अब छुट्टे के बदले नहीं मिलती कैंडी, UPI ने कैसे खत्म कर दी टॉफी कारोबार की मिठास?
भारत की मोबाइल बैंक-टू-बैंक इंस्टेंट पेमेंट सिस्टम, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) की स्वीकार्यता लगभग हर दुकान में हो गई है. UPI एक वित्तीय क्रांति है जिसे देश ने 2016 में हुई नोटबंदी के बाद देखा और कोविड-19 महामारी के दौरान यह चलन और भी बढ़ गया.
यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) ने पेमेंट करने तरीके में बड़ा बदलाव ला दिया है. हर महीने यूपीआई ट्रांजेक्शन के बढ़ते आंकड़े, इसकी सफलता पर मुहर लगा रहे हैं. यूपीआई ने तेजी से प्रत्याशित लक्ष्य को छुआ है. लेकिन यूपीआई की सफलता ने देश में टॉपी के कारोबार की मिठास खत्म कर दी है. दरअसल, भारत के दुकानदारों की मानसिकता हमेशा से ‘छुट्टा नहीं है’ और उसके बदले टॉफी देने की रही है. यूपीआई से ट्रांजेक्शन के पहले जब हम दुकान पर सामान खरीदने जाते थे, तो कई दुकानदार छुट्टा नहीं है कहकर हमें कुछ टॉफी पकड़ा देते थे, जिससे टॉपी के कारोबार को भी मजबूती मिलती थी. लेकिन यूपीआई ने अब छुट्टे के कॉन्सेप्ट को ही खत्म कर दिया है.
यूपीआई ट्रांजेक्शन में जोरदार बढ़ोतरी
नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) के आंकड़ों से पता चलता है कि दिसंबर 2024 में भारत में यूपीआई ट्रांजेक्शन बढ़कर 16.73 अरब हो गए हैं. जिस तेजी से यूपीआई ने अपने पैर पसारे, उसी तेजी से टॉफी का कारोबार सिकुड़ता चला गया. डिजिटल पेमेंट से हुए बदलाव के चलते दुकानदारों के लिए कैंडी या टॉफी रखने की आवश्यकता खत्म हो गई है, जिसकी वजह से टॉफी की खपत कम हुई है.
छुट्टे के बदले टॉफी
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में लगभग 13 मिलियन किराना या छोटी दुकानें हैं. यूपीआई से प्रभावित हुई टॉफी की बिक्री पर टिप्पणी करते हुए चार्टर्ड अकाउंटेंट हर्षद शाह ने टिप्पड़ी की है. वे कहते हैं कि यूपीआई से पहले दुकानदार सिक्कों की कमी का हवाला देकर छोटे-मोटे नोटों के बदले टॉफियां बेचते थे. इस तरह कुछ सप्ताह में ये छोटी-छोटी बिक्री बहुत बड़ी रकम में तब्दील जाती थी. ये छोटी-मोटी राशि ग्राहकों के पास कभी वापस नहीं जाती थी, क्योंकि उसके बदले उन्हें टॉफियां बेच दी जाती थीं. इस तरह टॉफियों का बिक्री चलती रहती थी.
यूपीआई ने खत्म किया कारोबार
हर्षद शाह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लिंक्डइन पर पोस्ट में बताया कि कैसे लोग अब अपने डिजिटल पेमेंट एप्लीकेशन के जरिए बिना किसी लेन-देन में बदलाव किए या बदले में कुछ मांगे बिना ही ड्यू रकम का भुगतान कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह एक हैरान करने वाला तथ्य है कि कैसे ‘छुट्टा नहीं है’ पर बनाया गया एक बड़ा व्यवसाय यूपीआई के आने के साथ ही नीचे की ओर चला गया.
पहले के वर्षों में मोंडेलेज, मार्स, नेस्ले, परफेटी, पार्ले और आईटीसी समेत लगभग सभी टॉफी बेचने वाली कंपनियों ने साल दर साल चौंका देने वाली वृद्धि की थी. लेकिन जैसे ही UPI आया, इनमें से अधिकांश ब्रांडों ने टॉफी की बिक्री में भारी गिरावट दर्ज की.
कोविड के दौरान बदला चलन
दुनिया की सबसे बड़े टॉफी मेकर्स में से एक, हर्षे ने कहा कि भारत कोविड के बाद के दौर में सबसे अधिक प्रभावित बाजारों में से एक है, जिससे उनकी विस्तार की योजनाए प्रभावित हुई हैं. किसी भी टॉफी कंपनी ने कभी नहीं सोचा होगा कि फाइनेंशियल प्रोडक्ट उनके प्रतिस्पर्धी बन जाएंगे. टॉफी सिक्के का विकल्प थे और यूपीआई ने इस आवश्यकता को बदल दिया, जिसकी वजह से ग्राहक व्यवहार में भी काफी हद तक बदलाव आया. वरना कभी स्थानीय पान की दुकानों और किराना स्टोर पर छुट्टे के रूप में ‘कैंडी’ का बोलबाला था.