Budget 2025: कॉर्पोरेट टैक्स से ज्यादा इनकम टैक्स का बोझ, मिडिल क्लास बन रहा सरकार का ‘ATM’?
भारत का मीडिल क्लास टैक्स के बोझ और महंगाई से जूझ रहा है, जबकि कॉर्पोरेट टैक्स में छूट मिल रही है. टैक्स का बोझ बढ़ने से मीडिल क्लास खर्च नहीं कर पा रहा जिससे अर्थव्यवस्था में मांग कमजोर हुई है.
डॉ ब्रजेश कुमार तिवारी: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को अपना लगातार 8वां केंद्रीय बजट पेश करेंगी. भारत में अभी इनकम टैक्स केवल 2.24 करोड़ लोग भरते हैं. इनकम टैक्स का हिस्सा 2023-24 में कुल बजट का 19% और ये कुल टैक्स रेवेन्यू का 30% से अधिक था. भारत का मीडिल क्लास देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका के साथ ही बुनियादी ढांचे के विकास और कल्याण राजनीति में बड़े पैमाने पर योगदान दे रहा है. आज भारत में मीडिल क्लास के सैलरीड व्यक्ति, डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स के बोझ से जूझ रहा है. ओईसीडी के अनुसार, भारत का इनकम टैक्स रेट 91 देशों में छठे स्थान पर है.
आज भारत में मीडिल क्लास के पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है, सिवाय इसके कि जब सरकारी नौकरी हो लेकिन सरकारी नौकरियां भी लगातार घट रही हैं. ज्यादातर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं फ्री नहीं हैं, और सरकारी अस्पतालों और स्कूलों में अक्सर गुणवत्ता का अभाव होता है. आज मीडिल क्लास आवास, उपभोक्ता वस्तुओं, एजुकेशन लोन और अस्पताल के खर्चों के लिए ईएमआई का पेमेंट करने की होड़ में लगा हुआ है. बढ़ते इनकम टैक्स और जीएसटी के कारण, इन परिवारों के पास खर्च करने योग्य आय कम रह गई है और यही एक बड़ा कारण है कि देश में मांग घट रही.
मीडिल क्लास का सवाल: भारी टैक्स चुकाने पर उन्हें क्या मिला?
इस सवाल से रेवड़ी कल्चर को लेकर भी चिंताएं बढ़ गई हैं. सरकार ने कोविड के चलते 2019 में टैक्स कटौती का उद्देश्य निजी क्षेत्र को बुनियादी ढांचे (कैपेक्स) में निवेश को बढ़ावा देना और अधिक नौकरियां पैदा करना था लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 33,000 से अधिक कंपनियों के नमूने के नतीजे बताते हैं कि वित्त वर्ष 2020 और वित्त वर्ष 2023 के बीच तीन वर्षों में, भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र का टैक्स (प्रॉफिट बिफोर टैक्स) लगभग चौगुना हो गया है, जबकि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में निफ्टी 500 कंपनियों की प्रॉफिटेबिलिटी वित्त वर्ष 2024 में 15 साल के उच्चतम स्तर पर थी, लेकिन न ही नए जयदा रोजगार सृजन हुआ न ही कर्मचारियों के वेतन में उचित वृद्धि और इस तरह से कोई भी सम्पत्ति सृजन भी नहीं हो पा रहा.
विश्व बैंक के अनुसार भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर गैप लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर के होने का अनुमान है. पिछले 12 वर्षों में, शेयर बाजार चौगुना हो गया है, बीएसई सेंसेक्स 2012 में लगभग 19,000 से बढ़कर 2024 में 80,000 हो गया है जबकि कुल प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में कॉर्पोरेट टैक्स रेवेन्यू में गिरावट आई है. भारतीय कंपनियों के लिए प्रभावी कॉर्पोरेट टैक्स की दर सभी सेस और सरचार्ज सहित 25.17% है.
कॉर्पोरेट टैक्स कलेक्शन से ज्यादा इनकम टैक्स कलेक्शन
1 अक्टूबर 2019 के बाद मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों के लिए यह टैक्स की दर सिर्फ 15% है. इन कटौतियों से सरकार को टैक्स रेवेन्यू में 1.45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा.
वित्त वर्ष 2023 के बाद से, इनकम टैक्स कलेक्शन कॉर्पोरेट टैक्स कलेक्शन से अधिक हो गया है, जो लगभग 55 प्रतिशत है. जहां इनकम टैक्स नई टैक्स व्यवस्था में 15 लाख और उससे अधिक व पुरानी टैक्स व्यवस्था में 10 लाख पर 30% टैक्स लगता है.
करोड़ों रुपये की कॉर्पोरेट आय केवल 22% टैक्स के अधीन है, वह भी खर्चों में कटौती के बाद. इसके अलावा, कॉरपोरेट्स के प्रॉफिट पर टैक्स लगाया जाता है (आय से खर्च घटाने के बाद), लोगों की इनकम (वेतन, पेशेवर शुल्क, आदि) पर टैक्स लगाया जाता है. वहीं वेतनभोगी व्यक्तियों को भुगतान किए गए जीएसटी पर कोई रिफंड नहीं मिलता है, लेकिन कॉरपोरेट्स को इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलता है.
डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में कॉर्पोरेट टैक्स कलेक्शन की हिस्सेदारी 2010-11 और 2024-25 के बीच 67% से घटकर 46% हो गई. टैक्स हेवन के उपयोग से भी भारत में कंपनियां अपनी टैक्स देनदारी को कम कर लेती हैं. हालांकि सरकारी आंकड़े यह बता रहे कि लोगों कि औसत टैक्स जिम्मेदारी घटी है फिर कैसे अर्थववस्था सुस्त और डिमांड बाजार में कम हो रही है?
समय के साथ टैक्स स्लैब बढ़ाना चाहिए क्योंकि महंगाई ने रुपये की कीमत बहुत कम कर दी है, यदि हम औसत महंगाई को 6% भी मानें, तो 2014 में 5 लाख रुपये और 10 लाख रुपये का वास्तविक मूल्य अब क्रमशः 2.8 लाख रुपये और 5.6 लाख रुपये होगा.
2005-06 के बजट के बाद से, पिछले 20 वर्षों में सोने की कीमत 10 गुना से अधिक बढ़ चुकी है, लेकिन टैक्स स्लैब में बहुत अधिक बदलाव नहीं किया गया. वर्ष 2005-06 में 1 लाख रुपये की मूल इनकम टैक्स छूट सीमा उस समय 145 ग्राम सोने के बराबर थी. अब महंगाई के प्रतिकूल प्रभाव को शामिल कर के ही टैक्स स्लैब बनाने चाहिए और जो आज महंगाई के हिसाब से 7-15-20 लाख रुपये से शुरू होना चाहिए.
एक ओर सरकार अधिक से अधिक बीमा की बात करती है वहीं बीमा करवाने पर 18% का जीएसटी है यही हाल शिक्षा का भी है, इसलिए कुछ श्रेणी में जीएसटी को भी युक्तिसंगत बनाने की जरूरत है. अमेरिका में लगभग 43% आबादी कर चुकाती है, जबकि भारत में केवल 2% आबादी, इसलिए करदाताओं की संख्या तेजी से बढ़ाना प्राथमिकता होनी चाहिए. इससे टैक्स का बोझ कम होगा और कर-जीडीपी अनुपात बढ़ेगा. यह तभी संभव है जब देश में मुफ्त की योजनाओं को बंदकर के, श्रम शक्ति को कुशल बनाने में निवेश किया जाए. याद रहे जब तक भारत का मीडिल क्लास ज्यादा खर्च नहीं करेगा तो मांग कम ही रहेगी. हमारे टैक्स सिस्टम को ठीक करने के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. वास्तव में एक आदर्श टैक्स सिस्टम को ठीक उसी तरह होना चाहिए जैसे एक मधुमक्खी बिना नुक्सान पहुंचाये फूल से रस चूसती है और लोगों को बदले में शहद देती है.
(लेखक, जेएनयू के अटल स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर हैं, प्रकाशित विचार उनके निजी हैं.)