GDP ने किया अलर्ट, अब एक्शन टाइम, प्रेशर में मिडिल क्लास और आम आदमी
आंकड़े इतने निराशाजनक क्यों आएं. इसे समझने के लिए पहले कुछ आंकड़ों पर गौर करिए. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ रेट 7% से घटकर 2.2% रह गई है. इतनी बड़ी गिरावट से साफ है कि कंपनियों के पास मांग नहीं है, दूसरे शब्दों में कहें तो लोगों ने खर्च में कटौती कर दी है. लोग बिस्कुट और साबुन जैसी बेहद जरूरी वस्तुओं की खपत में कटौती कर रहे हैं.

GDP Slow Down: चुनावों का शोर थम चुका है और महाराष्ट्र की जीत ने एक बार फिर मोदी मैजिक को मजबूत किया है. लेकिन इस बीच कुछ ऐसी चीजें सामने आई है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है. हम देश की आर्थिक सेहत के बारे में बात कर रहे हैं. ताजा GDP आंकड़े ने गंभीर चिंताएं खड़ी कर दी है. सवाल यह उठने लगा है कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था स्लोडाउन की ओर बढ़ रही है. यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली इकोनॉमी दो साल के निचले स्तर पर आ गई है. असल में जुलाई से सितंबर की तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था दो साल में अपनी सबसे धीमी गति से बढ़ी है. इस अवधि में जीडीपी ग्रोथ केवल 5.4 फीसदी रही है. जो 2022 के अंत के बाद से सबसे खराब प्रदर्शन है और आरबीआई के 7% की वृद्धि दर के अनुमान से काफी कम है. इन आंकड़ों पर खुद सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ.वी.अनंत नागेश्वरन ने कहा कि यह निराशाजनक है, लेकिन चिंताजनक नहीं है.
घटी इनकम तो बिस्कुट-साबुन में भी कटौती
पर आंकड़े इतने निराशाजनक क्यों आएं, यही सवाल सबके मन में उठ रहा है. तो इसे समझने के लिए पहले कुछ आंकड़ों पर गौर करिए. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ रेट 7% से घटकर 2.2% रह गई है. इतनी बड़ी गिरावट से साफ है कि कंपनियों के पास मांग नहीं है, दूसरे शब्दों में कहें तो लोगों ने खर्च में कटौती कर दी है. खर्च में कटौती का आलम यह है कि लोग बिस्कुट और साबुन जैसी बेहद जरूरी वस्तुओं की खपत में कटौती कर रहे हैं. सभी प्रमुख एफएमसीजी कंपनियों ने शहरी डिमांड में आई कमी की बात कही है. इसी तरह कार से लेकर दूसरे लाइफस्टाइल प्रोडक्ट की डिमांड में कमी आई है. मारुति सुजुकी के रिजल्ट से साफ है कि डिमांड गिर रही है. देश की दिग्गज कंपनियों की इनकम में गिरावट आई है. इसी का असर है कि कंपनियों की इनकम 16 तिमाही के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है.
महंगाई और ऊंची ब्याज दरों से परेशान
अब ऐसा क्यों हो रहा है तो इसकी वजह महंगाई और लोगों की घटती इनकम है. जीडीपी में 56 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी निजी खपत की है और इसमें केवल 6 फीसदी की ग्रोथ हुई. जबकि पहली तिमाही में यह 7.4 फीसदी थी. रिपोर्ट के अनुसार शहरी क्षेत्र में महंगाई और ऊंची ब्याज दरों की वजह से लोग अपने खर्च में कटौती कर रहे है. महंगाई जो 6 फीसदी की ऊंची दर पर बनी हुई है, उसके दबाव ने मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास का बजट बिगाड़ दिया है. लोग कपड़ों से लेकर बाइक-कार और दूसरे प्रोडक्ट की खरीदारी से बच रहे हैं. और इस झटके को आरबीआई भी समझ रहा है. RBI के अक्टूबर सर्वेक्षण में यह संकेत मिला है कि शहरी क्षेत्रों में पिछले तिमाही की तुलना में सेंटीमेंट कमजोर हुआ है और महंगाई को इसका एक प्रमुख कारण बताया गया है. इस बीच, कारोबारियों को भी दबाव महसूस हो रहा है, और कई ने ब्याज दरों में कटौती की मांग की है ताकि निवेश को बढ़ावा मिले और ब्याज के बोझ को कम किया जा सके. अब 5 दिसंबर को आरबीआई की पॉलिसी पर सबकी नजर है. क्या आरबीआई ग्रोथ को रफ्तार देने के लिए ब्याज दरों में कटौती करेगा.
GDP सुस्त ! 5.4 फीसदी के साथ 2 साल के सबसे निचले स्तर पर ग्रोथ रेट
ग्लोबल चैलेंज की वजह से निर्यात पर असर
कारोबारियों को ग्लोबल लेवल पर भी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. जहां पर मांग कम हुई है, जिसका असर निर्यात में गिरावट के रूप में दिखा है. पहली तिमाही में निर्यात 8.7 प्रतिशत बढ़ने के बाद दूसरी तिमाही में इसकी ग्रोथ घट कर सिर्फ 2.8 प्रतिशत रह गई है. इन सब गतिविधियों का असर निवेश में गिरावट के रूप में दिखा है, क्योंकि सरकार का पूंजीगत खर्च कम हो गया है. सरकारी खपत में पिछले साल की दूसरी तिमाही में 14 प्रतिशत ग्रोथ हुई थी, जो इस बार 4.4 प्रतिशत रह गई है. इसी तरह पहली छमाही में निवेश ग्रोथ रेट पिछले साल के 10.1 प्रतिशत की तुलना में सिर्फ 6.4 प्रतिशत रही है. मांग वृद्धि में सुस्ती के कारण उद्योग निवेश करने से हिचकिचा रहा है. राहत की बात यह है कि इस बार कृषि क्षेत्र ने बेहतर प्रदर्शन किया है. जिसमें पहली तिमाही के 2 फीसदी की तुलना में 3.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. साफ है कि ये आंकड़े मोदी सरकार के लिए अच्छे नहीं है और मोदी सरकार को अब इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए अहम कदम उठाने होंगे, क्योंकि इस समय शेयर बाजार में अनिश्चितता से लेकर महंगाई, बेरोजगारी और लोगों की घटती इनकम बड़ी चिंता बन गई है. अगर इसमें सुधार नहीं हुआ तो दुनिया की 5 वीं सबसे बड़ी इकोनॉमी को बड़ा झटका लगेगा और उसका खामियाजा आम आदमी को उठाना पड़ेगा.
Latest Stories

मार्च में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का दिखा दम, 8 महीने के हाई पर PMI, 56.3 से बढ़कर 58.1 पर पहुंचा

ट्रंप टैरिफ से निपटने के लिए भारत ने बनाया प्लान ‘ABC’, जानें किस बात का है डर

महज 2 घंटे में दुबई से मुंबई, अंडरवाटर रेल बनाने की तैयारी; जानें कब होगी शुरुआत
