निजीकरण की ओर एक और कदम! सरकार ने बैंकों में हिस्सेदारी बेचने का खाका तैयार किया
सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थानों को लेकर एक बड़ा फैसला लिया गया है. इससे न केवल बैंकिंग सेक्टर बल्कि निवेशकों पर भी असर पड़ेगा. जानिए सरकार के इस फैसले से बाजार में क्या बदलाव आ सकते हैं और इसका क्या असर होगा.
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सरकार अपने स्वामित्व वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) और वित्तीय संस्थानों में हिस्सेदारी कम करने की प्रक्रिया को तेज करने जा रही है. इसके लिए विनिवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) ने मर्चेंट बैंकरों और कानूनी सलाहकारों से बोलियां आमंत्रित की हैं. यह कदम न्यूनतम 25 फीसदी पब्लिक शेयरहोल्डिंग के बाजार नियामक सेबी के नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है.
DIPAM द्वारा जारी रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (RFP) के मुताबिक, मर्चेंट बैंकरों और कानूनी सलाहकारों को तीन साल के लिए पैनल में शामिल किया जाएगा, जिसे एक साल तक बढ़ाया जा सकता है. मर्चेंट बैंकरों के लिए बोलियां जमा करने की आखिरी तारीख 27 मार्च 2025 तय की गई है.
किस बैंकों और वित्तीय संस्थानों में हिस्सेदारी कम होगी?
सरकार उन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों में हिस्सेदारी कम करने जा रही है, जिनमें अभी तक सेबी द्वारा तय न्यूनतम 25 फीसदी सार्वजनिक हिस्सेदारी के नियम का पालन नहीं हुआ है. वर्तमान में जिन बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है, वे इस प्रकार हैं:
- पंजाब एंड सिंध बैंक – 98.3%
- इंडियन ओवरसीज बैंक – 96.4%
- यूको बैंक – 95.4%
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया – 93.1%
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र – 86.5%
इसके अलावा, सरकार की कुछ वित्तीय संस्थानों और बीमा कंपनियों में भी बड़ी हिस्सेदारी है:
- इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉरपोरेशन (IRFC) – 86.36%
- द न्यू इंडिया एश्योरेंस – 85.44%
- जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन – 82.40%
निजीकरण की दिशा में एक और कदम
सरकार पहले ही IDBI बैंक के निजीकरण की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 के बजट भाषण में दो और सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी, हालांकि अभी इनके नाम सार्वजनिक नहीं किए गए हैं.
चुने गए मर्चेंट बैंकर सरकार को सही समय और हिस्सेदारी बिक्री की प्रक्रिया पर सलाह देंगे. इन्हें A+ (₹2,500 करोड़ से अधिक की डील) और A (₹2,500 करोड़ से कम की डील) दो कैटेगरी में रखा जाएगा. जरूरत के हिसाब से सरकार किसी विशेष सौदे के लिए एक या अधिक बैंकरों को चुन सकती है.
मर्चेंट बैंकरों की मुख्य जिम्मेदारियां होंगी:
- घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार का विश्लेषण
- संभावित निवेशकों को आकर्षित करने के लिए रोड शो
- शीर्ष प्रबंधन और निवेशकों के साथ बैठकें
- संबंधित संस्थानों की विकास संभावनाओं पर प्रकाश डालना
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अगस्त 2026 तक पूरा होगा विनिवेश लक्ष्य
सरकार ने 1 अगस्त 2026 की समयसीमा तय की है, जिसके तहत उन सभी सार्वजनिक बैंकों और वित्तीय संस्थानों को 25 फीसदी सार्वजनिक शेयरहोल्डिंग का नियम पूरा करना होगा. यह कदम निवेशकों के लिए अधिक पारदर्शिता और बाजार में लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए उठाया गया है.
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