अडानी-बिड़ला में सीमेंट की लड़ाई, छोटे प्लेयर साफ! जानें- कौन मारेगा बाजी

Adani vs Birla: मौका लगते ही हर तरह की सीमेंट की कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदी जा रही है. दोनों ही कारोबारी घराने सीमेंट के कारोबार के महत्व को समझ रहे हैं. लेकिन इन दोनों की कॉरपोरेट लड़ाई के बीच छोटी कंपनियां दम तोड़ रही हैं और बिक रही हैं.

सीमेंट का किंग बनने की होड़. Image Credit: Getty image

Adani vs Birla: भारत के सीमेंट उद्योग में दबदबे के लिए दो कारोबारी घराने अपनी-अपनी नींव को मजबूत कर रहे हैं. एक के बाद एक अधिग्रहण से बाजार में अपनी हिस्सेदारी में इजाफे के लिए कोशिशें की जा रही हैं. क्या-छोटी और क्या बड़ी, मौका लगते ही हर तरह की सीमेंट की कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदी जा रही है. दोनों ही कारोबारी घराने सीमेंट के कारोबार के महत्व को समझ रहे हैं. इसलिए सीमेंट उद्योग कंसोलिडेशन के दौर से गुजर रहा है, क्योंकि आदित्य बिड़ला समूह की अल्ट्राटेक सीमेंट और गौतम अडानी समूह के बीच इस कारोबार पर हावी होने के लिए मुकाबला नजर आ रहा है.

अधिग्रहण से सीमेंट कारोबार में एंट्री

अडानी समूह ने 2022 में अंबुजा सीमेंट और एसीसी का अधिग्रहण कर इस कारोबार में प्रवेश किया था. शुरुआत के साथ ही अडानी समूह भारतीय सीमेंट उद्योग में दूसरा सबसे बड़ा खिलाड़ी बन गया. वहीं, अल्ट्राटेक सीमेंट मार्केट लीडर है, लेकिन अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए वह अन्य कंपनियों का अधिग्रहण कर रहा है. सीमेंट के कारोबार पर हावी होने की कोशिश में दोनों ही कारोबारी टायकून बीच टकराव और भी तेज हो सकती है.

तेजी से अधिग्रहण का फायदा

आदित्य बिड़ला समूह की अल्ट्राटेक सीमेंट और अडानी समूह अधिग्रहण के जरिए से अपने फुटप्रिंट का आक्रामक रूप से विस्तार कर रहे हैं. इस साल की शुरुआत में, अडानी ने ओरिएंट सीमेंट और पेन्ना सीमेंट का अधिग्रहण किया. जबकि अल्ट्राटेक सीमेंट ने इंडिया सीमेंट्स में मोजॉरिटी कंट्रोल हासिल किया. इसके अलावा कंपनी ने स्टार सीमेंट में भी 8.7 फीसदी अतिरिक्त हिस्सेदारी खरीदी है.

दोनों ही समूह तेजी से छोटी कंपनियों में हिस्सेदारी हासिल कर रहे हैं. किसी भी सेक्टर में छोटी कंपनियों का अधिग्रहण करना उस रणनीति का हिस्सा है, जहां बड़ी कंपनियां विस्तार के लिए निवेश करने के बजाय हिस्सेदारी हासिल करती हैं. यह सबसे तेज और कम खर्चीला तरीका है.

अपने हालिया अधिग्रहण से अल्ट्राटेक की सीमेंट सेक्टर में 21.84 फीसदी हिस्सेदारी हो गई है. वहीं, अडानी समूह 14.12 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ दसरे नंबर पर है. यानी सीमेंट मार्केट का कुल 36 फीसदी शेयर सिर्फ दो कंपनियों के पास है. 2024 में सीमेंट उद्योग में मर्जर और अधिग्रहण की कुल 11 डील हुई है.

अडानी ग्रुप ने दी कंसोलिडेश की हवा

जून 2022 में स्विस समूह होलसिम के अंबुजा सीमेंट और एसीसी में शेयरों के अधिग्रहण के साथ सीमेंट उद्योग में अडानी समूह की एंट्री ने कंसोलिडेशन को तेज हवा दी. मार्केट की लीडिंग कंपनी अल्ट्राटेक सीमेंट अपनी स्थिति को कम नहीं करना चाहती थी. इसलिए उसने कई सीमेंट कंपनियों के साथ बातचीत शुरू कर दी. अधिग्रहणों की एक सीरीज ने पहले ही अडानी समूह को भारतीय सीमेंट व्यवसाय में दूसरे सबसे बड़े खिलाड़ी के रूप में उभरने में मदद की है, लेकिन अल्ट्राटेक अभी भी बहुत बड़ी है. यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी कंपनी है.

लगातार दोनों सूमहों ने की डील

2024 में अडानी समूह की अंबुजा सीमेंट्स ने घोषणा की कि वह सीके बिड़ला समूह की ओरिएंट सीमेंट में 47 फीसदी हिस्सेदारी खरीद रही है. जून में, अल्ट्राटेक ने इंडिया सीमेंट में लगभग 22.8 फीसदी और जुलाई में 32.7 फीसदी हिस्सेदारी हासिल कर मेजॉरिटी कंट्रोल हासिल कर लिया. अदानी समूह ने 2023 और 2024 में क्रमश सांघी सीमेंट और पेन्ना सीमेंट का अधिग्रहण करने के लिए भी अंबुजा सीमेंट का इस्तेमाल किया था. अल्ट्राटेक ने 2023 में केसोराम की सीमेंट यूनिट का अधिग्रहण किया था.

कीमतों पर पड़ सकता है असर

सीमेंट उद्योग में अन्य बड़े खिलाड़ियों में श्री सीमेंट, डालमिया भारत और नुवोको विस्टा शामिल हैं. पिछले दो वर्षों में सागर सीमेंट द्वारा आंध्र सीमेंट का अधिग्रहण और डालमिया भारत द्वारा जयप्रकाश एसोसिएट्स के सीमेंट बिजनेस की खरीद जैसे अन्य डील भी हुई हैं.

इस कंसोलिडेशन से सीमेंट उद्योग को री-ऑर्गनाइज करने में मदद मिल सकती है, लेकिन मिड से लॉन्ग टर्म में बाजार और कंज्यूमर्स पर इसका प्रभाव पड़ सकता है. मर्जर और अधिग्रहण से मार्केट में प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है. प्रतिस्पर्धा कम होने का मतलब है कि बड़े खिलाड़ियों के पास सीमेंट की कीमतें निर्धारित करने की अधिक शक्ति होगी. छोटी कंपनियों के पास कीमत लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा. अडानी और बिड़ला समूह ने इस साल 40 हजार करोड़ रुपये अधिग्रण के लिए खर्च किए हैं.

छोटी कंपनियों की बढ़ गईं मुश्किलें

बढ़ते इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण, शहरीकरण और घरों के निर्माण के बावजूद सीमेंट की कीमतें नहीं बढ़ी हैं. कीमतों में मामूली बढ़ोतरी से उपभोक्ताओं और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपर्स को मुनाफा होता है. लेकिन छोटे उत्पादकों के लिए बाजार में जीवित रहना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि उनका मुनाफा दबाव में है. इसलिए इनमें से कई कंपनियों का अधिग्रहण एसीसी और अल्ट्राटेक जैसी दिग्गज कंपनियों ने किया है. इसके अलावा सीमेंट बाजार, कमोडिटी के जल्द खराब होने वाले नेचर और लंबी दूरी तक परिवहन में शामिल उच्च माल ढुलाई लागत के कारण बेहद क्षेत्रीय हैं.

कीमत तय करने का पैमाना

सीमेंट कंपनियां कीमत तय करने के लिए एक क्षेत्र के भीतर प्लांट की क्षमता के उपयोग पर निर्भर रहती हैं. मान लीजिए कि दक्षिण भारत में फ्रेगमेंटेड सीमेंट उद्योग में कंपनियों के पास वर्तमान में कीमत तय करने की शक्ति कम है, क्योंकि सप्लाई डिमांड से अधिक है. आमतौर पर कीमतें तब बढ़ती हैं जब मांग या इनपुट लागत बढ़ती है. हालांकि, सीमेंट उद्योग में, मजबूत मांग वृद्धि के बावजूद पिछले दो वर्षों में कीमतें शांत ही रही हैं. कीमतों में इजाफा नहीं होने के पीछे बड़ी कंपनियों की भूमिका मानी जा रही है. एक्सपर्ट का कहना है कि कीमतें इसलिए नहीं बढ़ीं, क्योंकि बड़ी कंपनियों ने बाजार में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए हाई इनपुट लागत के बावजूद कीमतें स्थिर रखी हैं.

मिंट ने रेटिंग एजेंसी इक्रा की एक हालिया रिपोर्ट के हवाले से लिखा कि सीमेंट के एक बैग की औसत कीमत 2022-23 में 375 रुपये थी, जो 2023-24 में घटकर लगभग 365 रुपये प्रति बैग हो गई. चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में कीमतें औसतन 330 रुपये प्रति बैग तक कम हो गईं. सितंबर में कीमतों में मजबूती के संकेत देखने को मिले थे.

आक्रामक विस्तार

आक्रामक विस्तार के बावजूद, अडानी समूह के लिए अल्ट्राटेक को पछाड़ने की राह अभी लंबी नजर आ रही है, क्योंकि दोनों के बीच क्षमता के आधार पर भी बड़ा अंतर है. फिलहाल अडानी समूह की उत्पादन क्षमता 9.74 करोड़ टन, अल्ट्राटेक की 15 करोड़ टन है. बिरला और अडानी के बीच शुरू हुई सीमेंट के कारोबार पर दबदबे की लड़ाई में डालमिया और जेएसडब्ल्यू जैसी अन्य कंपनियों ने बैकसीट पकड़ लिया है.