डॉलर के सामने चीन का ‘युआन’ धराशायी, 18 साल के निचले स्तर पर, रुपया डट कर खड़ा

चीन और अमेरिका की ट्रेड वॉर में अब करेंसी का मोर्चा भी खुल गया है. इसी के साथ युआन और डॉलर की खींचतान बढ़ गई है. एक तरफ चीन की मुद्रा बुरी तरह कमजोर हो रही है, वहीं दूसरी तरफ भारत की मुद्रा खुद को बचाए हुए दिख रही है. जानिए इस गिरावट के पीछे की वजह और इससे जुड़ी अहम बातें, इस रिपोर्ट में.

ट्रेड वॉर Image Credit: Money9 Live

Dollar Vs Rupees Vs Yuan: चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते ट्रेड वॉर ने ग्लोबल करेंसी मार्केट में उथल-पुथल मचा दी है. एक ओर जहां चीन की करेंसी युआन डॉलर के मुकाबले 18 वर्ष के सबसे निचले स्तर तक फिसल गई है, वहीं भारत का रुपया अब तक इस दबाव को काफी हद तक झेलते हुए खुद को संभाले हुए है. ऐसे समय में जबकि चीन के आर्थिक हालात पहले से ही नाजुक दौर में हैं, युआन की कमजोरी ने उसकी चिंताओं को और बढ़ा दिया है. इसके उलट भारत की करेंसी ने उतार-चढ़ाव के बावजूद अभी संतुलन बनाए रखा है.

चीन की करेंसी में रिकॉर्ड गिरावट

चीन की करेंसी ऑनशोर युआन गुरुवार को डॉलर के मुकाबले उस स्तर तक गिर गई, जो पिछली बार ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस के दौरान देखी गई थी. इसके अलावा गुरुवार यानी 10 अप्रैल को ट्रेडिंग पार्टनर्स की करेंसी की एक बास्केट के मुकाबले भी यूआन 15 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है. घरेलू ट्रेडिंग सत्र में ऑनशोर युआन की क्लोजिंग 1 डॉलर के मुकाबले 7.3498 पर हुई, जो दिसंबर 2007 के बाद इसका सबसे कमजोर स्तर है. पीपल्स बैंक ऑफ चाइना लगातार छठे दिन युआन का रेफरेंस रेट कमजोर कर रहा है ताकि एक्सपोर्ट को बढ़ावा दिया जा सके. विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम धीरे-धीरे करेंसी को डिप्रेशिएट करने की रणनीति का हिस्सा है.

रुपया भी फिसला लेकिन बैलेंस है

गुरुवार को रुपया 41 पैसे टूटकर 86.68 पर बंद हुआ, जो तीन हफ्तों का सबसे निचला स्तर है. हालांकि यह गिरावट युआन की कमजोरी के चलते आई है लेकिन 13 जनवरी से लेकर अब तक का ट्रेंड देखा जाए तो रुपया उतना नहीं टूटा है जितना युआन. 24 मार्च को रुपया 85.86 तक मजबूत हुआ था जो कि जनवरी के बाद सबसे ऊंचा स्तर था. विदेशी निवेशकों की ओर से मजबूत निवेश (21 मार्च को 7,470 करोड़ रुपये की खरीद) ने इसमें अहम भूमिका निभाई थी.

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जब चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था की करेंसी गहराई तक डगमगाने लगे, ऐसे वक्त में भारत की मुद्रा का खुद को संभालकर रखना अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है. आगे भी भारत का रुपया अपना बैलेंस बनाए रखता है या नहीं ये आने वाले समय में अमेरिका के रेट कट प्लान और ग्लोबल टेंशन के माहौल पर निर्भर करेगा.