ने लिमिट से ज्यादा लहसुन का स्टॉक कर लिया है और मार्केट में कम मात्रा में धीरे-धीरे इसकी सप्लाई कर रहे हैं. इससे डिमांड और सप्लाई में अंतर आने की वजह से लहसुन की कीमतें कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही हैं. ऐसे में लहसुन कारोबारी को बंपर मुनाफा हो रहा है. खास बात यह है कि लहसुन कारोबारी इस तरह की जमाखोरी करने के लिए नई फसल आने पर ही मार्केट से लहसुन खरीद कर स्टॉक कर लेते हैं.
देश में कितना होता है लहसुन का उत्पादन
अगर लहसुन के पैदावार की बात करें मध्य प्रदेश में इसकी बड़े स्तर पर खेती होती है. यह राज्य देश में अकेले 62.85 फीसदी लहसुन का उत्पादन करता है. ऐसे देश भर में करीब 31.64 लाख टन सालाना लहसुन का उत्पादन होता है. मध्य प्रदेश के बाद गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और बिहार में भी किसान बड़े स्तर पर लहसुन की खेती करते हैं. खरीफ और रबी दोनों सीजन में लहसुन उगाया जाता है. खरीफ सीजन में जून-जुलाई के दौरान इसकी रोपाई की जाती है और सितंबर से फसल की कटाई शुरू हो जाती है. वहीं, रबी सीजन वाले लहसुन की बुवाई सितंबर से नवंबर महीने के दौरान की जाती और मार्च से नई फसल मार्केट आनी शुरू हो जाती है.
लहसुन के रकबे में गिरावट
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक, किसान लहसुन की खेती से धीरे-धीरे दूरी बना रहे हैं. साल 2021-22 के दौरान पूरे देश भर में लहसुन का रकबा 4,31,000 हेक्टेयर था, जो 2022-23 के तीसरे अग्रिम अनुमान में घटकर 3,86,000 हेक्टेयर हो गया. यानी एक ही साल में लहसुन के रकबे में 45,000 हेक्टेयर की गिरावट आई है, जो करीब 10.4 फीसदी है.
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