जानें कैसे चेक होता है AQI, कहां से हुआ शुरू और इसे मिल गया 1000 करोड़ का बाजार
Air Purifier की डिमांड बढ़ गई है, 2032 तक इसका बाजार 3 हजार करोड़ तक पहुंच सकता है. यहां आपको बताएंगे AQI, भारत में कब आया? लंदन में स्मॉग ने 12 हजार लोगों की जान ले ली, वहां क्या हुआ था?
दिल्ली समेत भारत के कई शहर इस समय भयंकर वायु प्रदूषण या Air Pollution की चपेट में आ जाते हैं. ये जहरीली धुंध यानी स्मॉग की चादर बाजार को बिजनेस का अवसर भी देती है. आपके दिमाग में भी शायद Air purifier की तस्वीर आ गई होगी. लेकिन एयर प्यूरीफायर का बाजार कितना बड़ा है? इसके साथ हम ये भी बताएंगे कि AQI क्या होता है और ये वायु प्रदूषण को कैसे मॉनिटर करता है? ये सब समझाने से पहले आपको स्मॉग का थोड़ा इतिहास बताएंगे जिसने 12 हजार लोगों की जान ले ली थी.
ये बात लंदन की है. साल 1952. महीना दिसंबर का था. ब्रिटेन में धुंध छाना कोई नई बात नहीं होती. हर साल ठंड के मौसम में धुंध की खतरनाक परत शहर पर चढ़ जाती है. लेकिन 5 दिसंबर 1952 को कुछ अजीब हुआ. लोग सुबह उठे, धुंध की परत दिखी, इस बार अंधेरा ज्यादा छा गया था लेकिन सबके लिए वो फिर भी आम बात थी. लेकिन एक पहर बीतने के बाद भी जब धुंध नहीं छटी तो लोगों को अजीब लगने लगा. जब शाम होते-होते भी धुंध नहीं छटी तो लोगों में बेचैनी बढ़ने लगी.
6 दिसंबर को भी हालात नहीं बदले. स्कूल, कारखाने सब बंद करके लोग घरों में कैद हो गए. ऐसा 9 दिसबंर तक लगातार चलता रहा. हफ्तेभर में 4 हजार लोगों की जान चली गई. अगले साल 1953 का दिसंबर भी ऐसा ही रहा. तब इसे ग्रेट लंदन स्मॉग (Great London Smog) का नाम दिया जिसने इस दौरान 12 हजार लोगों की जान ले ली थी.
लेकिन ऐसा हुआ क्यों?
दुनिया को कारखाने देने वाले ब्रिटेन में सबसे ज्यादा कारखाने थे, जहां दिन-रात काम होता था, जहरीला धुंआ निकलता था. लंदन की कड़ाके की ठंड से बचने के लिए लोग कोयला जलाते थे ताकि गर्म महसूस कर सकें. बस इसी कारण लंदन में स्मॉग अटैक हुआ, स्मोक यानी जहरीली हवा और फॉग यानी धुंध. इसी से मिलकर बना स्मॉग. ये शब्द तब से ही प्रचलन में आ गया. इसके बाद कई तरीके की रिसर्च शुरू हो गई.
भारत से पहले AQI का जन्म?
भारत में इतने कारखाने नहीं हुआ करते थे, इसीलिए यहां वायु प्रदूषण की समस्या नहीं थी. स्मॉग वाली समस्या विकसित देशों की थी. जैसे अमेरिका. यहां 1976 में एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी ने विकसित किया था.
भारत में कब आया AQI?
भारत में AQI से पहले दूसरे तरीकों से वायु प्रदूषण को मापा जाता था. PM 2.5 और PM 10 के जरिए जहरीली हवा को मापा जाता था. 2014 में भारत ने अपना AQI विकसित किया था. यह कलर कोडेड AQI है जो रंगों के जरिए वायु प्रदूषण के स्तर की जानकारी देता है.
कैसे काम करता है AQI?
AQI एक ऐसा नंबर है जो हवा की क्वालिटी को माप लेता है, जितना ज्यादा AQI होता है, हवा की स्थिति उतनी ही खराब मानी जाती है. इसका मकसद आम जनता और सरकार को हवा की क्वालिटी को समझने में मदद करना है, ताकि स्थिति की गंभीरता के अनुसार कदम उठाए जा सकें. AQI को 6 कैटेगरी में बांटा गया है:
- अच्छा (Good): 0-50
- संतोषजनक (Satisfactory): 50-100
- औसत प्रदूषित (Moderately Polluted): 100-200
- खराब (Poor): 200-300
- बहुत खराब (Very Poor): 300-400
- गंभीर (Severe): 400-500
AQI को 2014 में केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत लॉन्च किया था. इसे तैयार करने के लिए IIT कानपुर और एक्सपर्ट की एक टीम ने टेक्निकल स्टडी की थी.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, AQI कई प्रदूषकों के जटिल डेटा को एक सरल संख्या, नाम, और रंग में बदल देता है. ये प्रदूषक हैं:
- PM 10
- PM 2.5
- नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂)
- ओजोन
- कार्बन, आदि
हवा में हर प्रदूषक का एक अलग वजन होता है, जो यह बताता है कि वह लोगों के स्वास्थ्य पर कितना प्रभाव डालता है. जो प्रदूषक सबसे बुरा असर डालता है, उसका AQI सबसे ज्यादा आता है. देशभर के मॉनिटरिंग स्टेशन इन स्तरों का आकलन करते हैं.
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एयर प्यूरीफायर का बाजार
स्मॉग पता चल गया, AQI से ये पता चला कि कितना प्रदूषण है. अब इस प्रदूषण से बचने के लिए एयर प्यूरीफायर लाया गया. इसके फायदे जरूर हैं लेकिन इसकी कई सारी भी सीमाएं हैं. फिलहाल आपको बताते हैं इसका बाजार कितना बड़ा है.
भारत में एयर प्यूरीफायर बनाने वाली कंपनियां 10 से कहीं अधिक हैं, जैसे LG, Xiaomi, Dyson, आदि. एक्सपर्ट मार्केट रिसर्च (EMR) की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में एयर प्यूरीफायर का बाजार 777.75 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था. 2024 से लेकर 2032 के बीच इसमें 16.30 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है. इस हिसाब से इसका बाजार साल 2032 में 3,147.69 करोड़ रुपये का हो सकता है.