पंजाब के किसान 30 नवंबर तक करें गेहूं की इन किस्मों की बुवाई, कम समय में होगी बंपर पैदावार
कई किसानों ने कहा कि वे गेहूं की बुवाई में देरी से परेशान नहीं हैं, क्योंकि इस साल अभी तक तापमान में गिरावट नहीं आई है. होशियारपुर के गिलजियां गांव के ज्ञान सिंह ने बताया कि हमारी मुख्य चिंता डीएपी की खराब उपलब्धता है और किसानों को खाद की व्यवस्था करने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है. किसानों को मांग का सिर्फ 50-60 प्रतिशत ही डीएपी मिल पा रहा है.
पंजाब में गेहूं की बुवाई में देरी हो रही है. आम तौर पर 15 नवंबर तक पंजाब में गेहूं की बुवाई पूरी हो जाती है. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया है. प्रदेश में बहुत से किसान गेहूं की बुवाई करने के लिए अभी भी खेत तैयार कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि धान की धीमी कटाई और डीएपी की किल्लत की वजह से गेहूं बुवाई में देरी हो रही है. हालांकि, अब तक करीब 60 फीसदी रकबे पर गेहूं की बुआई पूरी हो चुकी है. जिन किसानों ने 15 नवंबर तक गेहूं की बुवाई पूरी नहीं की है, वो खास किस्मों का ही चयन करें. नहीं तो पैदावार प्रभावित हो सकती है.
राज्य कृषि विभाग के मुताबिक, इस साल 35 लाख हेक्टेयर में गेहूं बुवाई का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन अब तक केवल 20 लाख हेक्टेयर में ही गेहूं की बुआई की गई है. यानी 15 लाख हेक्टेयर में अभी भी गेहूं की बुवाई होनी है. खास बात यह है कि दक्षिणी मालवा क्षेत्र में गेहूं की बुआई अभी शुरू होनी है. ऐसे यह क्षेत्र परंपरागत रूप से कपास का बेल्ट हुआ करता. हालांकि, वहां के किसान पिछले कई सालों से गेहूं-धान की खेती कर रहे हैं. राज्य के इस हिस्से में धान की कटाई अभी भी जारी है.
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92 प्रतिशत धान की कटाई पूरी
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, 92 प्रतिशत धान की कटाई हो चुकी है और किसान गेहूं की बुवाई करने में जुटे हैं. विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि पारंपरिक गेहूं की किस्मों की बुवाई 15 नवंबर तक ही की जा सकती है. देरी से पैदावार पर असर पड़ सकता है. हालांकि, किसान अब कई किस्मों की बुवाई 30 नवंबर तक कर सकते हैं. इनमें पीबीडब्ल्यू 826, पीबीडब्ल्यू 824, पीबीडब्ल्यू 766 और डीबीडब्ल्यू 187 आदि शामिल हैं.
मांग का केवल 50 फीसदी ही मिल रहा डीएपी
कई किसानों ने कहा कि वे गेहूं की बुवाई में देरी से परेशान नहीं हैं, क्योंकि इस साल अभी तक तापमान में गिरावट नहीं आई है. होशियारपुर के गिलजियां गांव के ज्ञान सिंह ने बताया कि हमारी मुख्य चिंता डीएपी की खराब उपलब्धता है और किसानों को खाद की व्यवस्था करने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है. किसानों को मांग का सिर्फ 50-60 प्रतिशत ही डीएपी मिल पा रहा है.
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राज्य में इतने टन डीएपी की जरूरत
हालांकि, पूछताछ से पता चला है कि अब तक राज्य में 3.35 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) डीएपी प्राप्त हुआ है. इसके अलावा, राज्य में 60,000 मीट्रिक टन डीएपी के विकल्प भी उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग करने में अधिकांश किसान अनिच्छा जाहिर कर रहे हैं. रबी विपणन सत्र में आवश्यकता 5.50 लाख मीट्रिक टन है. पिछले दो दिनों से राज्य को कोई नया डीएपी स्टॉक नहीं मिला है.