बासमती चावल पर GI टैग पाने के लिए भिड़े भारत- पाकिस्तान, क्यों खास है यूरोपियन यूनियन की ये मुहर
Basmati export: भारत में बासमती चावल मुख्य रूप से निर्यात के उद्देश्य से उगाया जाता है. यह वैश्विक बासमती चावल उत्पादन का 75 फीसदी हिस्सा है. वित्तीय वर्ष 2020-21 में, भारत ने 6.5 बिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य के लगभग 4.6 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया.
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Basmati rice GI tag: अभी भारत और पाकिस्तान के बीच बासमती चावल के जियोग्राफिकल इंडिकेशंस यानी जीआई टैग को लेकर लड़ाई चल रही है. दोनों देश बासमती के जीआई टैग पाने के होड़ में लगे हुए हैं. लेकिन ये लड़ाई तब और अहम हो गई, जब पाकिस्तान की तरफ से कहा गया कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने पाकिस्तान में उत्पादित बासमती को जीआई टैग की मान्यता दे दी है. हालांकि, भारत ने पाकिस्तान के दावे को झूठा करार दिया है. भारतीय अधिकारियों का कहना है कि बासमती पर जीआई टैग का मामला यूरोपीय यूनियन में लंबित है. ऐसे में आज हम जानते हैं, आखिर बासमती को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तानातानी की वजह क्या है.
बासमती चावल सुगंधित और स्वादिष्ट होता है. इसकी खेती बड़े स्तर पर केवल भारत और पाकिस्तान में ही की जाती है. भारत बासमती का विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक भी है. यहां से ईरान, यमन, इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात सहित कई यूरोपीय देशों को भी बासमती का निर्यात किया जाता है. भारत के अलावा पाकिस्तान भी कई देशों में बासमती की सप्लाई करता है. यही वजह है कि दोनों देशों के बीच बासमती चावल पर अधिकार की लड़ाई लंबे समय से चल रही है. क्योंकि कहा जा रहा है कि जिस देश को जीआई टैग की मान्यता मिल जाएगी, उसके पास बासमती चावल के लिए वैश्विक मूल्य निर्धारित करने का अधिकार होगा.
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क्या होता है GI टैग
वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता है, जिसमें किसी प्रोडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है. ऐसा प्रोडक्ट जिसकी विशेषता या फिर प्रतिष्ठा मुख्य रूप से प्राकृति और मानवीय कारकों पर निर्भर करती है. जीआई टैग से पहले किसी भी सामान की गुणवत्ता, उसकी क्वालिटी और पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है. यह तय किया जाता है कि उस खास वस्तु की सबसे अधिक और ओरिजिनल पैदावार निर्धारित राज्य या देश की ही है. इसके साथ ही यह भी तय किए जाना जरूरी होता है कि भौगोलिक स्थिति का उसके उत्पादन में कितना योगदान है.
जीआई टैग के मायने
हालांकि, यूरोपीय यूनियन में भारतीय बासमती चावल को लेकर मामला लंबित है, जिसका फैसला आना अभी बाकी है. जबकि, भारत बासमती का जीआई टैग पाने के लिए पूरी कोशिश कर रहा है. अगर भारत जीआई टैग पाने में सफल नहीं हो पाया, तो बासमती के निर्यात पर असर पड़ सकता है. क्योंकि भारतीय बासमती अपने स्वाद और सुंगध के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. अगर पाकिस्तान को जीआई टैग मिल जाता है, तो उसके बासमती चावल की डिमांड पूरी दुनिया में बढ़ जाएगी. साथ ही उसके पास बासमती चावल के लिए वैश्विक मूल्य निर्धारित करने का अधिकार भी होगा.
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भारत में बासमती की किस्में
JM Baxi वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बासमती चावल विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में उगाया जाता है. खास कर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बिहार में किसान इसकी बड़े स्तर पर खेती करते हैं. बीज अधिनियम, 1966 के तहत बासमती चावल की 34 किस्में अधिसूचित की गई हैं, जिनमें से कुछ वैश्विक रूप से जानी जाने वाली और मांग वाली किस्में हैं. जिसमें बासमती 217, बासमती 370, कस्तूरी, हरियाणा बासमती, पूसा बासमती, वल्लभ बासमती आदि शामिल हैं.
विश्व का सबसे बड़ा बासमती उत्पादक
भारत में बासमती चावल मुख्य रूप से निर्यात के उद्देश्य से उगाया जाता है. यह वैश्विक बासमती चावल उत्पादन का 75 फीसदी हिस्सा है. वित्तीय वर्ष 2020-21 में, भारत ने 6.5 बिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य के लगभग 4.6 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया. जबकि तुलनात्मक रूप से अगर हम गैर-बासमती चावल को देखें, तो देश ने 13.8 मिलियन टन निर्यात करके भी 3.5 बिलियन अमरीकी डॉलर कमाए, जो कि बासमती चावल के निर्यात की मात्रा से दोगुने से भी अधिक है.
देश में बासमती का रकबा
भारत दुनिया में बासमती चावल का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है. देश में सालाना उत्पादन लगभग 8 से 12 मिलियन टन है, जिसमें से लगभग दो-तिहाई निर्यात किया जाता है. शेष देश के भीतर ही खपत हो जाती है. भारत में वर्तमान में बासमती चावल की खेती का कुल क्षेत्रफल लगभग 1,563,000 हेक्टेयर है. बासमती चावल का सबसे बड़ा क्षेत्रफल हरियाणा (669,000 हेक्टेयर) में है उसके बाद पंजाब में 553,000 हेक्टेयर में बासमती की खेती की जाती है. जबकि उत्तर प्रदेश में बासमती का रकबा 273,000 हेक्टेयर है.
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