इस कंपनी के साथ होगा RINL का मर्जर! सरकार जल्द ले सकती है अहम फैसला

आंध्र प्रदेश में स्थित स्टील प्लांट के ऑपरेशन को बनाए रखने के लिए कैपिटल की जरूरत है. इसके अलावा RINL की वित्तिय परेशानी को देखते हुए सरकार इसका मर्जर SAIL के साथ कर सकती है.

RINL के साथ मर्ज हो सकता है SAIL Image Credit: GCShutter/E+/Getty Images

आर्थिक परेशानियों से घिरी हुई राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (RINL) का मर्जर स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) के साथ होने की संभावना है. आंध्र प्रदेश में स्थित स्टील प्लांट के ऑपरेशन को बनाए रखने के लिए कैपिटल की जरूरत है. जिसके लिए नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (NMDC) को जमीन बेचने के अलावा बैंक लोन जैसे तरीकों पर भी विचार कर रही है.

हाल में RINL को लेकर फाइनेंशियल सर्विसेज के सचिव, इस्पात सचिव और सार्वजनिक क्षेत्र के लेंडर बैंक एसबीआई के शीर्ष अधिकारियों के साथ मीटिंग हुई है. बता दें कि एसबीआई ने RINL को काफी कर्ज दिया है. सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक, RINL मामले को लेकर सरकार अब स्थाई समाधान चाहती है. जिनमें RINL और SAIL का मर्जर एक विकल्प है. इस्पात मंत्रालय के अंतर्गत चलने वाला RINL, आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में 75 लाख टन की क्षमता वाले इस्पात प्लांट का संचालन करती है. वहीं देश की प्रमुख स्टील उत्पादक SAIL का नियंत्रण भी इस्पात मंत्रालय के पास है.

सूत्रों का कहना है कि संचालन के लिए कैपिटल की व्यवस्था करने पर विचार किया जा रहा है. इससे इतर फाइनेंशियल लेंडर्स के साथ बातचीत और एनएमडीसी को पैलेट प्लांट लगाने के लिए 1,500 से 2,000 एकड़ जमीन बेचने के उपाय भी किए जा रहे हैं.

RINL के प्राइवेटाइजेशन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे यूनियन के लीडर का मानना है कि RINL के पास कभी भी अपने स्वामित्व वाला खदान नहीं रहा है. RINL में आई परेशानी का यह भी एक बड़ा कारण है. यूनियन लीडर जे अयोध्या राम ने कहा, “RINL के पास कभी भी अपना खदान नहीं रहा है. वहीं दूसरे सभी स्टील बनाने वाली कंपनियों के पास अपना खदान होता है जिसके वजह से रॉ मटेरियल की कीमत में काफी फर्क पड़ता है. हमें बाजार के दाम पर इसकी खरीद करनी पड़ती है.”

इस्पात मंत्रालय के दस्तावेजों के मुताबिक, RINL काफी गंभीर वित्तीय परेशानी से जूझ रहा है. यह अपने न्यूनतम क्षमता पर चलने के बाद भी लगातार घाटा झेल रहा है. RINL के ऊपर कुल 35,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. साथ ही इसपर नॉन परफार्मिंग एसेट के तौर पर कैटिगराइज होने का भी जोखिम बना हुआ है.