Coca Cola की बोतल को क्या कहते हैं, जानते हैं नाम? खास ऐसी कि और कोई नहीं बना सकता
कोका-कोला की कॉन्टूर बॉटल दुनिया के सबसे खास डिजाइनों में से एक है, जिसकी अनोखी रेखाएं और आकार इसे एक परफेक्ट शेप देते हैं. लेकिन इसके डिजाइन के पीछे एक अनोखी कहानी भी है. खास बात ये है कि कोका कोला ने अपनी रेसिपी का पेटेंट नहीं करवाया लेकिन उसकी बॉटल का पेटेंट जरूर हुआ है...जानें क्यों है खास?
गर्मी के मौसम में जिस कोका कोला की चुस्की आप मजे से लेते हैं उसके स्वाद का भले ही कोका कोला ने पेटेंट नहीं करवाया हो लेकिन उसकी बॉटल का पेटेंट माने कॉपीराइट किया गया है. अब तक आपके दिमाग में कोका कोला की कांच की बॉटल का आकार आ गया होगा और आप सोच रहे होंगे, ये कांच की बॉटल में ऐसा क्या खास है? कोका कोला की कांच की बोतल कॉन्टूर बॉटल कहलाती है, लेकिन इसकी कहानी क्या है? किसके फर्जीवाड़े के बाद आया नए डिजाइन का आईडिया?
कोका-कोला की आइकॉनिक कॉन्टूर बॉटल दुनिया में सबसे मशहूर डिजाइनों में से एक है. इसके कांच पर बनी अनोखी रेखाएं और साइज इसे परफेक्ट आकार देती है. इस बॉटल को न केवल संगीत, कला, और विज्ञापन में दिखाया गया, बल्कि मशहूर पॉप आर्ट कलाकार एंडी वॉरहोल ने भी इस बॉटल के शेप का इस्तेमाल किया. फॉक्सवैगन ने भी इसे अपने बीटल कार के डिजाइन से तुलना की.
लेकिन यह बॉटल इतनी खास कैसे बनी?
इसकी आइकॉनिक शुरुआत की बात करें तो साल 1899 में, दो वकील जोसेफ व्हाइटहेड और बेंजामिन थॉमस ने कोका-कोला को बॉटल्स में बेचने के राइट्स पाने के लिए अटलांटा की यात्रा की. तब तक कोका-कोला सिर्फ सोडा फाउंटेन पर बिकता था, लेकिन यह तेजी से लोकप्रिय हो रहा था. व्हाइटहेड और थॉमस ने सोचा कि इसे बॉटल्स में पैक करके हर जगह पहुंचाया जा सकता है.
धीरे-धीरे 1920 तक 1,200 से ज्यादा कोका-कोला बॉटलिंग ऑपरेशन शुरू हो चुके थे. लेकिन बढ़ती लोकप्रियता के साथ कई नकली ब्रांड जैसे “कोका-नोला,” “टोका-कोला,” और “कोके” भी आ गए, जो ग्राहकों को धोखा दे रहे थे.
कोका-नोला और टोका-कोला की वजह से आया नया डिजाइन
1906 में, कोका-कोला ने एक रंगीन डायमंड-शेप लेबल पेश किया, लेकिन यह भी नाकाफी साबित हुआ क्योंकि ठंडे पानी में लेबल छिल जाते थे. इस समस्या को हल करने के लिए, 1912 में कोका-कोला बॉटलर्स ने एक नया और अनोखा डिजाइन बनाने का फैसला लिया.
1914 में, कोका-कोला के वकील हेरोल्ड हिर्श ने कहा, “हम कोका-कोला को सिर्फ आज के लिए नहीं, बल्कि हमेशा के लिए बना रहे हैं.” 1915 में, बॉटलिंग एसोसिएशन ने एक अनोखी बॉटल डिजाइन करने के लिए 500 डॉलर खर्च करने का फैसला किया. चुनौती यह थी कि ऐसी बॉटल बनानी है जिसे अंधेरे में भी केवल स्पर्श से पहचाना जा सके.
रूट ग्लास कंपनी और कॉन्टूर बॉटल
इंडियाना की रूट ग्लास कंपनी ने इस डिजाइन पर काम शुरू किया. उन्होंने कोकोआ बीन के आकार से प्रेरणा ली, जिसमें लंबा आकार और उभरी हुई रेखाएं थीं. डिजाइन तैयार होने के बाद 1915 में इसका पेटेंट कराया गया. बॉटल का रंग “जर्मन ग्रीन” चुना गया, जिसे बाद में “जॉर्जिया ग्रीन” नाम दिया गया.
1916 में बॉटल के प्रोडक्शन की तैयारी शुरू हुई और 1920 तक अधिकतर बॉटलर्स ने इसे अपना लिया. इसके बाद कोका-कोला ने राष्ट्रीय विज्ञापन अभियान शुरू किए, जिससे यह बॉटल ग्राहकों के दिलों में अपनी जगह बना पाई.
सांस्कृतिक पहचान
इस बॉटल ने न केवल इंडस्ट्री में बल्कि कला और पॉप कल्चर में भी अपनी पहचान बनाई. इसे “हॉबलस्कर्ट बॉटल” कहा गया क्योंकि इसका डिजाइन 1910 के दशक के हॉबलस्कर्ट फैशन से मिलता-जुलता था. इसे एक्ट्रेस मे. वेस्ट की कर्वी फिगर के कारण “मे वेस्ट बटल” भी कहा गया.
1961 में, इसकी खास आकृति को आधिकारिक ट्रेडमार्क का दर्जा मिला. कोका कोला की वेबसाइट के अनुसार, एक अध्ययन में पाया गया कि 99% अमेरिकी इस बॉटल को सिर्फ इसके आकार से पहचान सकते थे.
कोका-कोला की कॉन्टूर बॉटल कई कलाकारों की प्रेरणा बनी. मशहूर पॉप आर्ट कलाकार एंडी वॉरहोल ने इसे अपनी कला में शामिल किया. उन्होंने कहा, “कोका-कोला अमीर और गरीब दोनों के लिए एक जैसा है. चाहे राष्ट्रपति कोक पी रहे हों या सड़क पर बैठा व्यक्ति, हर कोई एक ही कोक पीता है.”
कोका-कोला की यह बॉटल आज भी ब्रांड की पहचान है. हालांकि इसका डिजाइन समय के साथ बदला है, लेकिन इसकी मूल विशेषताएं वही हैं. यह बॉटल हमेशा कोका-कोला का प्रतीक रहेगी, और कंपनी भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इसे और बेहतर बनाने पर काम करती रहेगी.