वेतन आयोग लागू होने पर लगते हैं ये बड़े झटके, जानें कैसे सरकार बचाती है अपना पैसा
सरकार ने इस साल 8वें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी देकर केंद्रीय कर्मचारियों को बड़ी सौगात दी थी. इसके 2026 में लागू होने की उम्मीद है. इससे सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में तो बढ़ोतरी होगी, लेकिन इससे सरकार पर अतिरिक्त खर्च का बोझ बढ़ेगा. ऐसे में सरकार इसे कैसे मैनेज करती है जानें डिटेल.
8th Pay Commission Impact on Govt: केंद्र सरकार ने नए साल की शुरुआत में 8वें वेतन आयोग के गठन की घोषणा से सरकारी कर्मचारियों को बड़ा तोहफा दिया था. इससे केंद्रीय कर्मचारियों को सैलरी और पेंशन बढ़ जाएगी. मगर नए वेतन आयोग के गठन से सरकार को तगड़ा झटका लगता है. सरकार पर अतिरिक्त खर्च का बोझ बढ़ जाता है. पिछला वेतन आयोग 2013 में बना था, जिसकी सिफारिशें 2016 में लागू हुई थीं. अब इस नए आयोग की सिफारिशें 2026 से लागू होने की उम्मीद है. इससे सरकारी खजाने और नई भर्तियों पर इसका असर पड़ेगा. ऐसे में खर्चों को मैनेज करने के लिए सरकार क्या तरीका अपनाती है, आज हम आपको इसी के बारे में बताएंगे.
भर्तियों में की जाती है कटौती
वेतन और पेंशन के बढ़ते बोझ को काबू करने के लिए सरकार भर्तियों में कटौती करती है. रिपोर्ट के मुताबिक 2001 में जहां सिर्फ 5% एप्रूव्ड पद खाली थे, वहीं 2000 की शुरुआत में पदों की खाली संख्या बढ़ने लगी. डिपार्टमेंट ऑफ एक्सपेंडीचर के एनुअल रिपोर्ट्स ऑन पे एंड अलाउंसेस के मुताबिक 2016 में 7वें वेतन आयोग के लागू होते ही खाली पदों की संख्या 11.3% पर पहुंच गई थी, जबकि मार्च 2023 में यह बढ़कर 24.2% हो गया.
राज्यों का खर्च का बोझ केंद्र से कहीं ज्यादा
- केंद्र सरकार जहां अपने राजस्व खर्च का 20-22% वेतन और पेंशन पर खर्च करती है, वहीं राज्यों की स्थिति इससे भी खराब है. 2010 की शुरुआत में और फिर कोविड-19 महामारी के बाद, राज्यों का कुल वेतन-पेंशन खर्च 40% को पार कर गया था. हाल के वर्षों में यह थोड़ा कम हुआ है, लेकिन 2024-25 में इसके 33-34% रहने का अनुमान है.
- केंद्र की तरह ही राज्यों में भी पेंशन का हिस्सा लगातार बढ़ रहा है.
- 2011-12 में यह 28% था, जो अब 2024-25 में 35.5% तक पहुंचने की उम्मीद है.
राज्यों पर क्यों है ज्यादा असर?
केंद्र की तुलना में राज्यों के लिए हाई वेज पेंशन खर्च बड़ी मुश्किल खड़ी करता है. राज्य सरकारों पर खर्च और उधारी का दबाव पहले से ज्यादा होता है. ऐसे में जब वेतन-पेंशन पर ज्यादा पैसा खर्च हो जाता है तो डेवलपमेंट से जुड़े कामों के लिए बजट बहुत कम बचता है.
वेतन और पेंशन का बोझ बढ़ेगा
वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से सरकार के बजट पर दबाव बढ़ता है. उदाहरण के लिए, 7वें वेतन आयोग के बाद 2015-16 से 2016-17 के बीच वेतन और पेंशन का हिस्सा सरकार के राजस्व खर्च में 3% बढ़कर 25.6% हो गया था. हालांकि, बाद के वर्षों में दूसरे खर्च तेजी से बढ़ने के कारण यह हिस्सा कम हुआ. 2024-25 के लिए यह अनुमानित तौर पर 21.6% रहने की उम्मीद है.
कर्मचारियों के वेतन से ज्यादा बढ़ा पेंशन का खर्च
पिछले कुछ सालों में रिटायर्ड कर्मचारियों की पेंशन, खासकर डिफेंस और सिविल कर्मियों की पेंशन मौजूदा कर्मचारियों के वेतन से ज्यादा तेजी से बढ़ी है. अब सरकार के कुल वेतन में पेंशन पर खर्च करीब 40% है, जो 2009-10 में 30% थी. इसमें भी रक्षा कर्मियों की पेंशन कुल पेंशन बिल का लगभग आधा है, क्योंकि वे सिविल कर्मचारियों की तुलना में जल्दी रिटायर होते हैं. इसके अलावा 1970 के दशक में सरकार ने रेलवे में बड़े पैमाने पर भर्तियां की थीं. अब वो कर्मचारी पिछले दशक से रिटायर हो रहे हैं, जिससे सरकार पर पेंशन का खर्च बढ़ गया है.
कितना खर्च करती है सरकार?
इंडियन रेलवे की एनुअल रिपोर्ट के मुताबिक वेतन और पेंशन सरकार के कुल राजस्व खर्च का 20-22% हिस्सा होता है. 2024-25 के लिए अनुमानित आंकड़ों के अनुसार इसमें से 40% पेंशन पर खर्च होगा. जिसमें रक्षा कर्मियों पर 19.7%, रेलवे कर्मियों पर 8% और बाकी सरकारी कर्मियों पर 11.6% पेंशन का खर्च है.