सीमेंट से क्रिकेट तक… श्रीनिवासन की हर जगह थी धाक, फिर क्यों बेचनी पड़ी पिता की खड़ी की कंपनी?
बीते दिन श्रीनिवासन ने इंडिया सीमेंट (India Cement Limited) के सीईओ और एमडी के पद से इस्तीफा दे दिया. इंडिया सीमेंट पर अब कुमार मंगलम बिड़ला की अगुवाई वाले अल्ट्राटेक ने अधिग्रहण कर लिया है. कभी सीमेंट कारोबर के बादशाह रहे श्रीनिवासन को आखिर क्यों अपनी पिता की बनाई कंपनी से बाहर निकलना पड़ा.
Story of N Srinivasan and India Cement: बात साल 1961 की है. मद्रास (अब चेन्नई) की एक उमस भरी दोपहर में टेनिस के जाने-माने कोच टी.के. रामनाथन कोर्ट में मौजूद थे. उस दोपहर उनकी नजर एक छोटे कद के 16 वर्षीय लड़के पर थी, जो कोर्ट पर धमाका कर रहा था. वो अपने से कहीं अधिक सीनियर प्रतिद्वंद्वी को कड़ी टक्कर दे रहा था. उसे खेलते हुए देख रामनाथन ने अपने कोचिंग स्टाफ से कहा कि अगर आप इस बच्चे से जीतना चाहते हैं, तो आपको उसे हराना होगा और लगता नहीं कि वो कभी हार मानेगा. बात शायद आई-गई हो गई. टी.के. रामनाथन उस वक्त के दिग्गज टेनिस कोच थे और उनके बेटे रामनाथन कृष्णन ने 1954 में विंबलडन बॉयज का खिताब जीता था. लेकिन उस दोपहर जिस 16 साल के लड़के लिए उन्होंने ‘वह कभी हार नहीं मानेगा’ जैसा वाक्य खर्च किया था, उसका नाम एन. श्रीनिवासन था.
जी हां, वही एन. श्रीनिवासन, जिनकी धाक कभी भारतीय क्रिकेट प्रशासन में थी. बीते दिन श्रीनिवासन ने इंडिया सीमेंट्स (India Cement Limited) के सीईओ और एमडी के पद से इस्तीफा दे दिया. श्रीनिवासन को विरासत में सीमेंट का कारोबार मिला था, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था, जब उन्हें इंडिया सीमेंट्स से बाहर निकाल दिया गया था, तो आज बात श्रीनिवासन की…
सीमेंट से क्रिकेट तक
रामनाथन की ‘वह कभी हार नहीं मानेगा’ वाली टिप्पणी को श्रीनिवासन ने बखूबी चरितार्थ किया. जिस तरह का संघर्ष उन्होंने 1980 के दशक में इंडिया सीमेंट्स पर कंट्रोल पाने के लिए किया. फिर तमाम अधिग्रहण के जरिए कंपनी को बड़ा बनाया. फिर भारतीय क्रिकेट प्रशासन में खुद को एक पावरफुल प्रशासक के रूप में स्थापित किया. ये सब श्रीनिवासन के कभी हार नहीं मानने वाले मजबूत इरादे के दम पर संभव हुआ. परिस्थितियां कभी सम रहीं, तो कभी विषम, श्रीनिवासन डटे रहे और टेनिस कोर्ट की तरह ही अपने पाले में आई हर एक गेंद को अपने प्रतिद्वंद्वी की तरफ रिर्टन करते रहे.
सीमेंट के कारोबार में एंट्री
श्रीनिवासन ने सीमेंट्स के कारोबार से खुद को अलग कर लिया है, जिससे सीमेंट्स उद्योग में एक युग का अंत माना जा सकता है. करीब चार दशक की यह एक ऐसी पारी रही, जो धैर्य, दृढ़ संकल्प, आक्रामकता और विवादों से भरी थी. श्रीनिवासन के लिए सीमेंट कारोबार के शुरुआती दिन अग्नि परीक्षा की तरह थे. उनके पिता टी.एस. नारायणस्वामी ने एक अन्य एंटरप्रेन्योर एस.एन.एन. शंकरलिंगा अय्यर के साथ मिलकर इंडिया सीमेंट्स लिमिटेड की स्थापना की थी. श्रीनिवासन इस कारोबार में तब दाखिल हुए, जब उनके पिता का निधन हो गया. उस समय श्रीनिवासन सिर्फ 23 साल के थे और अमेरिका में केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे.
कंपनी के बोर्ड से बाहर
वो भारत लौट आए और उन्हें इंडिया सीमेंट्स में डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया. बिजनेस को लेकर उनका नजरिया शंकरलिंगा अय्यर के बेटे के.एस. नारायणन से बहुत अलग था, जो तब कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर थे. समय के साथ दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. साल 1979 में विवाद इतना बढ़ा कि श्रीनिवासन को कंपनी के बोर्ड से बाहर कर दिया गया. इसके बाद वो इस फैसले के खिलाफ अदालत चले गए. मिंट में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, श्रीनिवासन ने इंडिया सीमेंट्स पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार और बाहर अपने राजनीतिक संपर्क बनाने के लिए दिल्ली में बहुत समय बिताया.
कंपनी पर हासिल हुआ कंट्रोल
जैसे-जैसे कानूनी लड़ाई आगे बढ़ी, कंपनी में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले वित्तीय संस्थानों ने नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया. 1982-83 में सिगरेट बनाने वाली कंपनी ITC ने कंपनी में दिलचस्पी दिखाई और इंडिया सीमेंट्स में वित्तीय संस्थानों की हिस्सेदारी खरीद ली. तब ऐसा लग रहा था कि इंडिया सीमेंट्स हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी. लेकिन श्रीनिवासन हार मानने को तैयार नहीं थे. उन्होंने लड़ाई और तेज कर दी. वे अदालत गए और कंपनी लॉ बोर्ड में इस फैसले के खिलाफ अपील की, जिससे ITC को वित्तीय संस्थानों को शेयर वापस करने के लिए मजबूर होना पड़ा. फिर 1989 का साल आया और आखिरकार अनुकूल राजनीतिक माहौल की बदौलत उन्होंने इंडिया सीमेंट्स पर कंट्रोल हासिल कर लिया और वो कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए.
इंडिया सीमेंट्स का कारोबार चमका
उस समय इंडिया सीमेंट्स की क्षमता केवल 1.6 मिलियन टन प्रति वर्ष थी. 1991 में भारत में आर्थिक उदारीकरण हुआ. इसके बाद श्रीनिवासन ने कई अधिग्रहण किए और एक दशक से भी कम समय में कंपनी क्षमता 9 मिलियन टन तक बढ़ गई. ये अधिग्रहण मुख्य रूप से कर्ज के जरिए फंड किए गए थे. तब उन्होंने एक महत्वपूर्ण सबक सीखा कि लोन का इस्तेमाल कर फ्रैक्चर्ड मार्केट में कभी भी विस्तार नहीं करना चाहिए. क्योंकि कीमतों पर नियंत्रण नहीं होने पर लोन चुकाना एक चुनौती साबित हो सकती है.
घाटे में चली गई कंपनी
सदी के अंत यानी 2000 की शुरुआत तक इंडिया सीमेंट्स ने दक्षिण में कुल डिमांड की 40 फीसदी तक की उत्पादन क्षमता हासिल कर ली. इससे सप्लाई में तेजी आई और कीमतें कम हो गईं, खासकर आंध्र प्रदेश में जहां कंपनी की अधिकांश क्षमता थी. फिर इंडिया सीमेंट्स को घाटा हुआ और कंपनी कर्ज चुकाने में असमर्थ हो गई. 2002-03 में इंडिया सीमेंट्स कॉर्पोरेट डेट रिस्ट्रक्चरिंग (CDR) प्रोग्राम में आ पहुंची. श्रीनिवासन ने ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट इश्यू भी अपनाया. सौभाग्य से कुछ वर्षों में सीमेंट की कीमतों में उछाल आया और दशक के अंत तक इंडिया सीमेंट्स CDR से बाहर आ गई.
सीमेंट की कीमतों को मैनेज करने का आरोप
इन-ऑर्गेनिक राह पर आगे बढ़ने से कंपनी ने तेजी से ग्रोथ हासिल की, लेकिन इसकी कीमत एफिशिएंसी थी. इंडिया सीमेंट्स का प्लांट एक अलग विंटेज और टेक्नोलॉजी का था. इसका मतलब था कि कंपनी सीमेंट के सबसे एफिशिएंट उत्पादकों में से नहीं थी. श्रीनिवासन ने आधुनिकीकरण में भारी निवेश करने की बजाय कीमतों को मैनेज करके एफिशिएंसी की कमी से निपटना पसंद किया और कीमतों को हाई रखना पसंद किया. ऐसे में इंडिया सीमेंट्स समेत कई अन्य को दक्षिण भारत में सीमेंट की कीमतों को मैनेज करने में मिलीभगत करने लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने दंडित किया.
क्रिकेट में चमका चेहरा
श्रीनिवासन ने 2005 तक क्रिकेट प्रशासन में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी थी. पहले बीसीसीआई के सचिव के रूप में और फिर इसके अध्यक्ष के रूप में वो सुर्खियों में रहे. साल 2008 में, जब इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) शुरू हुई, तो इंडिया सीमेंट्स ने बोली लगाई और एक फ्रेंचाइजी चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) अपने नाम कर लिया. सीएसके आज आईपीएल की सबसे सफल टीमों में से एक है. सीएसके का वैल्यूशन फिलहाल 122 मिलियन डॉलर के आसपास है. बीसीसीआई के अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल 2013 में समाप्त हो गया, जब उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन सट्टेबाजी कांड में पकड़े गए.
गलती जो पड़ गई भारी
दक्षिण भारत में सीमेंट उद्योग को एक साथ रखना उनकी लीडरशिप की एक खासियत थी. वो ट्रेड यूनियनों के साथ उद्योग के लिए समय-समय पर वेतन समझौते के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य व्यक्ति भी रहे हैं, लेकिन आधुनिकीकरण की अनदेखी करना उनके लिए सबसे बड़ा संकट साबित हुआ.
जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तो इनपुट की कीमतें आसमान छूने लगीं. खराब लागत स्ट्रक्चर के चलते, इंडिया सीमेंट्स बढ़ी हुई लागत को झेल नहीं सकी और घाटे में चली गई. इसका कैश फ्लो भी प्रभावित हुआ, जिससे कैपेसिटी के इस्तेमाल में कमी आई. कंपनी ने कैश फ्लो को बेहतर बनाने के लिए अपनी नॉन-कोर एसेट को बेचना शुरू किया, लेकिन घाटे से बाहर नहीं आ पाई. सितंबर तिमाही तक इंडिया सीमेंट्स पर करीब 2000 करोड़ रुयये से अधिक का कर्ज था. ऑपरेशनल प्रदर्शन कम उपयोगिता स्तर के साथ लड़खड़ा रहा था और प्रति टन EBITDA 200 रुपये से नीचे आ गया था.
इंडिया सीमेंट्स में एन श्रीनिवासन की अब कोई हिस्सेदारी नहीं बची है. कुमार मंगलम बिड़ला की अल्ट्राटेक सीमेंट ने कंपनी की 55.49 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली है. इंडिया सीमेंट्स से अलग होना श्रीनिवासन के लिए आसान फैसला नहीं था, लेकिन परिस्थितियों को देखते हुए यह शायह सबसे बेहतरीन और योग्य फैसला था.