₹200 किलो मिलता है फ्रेंच फ्राइज वाला आलू, गुजरातियों ने बजा दिया डंका, McDonald’s-Bikaji-KFC सब इनके भरोसे
फ्रेंच फ्राइज खाते-खाते कभी दिमाग में आया हो कि ये आता कहां से है, आज भारत ने इस मामले में कैसे महारत हासिल की, कौन सी बड़ी कंपनियां इसके पीछे काम कर रही है. यहां मिलेगी फ्रेंच फ्राइज की पूरी कहानी…
French Fries: पेरी-पेरी फ्रेंच फ्राइज हो चीज फ्राइज हो या फिर McDonald’s के फ्रेंच फ्राइज इनके सॉल्टी फ्लेवर को इतना पसंद किया जाता है कि लोग अपनी उंगली भी चाट जाते हैं. सबको पता है ये फ्राइज आलू से बनता है, लेकिन एक समय में भारत इन फ्रोजन फ्रेंच फ्राइज के लिए दुनियाभर के देशों पर निर्भर था और आज दुनिया को फ्रेंच फ्राइज खिलाने वाला किंग बन गया है. इस चमत्कार के पीछे दिलचस्प एक कहानी है. और गुजरात की इस कंपनी का नाम आपने सुना हो या नहीं लेकिन इसी की बादशाहत फ्रेंच फ्राइज की दुनिया में बनी है. कौन सा आलू लगता है, फ्रेंच फ्राइज बनाने में कितने आलू लगते हैं. चलिए फ्रेंच फ्राइज का गणित और इतिहास सब बताते हैं.
कहां से शुरू हुई फ्रेंच फ्राइज की चटक?
बात 1992 की है, जब भारत की अमेरिकी प्रोसेस्ड फूड कंपनी Lamb Weston ने यहां के स्टार होटलों को सप्लाई करने के लिए फ्रोजन फ्रेंच फ्राइज का इंपोर्ट करना शुरू किया. इसके चार साल बाद, कनाडा की एक कंपनी McCain Foods भारत आई और वह McDonald’s के लिए फ्रेंच फ्राइज को सप्लाई करने वाली एकमात्र कंपनी बन गई.
धीरे-धीरे फ्रेंच फ्राइज को इतना पसंद किया जाने लगा कि इसकी खपत बढ़ी और साथ ही इसका इंपोर्ट भी बढ़ा. 2000 के दशक में इंपोर्ट 5,000 टन को पार गया और 2010-11 में यह 7,863 टन तक पहुंच गया.
लेकिन 2023-24 आते-आते सबकुछ बदल गया. फ्रेंच फाइज का इंपोर्ट तो लगभग खत्म हो गया बल्कि भारत ने 1,478.73 करोड़ के 1,35,877 टन फ्रेंच फ्राइज का एक्सपोर्ट किया. अप्रैल-अक्टूबर 2024 में ही 106,506 टन फ्रेंच फ्राइज का एक्सपोर्ट हुआ, जिसकी कीमत 1,056.92 करोड़ थी.
इंपोर्टर से एक्सपोर्टर कैसे बना भारत?
ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि भारतीयों ने मौके का फायदा उठाकर भारत में आलू की किस्मों को उगाने और प्रोसेसिंग में महारत हासिल कर ली.
भारतीय फ्रेंच फ्राइज का एक्सपोर्ट दक्षिण-पूर्व एशिया यानी फिलीपींस, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम, वेस्ट एशिया में सऊदी अरब, UAE और ओमान, इसके अलावा जापान और ताइवान में होने लगा.
कौन सी कंपनियां करती है एक्सपोर्ट?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, HyFun Foods Pvt. Ltd. के मैनेजिंग डायरेक्टर और ग्रुप CEO हरीश करमचंदानी ने बताया कि भारत इन बाजारों के लिए एक वैकल्पिक सप्लायर बन गया हैं, जो पहले केवल यूरोप और अमेरिका से इंपोर्ट करता था.
गुजरात के अहमदाबाद में स्थित HyFun Foods ने पिछले साल भारत से एक्सपोर्ट किए गए 1,75,000 टन फ्रेंच फ्राइज में से करीब 85,000 टन एक्सपोर्ट किया है. इसके अलावा, कंपनी ने 12,000 टन में से 8,000 टन पोटैटो हैश ब्राउन का भी एक्सपोर्ट किया.
इसके अलावा अन्य प्रमुख एक्सपोर्टर्स में गुजरात से ही Iscon Balaji Foods, Funwave Foods, ChillFill Foods और J.R. Simplot शामिल हैं.
80% बिक्री फूड चेन को होती है
एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में फ्रेंच फ्राइज की करीब 1 लाख टन की खपत होती है, इसमें से करीब 80% बिक्री फूड चेन जैसे McDonald’s, KFC और Burger King, साथ ही होटलों और रेस्टोरेंट्स को हो जाती है, औसतन इनसे ₹125/किलो की कीमत मिलती है. बाकी बिक्री रिटेल मार्केट में होती है, जहां कीमत ₹200/किलो तक जाती है. कुल घरेलू बाजार का आकार करीब ₹1,400 करोड़ है. बता दें कि एक्सपोर्ट इससे ज्यादा ही होता है.
दो तरीके के आलू
दुनिया में चीन सबसे ज्यादा लगभग 9.5 करोड़ टन आलू का उत्पादन करता है, इसके बाद भारत का नंबर आता है जो 6 करोड़ टन आलू का उत्पादन करता है.
भारत ज्यादातर “टेबल” किस्म के आलू उगाता है, जिन्हें घरों में खाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
इसके आलावा प्रोसेसिंग-ग्रेड वाला आलू फ्रेंच फ्राइज और चिप्स के लिए अच्छा होता है. साथ ही, इन आलुओं में शुगर की मात्रा बहुत कम होती है.
फ्रेंच फ्राइज बनाने के लिए कितना आलू
रिपोर्ट के अनुसार, 1 किलो फ्रेंच फ्राइज बनाने के लिए 1.8 किलो आलू की जरूरत होती है जबकि खास प्रोडक्ट्स जैसे हैश ब्राउन, बर्गर पैटी, नगेट्स और आलू टिक्की के लिए 1.5 किलो आलू लगता है. वहीं बीकानेर, बीकाजी और बालाजी फूड जैसे कंपनियों को भुजिया स्नैक्स बनाने के लिए 6 किलो आलू लगता है.
फ्रेंच फ्राइज किंग
HyFun Foods इस मामले में प्रमुख कंपनी है, कंपनी ने 2023-24 में ₹1,320 करोड़ का टर्नओवर दर्ज किया है. कंपनी ने गुजरात के मेहसाणा जिले में अपनी यूनिट्स में ₹700 करोड़ का निवेश किया है, जो 17 टन प्रति घंटा फ्रेंच फ्राइज, 2.7 टन प्रति घंटा स्पेशियलिटी प्रोडक्ट्स और 3.6 टन प्रति घंटा पोटैटो फ्लेक्स का उत्पादन करती है.
कंपनी की सफलता के पीछे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का मॉडल है, फ्रेंच फ्राइज के लिए कच्चे माल को सप्लाय करना एक चुनौती है. लेकिन कंपनी ने इसे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग मॉडल के तहत हल कर लिया है. 2023-24 में HyFun ने गुजरात के 6,000 किसानों से 3 लाख टन आलू खरीदा था.
इस साल कंपनी गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में 7,250 किसानों से 4 लाख टन आलू खरीदने की योजना बना रही है. 2027-28 तक यह आंकड़ा 20,000 किसानों और 80,000 एकड़ तक पहुंचाने का लक्ष्य है. HyFun के अधिकारी एस सौंदरराजन ने बताया कि, “हमारा लक्ष्य 10 लाख टन आलू खरीदने का है.”
कंपनी किसानों को उनके बड़े आकार के आलुओं के लिए ₹13.8/किलो की कीमत देती है और फ्लेक्स में प्रोसेस किए जाने वाले छोटे आलुओं के लिए ₹8/किलो.