IT की नौकरी छोड़ दो दोस्तों ने कमरे में शुरू की केसर की खेती, पहले साल ही इतना हुआ उत्पादन
दोनों आईटी प्रोफेशनल का नाम अनंतजीत टैंट्री और अक्षत बीके है. ये दोनों पहले आईटी सेक्टर में नैकरी करते थे. 10 सालों तक नौकरी करने के बाद दोनों के मन नें खेती करने का विचार आया. ऐसे में साल 2017 में दोनों अपने गांव लौट आए खेती शुरू कर दी.
लोगों को लगता है कि केसर की खेती केवल कश्मीर में ही की जाती है, लेकिन ऐसी बात नहीं है. दक्षिण भारत में भी लोग केसर उगा रहे हैं. इसके लिए वे वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं. अभी कर्नाटक के उडुपी में दो आईटी प्रोफेशनल युवा केसर की खेती कर रहे हैं. अभी तक दोनों कई ग्राम केसर उगा चुके हैं. इससे दोनों की अच्छी कमाई हो रही है. खास बात यह है कि अब दूसरे लोग भी इनसे प्रेरित होकर केसर की खेती करने की प्लानिंग कर रहे हैं.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों आईटी प्रोफेशनल का नाम अनंतजीत टैंट्री और अक्षत बीके है. ये दोनों पहले आईटी सेक्टर में नैकरी करते थे. 10 सालों तक नौकरी करने के बाद दोनों के मन नें खेती करने का विचार आया. ऐसे में साल 2017 में दोनों अपने गांव लौट आए खेती शुरू कर दी. शुरुआत में दोनों ने नारियल की खेती. इसी दौरान दोनों की मुलाकात पुणे में केसर की खेती करने वाले एक किसान से हुआ. इससे प्रेरिक होकर दोनों दोस्तों ने बेलगावी में केसर की खेती करने की ट्रेनिंग ली और इसके बाद इसे उगाना शुरू कर दिया. अभी दोनों लगातार दूसरे साल उडुपी शहर से लगभग 4 किमी दूर बैलूर में केसर की खेती कर रहे हैं.
37 ग्राम केसर का हुआ उत्पादन
टैंट्री ने बताया कि केसर के विकास के लिए नियंत्रित तापमान बनाए रखना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि पिछले साल हमने 50 किलो बल्बों से लगभग 37 ग्राम केसर पैदा किया था. उन्होंने कहा कि अभी बेहतर क्वालिटी वाले केसर की कीमत मार्केट में लगभग 4 लाख रुपये प्रति किलो है. जबकि, इससे कम गुणवत्ता वाले केसर का रेट लगभग 3 लाख रुपये प्रति किलो के आसपास है. हालांकि केसर पारंपरिक रूप से जम्मू और कश्मीर के पंपोर क्षेत्र में उगाया जाता है. दोनों ने नियंत्रित वातावरण में एरोपोनिक्स का उपयोग करके केसर की खेती में सफलता पाई है. दरअसल, एरोपोनिक्स विधि से खेती करने पर पौधे मिट्टी के बिना आर्द्र, धुंध भरे वातावरण में उगते हैं.
इस तरह कर रहे केसर की खेती
टैंट्री ने कहा कि केसर की खेती करने के लिए उन्होंने 180 वर्ग फुट के कमरे में एयर कंडीशनिंग और चिलर लगाए हैं. उन्होंने कहा कि हमें ट्रेनिंग में बताया गया था कि केसर की खेती के लिए तापमान सबसे महत्वपूर्ण होता है. टैंट्री को उम्मीद है कि इनके कमरे में उगाए गए केसर की क्वालिटी भी कश्मीर के केसर के बराबर ही होगी. ऐसे में दोनों आत्मविश्वास से भरे हुए हैं. उनका कहना है कि कमरे में 200 किलो बल्बों की क्षमता है. टैंट्री ने कहा कि खेती का चक्र जून से दिसंबर तक चलता है. ऐसे आमतौर पर अक्टूबर में नवरात्रि के आसपास केसर में फूल आने शुरू हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि पिछले साल पहली बार केसर को खिलते हुए देखना सपने साकार होने जैसा था. दोनों को उम्मीद है कि आने वाले सालों में केसर की खेती से अधिक कमाई होगी.