Economic Survey 2025: अब रिफॉर्म का जिम्मा राज्यों को उठाना होगा, करने होंगे ये बड़े फैसले
भारत की आर्थिक विकास दर को तेज करने के लिए वित्त मंत्रालय के सलाहकार ने राज्यों को नई भूमिका देने की योजना बनाई है. कई मौजूदा नियमों में बदलाव का प्रस्ताव है, जिससे छोटे और बड़े कारोबारों पर असर पड़ेगा.
Economic Survey 2025 De-regulation: भारत के आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey 2025) में इस बार राज्यों की भूमिका को अहमियत देते हुए केंद्र सरकार के सलाहकार, V. Anantha Nageswaran ने राज्यों से अपील की है कि वे अपनी नीतियों में सुधार लाकर देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान दें. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न क्षेत्रों में सुधार के लिए राज्यों और लोकल बॉडी लेवल पर डीरेगुलेशन करना होगा. राज्य सरकारों को खासतौर पर भूमि, इंडस्ट्री,रोजगार से जुड़े नियम, टैक्स व्यवस्था और देश के अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते अन्य क्षेत्रों पर जोर देना होगा. इन सुधारों को लागू करने से न केवल व्यापार करना आसान होगा बल्कि राज्यों में निवेशकों को भी आकर्षित किया जा सकेगा.
Ease of Doing Business 2.0: राज्य सरकारों की भूमिका अहम
CEA V. Anantha Nageswaran ने स्पष्ट किया कि ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस (EoDB) 2.0 एक राज्य-नेतृत्वित पहल होनी चाहिए, जिसमें व्यापार करने में आने वाली वास्तविक समस्याओं को दूर किया जाए. राज्यों को केवल केंद्र द्वारा बनाए गए नियमों को लागू करने वाली एजेंसी नहीं माना जाना चाहिए बल्कि वे अपने स्तर पर भी सुधार कर सकते हैं.
राज्यों को अपने अधिकारों के मुताबिक निम्नलिखित क्षेत्रों में सुधार करने की सलाह दी गई है:
क्षेत्र | डीरेगुलेशन के उदाहरण |
---|---|
भूमि नियम | भूमि अधिग्रहण, भूमि उपयोग परिवर्तन और अन्य भूमि संबंधी प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाए |
निर्माण और बुनियादी ढांचे के नियम | भवन निर्माण की अनुमति प्रक्रियाओं को तेज किया जाए और पुराने उपनियमों की समीक्षा की जाए |
श्रम कानून | कारखानों, ठेका श्रमिकों और दुकानों से जुड़े श्रम कानूनों को लचीला बनाया जाए |
उपयोगिताएं | पानी, बिजली और अन्य नगर निगम नियमों को व्यापारियों के अनुकूल बनाया जाए |
परिवहन | मोटर वाहन अधिनियम और माल परिवहन कानूनों में सुधार किया जाए |
लॉजिस्टिक्स | वेयरहाउसिंग और लॉजिस्टिक्स से जुड़े नियमों को सरल बनाया जाए |
पर्यावरण संबंधी कानून | प्रदूषण नियंत्रण के नियमों को संतुलित बनाया जाए ताकि पर्यावरण और व्यापार दोनों को फायदा मिले |
क्षेत्र-विशेष नियम | खाद्य सुरक्षा, कानूनी माप-तौल और उत्पादों पर लगने वाले करों की समीक्षा की जाए |
अन्य देशों से सीख लेकर सुधार की आवश्यकता
राज्यों को देश के भीतर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू हो रहे अच्छे उदाहरणों से सीख लेने की सलाह दी गई है. उदाहरण के लिए, जापान ने शहरी क्षेत्रों में मिश्रित उपयोग विकास (Mixed-Use Development) को बढ़ावा दिया है, जिससे जमीन का बेहतर इस्तेमाल हो रहा है. दक्षिण कोरिया में साप्ताहिक कार्य घंटे को छह महीने की औसत के आधार पर तय किया जाता है, जिससे काम करने वालों को लचीलापन मिलता है.
हालांकि इस क्षेत्र में भारत के कुछ राज्यों ने बेहतरीन सुधार किए हैं. जैसे:
- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा ने महिलाओं के लिए नाइट शिफ्ट में काम करने पर लगे प्रतिबंध को पहले अनुमति-आधारित और फिर शर्त-आधारित प्रणाली में बदला.
- कुछ राज्यों ने IT क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कई अहम कदम उठाए.
कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाना जरूरी
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि राज्यों को प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार करना चाहिए ताकि अनावश्यक देरी और जटिलताओं से बचा जा सके. उदाहरण के लिए, कई राज्यों में निर्माण कार्य शुरू करने के लिए विभिन्न सरकारी विभागों से मंजूरी लेनी होती है जिससे व्यापारियों को काफी समय और पैसा खर्च करना पड़ता है.
गैर-जरूरी नियमों को हटाकर:
- लाइसेंस और अनुमतियों की संख्या कम की जा सकती है.
- आवेदन प्रक्रिया को डिजिटल किया जा सकता है.
- स्व-प्रमाणन (Self-Certification) को अपनाया जा सकता है.
राज्यों को टैक्स और शुल्कों की समीक्षा करनी चाहिए
राज्यों द्वारा लगाए जाने वाले बिजली शुल्क, परिवहन शुल्क और अन्य टैक्स की समीक्षा करना जरूरा है, भारत में इंडस्ट्रियल कंज्यूमर को घरेलू उपभोक्ताओं की तुलना में 10-25 फीसदी अधिक बिजली दर चुकानी पड़ती है, जबकि वियतनाम जैसे देशों में इंडस्ट्रियल कंज्यूमर को रियायत दी जाती है.
इसी तरह, कई राज्यों में फैक्ट्रियों को निर्माण के दौरान बहुत अधिक भूमि सेटबैक रखना पड़ता है, जिससे वे अपने भूखंड का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाते. इससे भूमि की उत्पादकता कम होती है और नए उद्योगों की स्थापना में बाधा आती है. साथ ही सरकार जब किसी इंडस्ट्री को अपनी जमीन का कुछ हिस्सा खाली रखने को बाध्य कर देते हैं तो उसके वजह से कंपनियां अपने सीमित जमीन पर ऊंची मंजिलें बनाने के लिए मजबूर होती हैं. इससे कंपनी को लागत भी ज्यादा देनी होता है और उस जमीन पर जो काम हो सकते थे उससे पैदा होने वाली नौकरियों के आसार भी खत्म हो जाते हैं.
जोखिम-आधारित नियमन (Risk-Based Regulation) को अपनाने की सलाह
मौजूदा समय में सभी उद्योगों पर एक जैसे सख्त नियम लागू किए जाते हैं, चाहे वे छोटे हों या बड़े. यह व्यवस्था बदलकर जोखिम-आधारित नियमन लागू किया जाना चाहिए. यानी जिन कंपनियों के संचालन से आग, प्रदूषण और भवन ढहने के अलग अलग जोखिम पैदा हो सकते हैं उन कंपनियों के लिए निगरानी और नियम बढ़ाई जानी चाहिए वहीं कम जोखिम वाले उद्योगों के लिए नियमों को सरल बनाया जाए.
प्राइवेट प्रॉपर्टी को भवन सुरक्षा निरीक्षण और अन्य अनुपालन प्रक्रियाओं में शामिल किया जाए.
उदाहरण: ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में निजी कंपनियों को इमारतों के सुरक्षा निरीक्षण की जिम्मेदारी दी गई है, जिससे सरकार का बोझ कम हुआ है और प्रक्रियाएं तेज हुई हैं. भारत भी इस मॉडल को अपना सकता है.
सुधार से बढ़ेगा निवेश और विकास
राज्यों को आर्थिक सुधारों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है ताकि भारत में व्यापार करना आसान हो और निवेश आकर्षित किया जा सके. ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस 2.0 के तहत राज्यों को अपने नियमों की समीक्षा कर व्यापारियों और उद्योगों के लिए अनुकूल नीतियां बनानी चाहिए.
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इन सुधारों को लागू करने से:
- नए स्टार्टअप और उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा.
- रोजगार के अवसर बढ़ेंगे.
- राज्यों की आर्थिक वृद्धि तेज होगी.
वित्त मंत्रालय ने इस पहल को लेकर राज्य सरकारों को जल्द से जल्द कार्यवाही करने की सलाह दी है, जिससे भारत वैश्विक स्तर पर एक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर सके.