IIT की स्टडी में बड़ा खुलासा, ओजोन प्रदूषण से फसलों को भारी नुकसान; गेहूं की पैदावार में 20 फीसदी तक आ सकती है गिरावाट
IIT खड़गपुर की रिसर्च में सतही ओजोन प्रदूषण को गेहूं, चावल और मक्का की उपज के लिए बड़ा खतरा बताया गया है. अगर इसे नहीं रोका गया तो कृषि उत्पादन घटेगा और खाद्य सुरक्षा व सतत विकास लक्ष्य प्रभावित होंगे. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए खास पॉलिसी की जरूरत है.
IIT खड़गपुर की एक ताजा स्टडी में बताया गया है कि सतही ओजोन प्रदूषण (Surface Ozone Pollution) भारत की प्रमुख फसलों पर बुरा असर डाल रहा है. खासकर इंडो-गैंगेटिक प्लेन और मध्य भारत के इलाकों में इसका असर ज्यादा दिख रहा है. यह रिसर्च IIT खड़गपुर के CORAL (Centre for Oceans, River, Atmosphere and Land Sciences) सेंटर के प्रोफेसर जयनारायणन कुट्टिपुरथ की अगुवाई में हुई है. स्टडी में कहा गया है कि सतही ओजोन एक “कम पहचाना गया लेकिन खतरनाक खतरा” है, जो गेहूं, चावल और मक्का जैसी जरूरी फसलों की पैदावार को नुकसान पहुंचा रहा है.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इस स्टडी का नाम है: ‘Surface ozone pollution-driven risks for the yield of major food crops under future climate change scenarios in India’, जिसमें साफ बताया गया है कि अगर सतही ओजोन प्रदूषण पर जल्द ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले समय में भारत की कृषि उपज को बड़ा नुकसान हो सकता है. इसलिए इस पर्यावरणीय खतरे से निपटना अब बेहद जरूरी हो गया है, ताकि फसलों की पैदावार को बचाया जा सके.
पैदावार में 20 फीसदी तक की गिरावट
इस स्टडी में Coupled Model Intercomparison Project phase-6 (CMIP6) के डेटा का इस्तेमाल किया गया है, जिससे सतही ओजोन के असर को लेकर पुराने रुझानों और भविष्य के अनुमान दोनों का विश्लेषण किया गया है. नतीजों से पता चला है कि अगर प्रदूषण के मौजूदा स्तर तेजी से बढ़ते रहे, तो गेहूं की पैदावार में 20 फीसदी तक की और गिरावट आ सकती है, जबकि चावल और मक्के की उपज में लगभग 7 फीसदी तक की कमी हो सकती है.
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विकास में बड़ी बाधा बन सकती है
अध्ययन में बताया गया है कि इंडो-गंगा के मैदानी इलाकों और मध्य भारत में ओजोन प्रदूषण की मात्रा सुरक्षित सीमा से 6 गुना तक ज्यादा हो सकती है. यह स्थिति भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए खाद्य सुरक्षा पर गंभीर असर डाल सकती है, क्योंकि भारत कई एशियाई और अफ्रीकी देशों को बड़ी मात्रा में अनाज निर्यात करता है. स्टडी में चेतावनी दी गई है कि अगर यह समस्या नहीं रोकी गई, तो यह 2030 तक ‘गरीबी हटाओ’ और ‘भूखमुक्ति’ जैसे सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने में बड़ी बाधा बन सकती है.
सतही ओजोन एक तेज ऑक्सीडेंट की तरह काम करती है, जो पौधों के ऊतकों (टिशूज) को नुकसान पहुंचाती है. इससे पत्तियों पर झुलसने जैसे निशान दिखाई देते हैं और फसलों की पैदावार कम हो जाती है. रिसर्च में यह भी कहा गया है कि अगर इस समस्या को नजरअंदाज किया गया, तो यह भारत के संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) जैसे गरीबी हटाना और भूख खत्म करना जैसे अहम लक्ष्यों को हासिल करने में रुकावट बन सकती है.
उत्सर्जन घटाने की रणनीतियां लागू की जाएं
हालांकि भारत ने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के जरिए शहरी प्रदूषण पर काफी काम किया है, लेकिन इस स्टडी में कहा गया है कि अब इस कार्यक्रम का दायरा बढ़ाने की जरूरत है, ताकि कृषि क्षेत्रों को भी शामिल किया जा सके. फिलहाल की नीतियां ग्रामीण इलाकों में ओजोन प्रदूषण से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. इसलिए इन क्षेत्रों में उत्सर्जन की निगरानी और नियंत्रण के लिए टारगेटेड पॉलिसीज की जरूरत है. अगर प्रभावी तरीके से उत्सर्जन घटाने की रणनीतियां लागू की जाएं, तो इससे फसलों की पैदावार में सुधार हो सकता है और वैश्विक खाद्य सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी.
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