सरकार ने मसूर दाल पर लगाई 10 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी, पीली मटर के ऊपर भी लिया बड़ा फैसला
केंद्र सरकार ने मसूर दाल के आयात पर 10 फीसदी शुल्क लगाने का फैसला किया है, जिसमें 5 फीसदी बेसिक कस्टम ड्यूटी और 5 फीसदी एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर और डेवलपमेंट सेस (एआईडीसी) शामिल है. यह फैसला घरेलू आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिए लिया गया है.

केंद्र सरकार ने मसूर दाल के आयात पर 10 फीसदी शुल्क लगा दिया है. जबकि पीली मटर के ड्यूटी फ्री इंपोर्ट की अवधि 31 मई तक यानी तीन महीने के लिए बढ़ा दी है. वित्त मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, यह फैसला घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के लिए लिया गया है. केंद्र सरकार को उम्मीद है कि उसके इस फैसले से दाल की खुदरा कीमतों में कमी आएगी.
भारत सरकार ने मसूर दाल पर 5 फीसदी की बेसिक कस्टम ड्यूटी और 5 फीसदी एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर और डेवलपमेंट सेस (एआईडीसी) लगाई है, जो 8 मार्च से प्रभावी होगी. यह फैसला देश में दालों की घरेलू आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिए लिया गया है. हालांकि, अभी तक मसूर दाल के आयात पर कोई शुल्क नहीं लगाया जाता था. लेकिन अब, सरकार ने आयात शुल्क लगाकर घरेलू उत्पादकों को बढ़ावा देने का फैसला किया है.
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पीटीआई के मुताबिक, सरकार ने शुरुआत में दिसंबर 2023 में पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी थी और बाद में इसे 28 फरवरी तक तीन बार बढ़ाया था. अनुमान के मुताबिक, 2024 के दौरान आयातित कुल 67 लाख टन दालों में से भारत का पीली मटर का आयात 30 लाख टन रहा.
टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध हटा
वहीं, शुक्रवार को खबर सामने आई थी कि केद्र सरकार ने टूटे चावल के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए इसके निर्यात पर प्रतिबंध हटा लिया है. यह प्रतिबंध सितंबर 2022 में लगाया गया था. विदेश व्यापार महानिदेशालय ने एक अधिसूचना में कहा है कि टूटे चावल की निर्यात नीति को तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित से मुक्त में संशोधित किया गया है. निर्यातकों ने पहले सरकार से इन्वेंट्री में वृद्धि के कारण शिपमेंट की अनुमति देने का आग्रह किया था.
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खुदरा कीमतें नियंत्रण में हैं
पिछले साल, सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल के विदेशी शिपमेंट पर 490 अमेरिकी डॉलर प्रति टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को हटा दिया था और इस किस्म के शिपमेंट पर पूर्ण प्रतिबंध हटा लिया था. ये उपाय ऐसे समय में किए गए हैं जब देश के सरकारी गोदामों में चावल का पर्याप्त स्टॉक है और खुदरा कीमतें भी नियंत्रण में हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध से खाद्यान्न आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करने के कारण निर्यात प्रतिबंध लगाया था.
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