37 करोड़ यात्री, 200 एयरपोर्ट, तीसरा सबसे बड़ा बाजार; फिर क्यों बंद हो रही एयरलाइन कंपनियां

भारत में सालाना 37 करोड़ यात्री हवाई सफर करते है। और 200 के करीब छोटे-बड़े एयरपोर्ट है। इसके बावजूद एयरलाइन कंपनियां बंद हो रही हैं।

घाटे का सौदा बना एयरलाइन बिजनेस Image Credit: Money9live

Air India-Vistara Merger: जिस देश में हर साल 37 करोड़ यात्री हवाई सफर करते हो,जहां 200 के करीब छोटे-बड़े एयरपोर्ट हो और जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा एयरलाइन बाजार बन चुका हो। फिर भी जब आप टिकट खरीदने जाएं तो आपको केवल एयरलाइन कंपनियों के ऑप्शन दिखेंगे। पहला इंडिगो और दूसरा एयर इंडिया,ऐसे में हैरानी तो होगी। दोनों कंपनियों का आसमान में इस तरह राज है कि उड़ने वाले हर 10 विमान में से 6 इंडिगो और 3 एयर इंडिया के हैं।

परेशान करने वाली बात यह है कि तेजी से बढ़ते एविएशन बाजार के बावजूद, भारतीय एयरलाइन मार्केट में न केवल 2 कंपनियों का कब्जा है बल्कि दूसरी कंपनियों के बंद होने या विलय का सिलसिला भी थम नहीं रहा है। ताजा मामला विस्तारा का है, जिसका 12 नवंबर से टाटा ग्रुप की एयरलाइन कंपनी एयर इंडिया के साथ विलय हो गया है।

अब तक कितनी कंपनियां हुई बंद

भारत में एयरलाइन कंपनियों के बंद और मर्जर का सिलसिला पिछले 40 साल से जारी है। इस लिस्ट में दमानिया एयरवेज, वायुदूत, मोदीलुफ्थ, ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस, NEPC एयरलाइंस,एयर सहारा, जेट एयरवेज,किंगफिशर एयरलाइंस,एयर डक्कन,पैरामाउंट एयरवेज, एयरकोस्टा, एयर डक्कन, गो फर्स्ट और विस्तारा जैसी प्रमुख एयरलाइन कंपनियां शामिल है। अगर छोटी-बड़ी एयरलाइन कंपनियों की बात करें तो साल 2023 में सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार केवल 5 साल में 7 एयरलाइन कंपनियां बंद हो चुकी हैं।

बड़े बिजनेस घराने फिर भी फेल

भारत में एयरलाइन इंडस्ट्री का अगर इतिहास देखा जाय, तो हैरान करने वाली बात यह है कि कई एयरलाइंस को देश के दिग्गज बिजनेस घरानों ने शुरू किया था। इसके बावजूद वह उड़ान नहीं भर पाए। इस लिस्ट में दमानिया परिवार, वाडिया परिवार, सहारा ग्रुप के सुब्रत राय, नरेश गोयल से लेकर विजय माल्या जैसे अरबपति शामिल हैं।

शराब, ग्लैमर का तड़का से लेकर देशभक्ति का दांव

ऐसा नहीं है कि इन एयरलाइंस ने यात्रियों को लुभाने के लिए खास रणनीति नहीं बनाई थी। मसलन दमानिया एयरलाइंस ने घरेलू यात्रा के दौरान शराब देने का दांव चला था। इसी तरह एयर डक्कन ने आम आदमी की फ्लाइट बताकर, सहारा ने इंडियन और देश भक्ति से लुभाने की कोशिश की, तो विजय माल्या की किंगफिशर एयरसलाइंस ने ग्लैमर और खास बिजनेस क्लास से यात्रियों को जोड़ने की कोशिश की, लेकिन यह सभी दांव फेल हो गए।

Indigo बनी नजीर

एक तरफ जहां सभी एयरलाइन घाटे में चल रही थी, वहीं इंडिगो ने एक दम अलग मिसाल पेश की, उसका देश के 60 फीसदी बाजार पर कब्जा है। और वह एक मात्र कंपनी है जो फायदे में है। इंडिगो ने लो कॉस्ट एयरलाइंस का रास्ता चुना। और उसने बिजनेस क्लास के बिना हवाई सफर शुरू किया। जिसका फायदा इंडिगो को मिला। हालांकि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कंपनी को 986 करोड़ रुपये का घाटा हो गया है। जो फायदे में रहने वाले इंडिगो के लिए बड़ा सेटबैक है। इसी तरह टाटा ग्रुप भी एयर इंडिया को खरीदकर बड़ा प्लेयर बन गया है। और उसका करीब 30 फीसदी बाजार पर कब्जा है। इसके अलावा बचे हिस्से पर Spicejet और आकासा एयरलाइंस (Akasha Airlines) का प्रमुख रुप से कब्जा है।

क्यों फेल होती हैं कंपनियां

  • असल में एयरलाइन बिजनेस काफी निवेश और रिस्क वाला है। साथ ही भारत का बाजार भी बेहद प्रतिस्पर्धी है, ऐसे में कीमतों को कम रखना चुनौती रहता है। इसके अलावा विमान में इस्तेमाल होने वाले ATF की कीमतें और उस पर लगने वाला VAT भी कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती है।
  • एयरलाइन कंपनियों के ऑपरेशनल कॉस्ट में ATF की हिस्सेदारी 50-60 फीसदी तक रहती है। ऐसे में अगर कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती हैं, तो उसका सीधा असर कंपनियों के ऑपरेशनल कॉस्ट पर आता है। इसके अलावा ATF अभी भी GST के दायरे में नहीं है। इसकी वजह से राज्यों के आधार पर VAT लगता है। जो 30 फीसदी तक है। इसका असर भी लागत पर पड़ता है।
  • एयरलाइन कंपनियों के खर्च का बड़ा हिस्सा डॉलर के रूप में होता है। इसमें जेट ईंधन, लीज पेमेंट, मेंटनेंस से लेकर दूसरे खर्च शामिल होते हैं। ऐसे में रुपये के मुकाबले डॉलर मजबूत होने का असर कंपनियों की बढ़ती लागत के रुप में होता है।