FY25 Q4 के लिए 3.9 लाख करोड़ उधार लेगी सरकार, जानें कहां से मिलेगी यह रकम?

अर्थव्यवस्था की धीमी पड़ी रफ्तार को गति देने के लिए सरकार मौजूदा वित्त वर्ष की चौथी तिमाही खर्च बढ़ाने की योजना बना रही है. इसके लिए सरकार ने 3.9 लाख करोड़ रुपये का भारी-भरकम कर्ज लेने की भी योजना बनाई है. जानते हैं सरकार को यह कर्ज कहां सेमिलेगा?

1 साल तक की अवधि के उधार के लिए ट्रेजरी बिल सरकार के पास सबसे आसान तरीका होता है. Image Credit: DEV IMAGES/Moment/Getty Images

केंद्र सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष (FY 25) की चौथी तिमाही (Q4) में पूंजीगत व्यय बढ़ाने के लिए उधार लेने की योजना बनाई है. इस योजना के तहत सरकार 3.9 लाख करोड़ रुपये का भारी-भरकम कर्ज जुटाएगी. सरकार की तरफ से लगातार यह भरोसा दिया जा रहा है कि सरकार खासतौर पर बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं के लिए पूंजीगत व्यय को बढ़ावा देना जारी रखेगी.

केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने पिछले दिनों कहा था कि सरकार सड़क, रेलवे, बंदरगाह, हवाईअड्डे और दूरसंचार जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर पूंजीगत व्यय जारी रखेगी. इसके लिए सरकार ने बजट में पर्याप्त बंदोबस्त किए हैं. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर सरकार उधार भी ले सकती है. सरकार के उधार लेने की यह खबर बैंकों के हवाले से आई है.

कहां से मिलेगा कर्ज

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही के लिए ट्रेजरी बिल के जरिये 3.9 लाख करोड़ रुपये उधार लेने की योजना बना रही है. यह राशि 13 सप्ताह में जुटाई जाएगी. इसमें 91-दिवसीय ट्रेजरी बिल (डीटीबी) के जरिये 1.68 लाख रुपये, 182-दिवसीय डीटीबी के जरिये 1.28 लाख रुपये और 364-दिवसीय डीटीबी के जरिये 98,000 करोड़ रुपये जुटाए जाएंगे. अंतिम तिमाही में ट्रेजरी बिलों के जरिये साप्ताहिक उधारी सात सप्ताह के लिए 28,000 करोड़ रुपये और छह सप्ताह के लिए 33,000 करोड़ रुपये होने की उम्मीद है.

सरकारी बैंक से मिली जानकारी

बिजनेस स्टैंडर्ड ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि यह जानकारी एक सरकारी बैंक के डीलर से मिली है. डीलर का कहना है, ‘हमें सरकार की तरफ से इतना उधार लिए जाने की उम्मीद नहीं थी. असल में फिस्कल डेफिसिट के लक्ष्य के चलते माना जा रहा था कि अंतिम तिमाही में सरकार उधारी में कटौती कर सकती है.’

उम्मीद से ज्यादा उधार

आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता कहती हैं कि “अगर हम कॉम्पेटिटिव और नॉन-कॉम्पेटिटिव इश्यूएंस को ध्यान में रखते हैं, तो यह हायर साइड पर है. लेकिन यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि अंतिम तिमाही में नॉन-कॉम्पेटिटिव बिडिंग कितनी हैं. हालांकि, आखिर में कॉम्पेटिटिव और नॉन-कॉम्पेटिटिव इश्यूएंस मिलाकर बजट में तय राशि से ज्यादा होगी.

क्या है ट्रेजरी बिल

ट्रेजरी बिल असल में भारत सरकार की तरफ से जारी किए गए बॉन्ड यानी वचन पत्र हैं. इनका इस्तेमाल मनी मार्केट से उधारी के जरिये यानी इंस्ट्रूमेंट की तरह किया जाता है. सरकार की तरफ से इन बिल्स के जरिये जुटाए गए उधार के पुनर्भुगतान की गारंटी दी जाती है. इसकी वजह से इसे सबसे सुरक्षित निवेश साधनों में से एक माना जाता है. हालांकि, सरकार इसके बदले किसी तरह का ब्याज नहीं देती है.

कैसे होती है कमाई

सरकार की तरफ से भले ही ट्रेजरी बिल के बदले लिए गए उधार पर कोई ब्याज नहीं दिया जाता है. लेकिन, इन्हें गवर्नमेंट सिक्योरिटी (जी-सेक) के प्रकाशित नामिनल वैल्यू पर छूट के साथ जारी किया जाता है. मोटे तौर पर जब कोई इन्वेस्टर ट्रेजरी बिल खरीदता है, तो उसे यह एक तय डिस्काउंट रेट पर मिलता है. मिसाल के तौर पर अगर कोई 120 रुपये के अंकित मूल्य वाले 91-दिवसीय ट्रेजरी बिल को खरीदता है, तो यह उसे 118.40 रुपये की डिस्काउंटेड प्राइस पर मिलता है. वहीं, मैच्योरिटी पर उस व्यक्ति को बिल के बदले पूरे 120 रुपये वापस मिलते हैं. इस तरह उसे 1.60 रुपये का प्रॉफिट मिलता है.

नहीं कटता है टीडीएस

इस तरह की जी-सेक स्कीम का एक बड़ा फायदा यह है कि इसमें रिटेल इन्वेस्टर्स को बांड रिडीम करते समय TDS नहीं कटाना पड़ता है. इससे बाद में इसे क्लेम करने का झंझट नहीं रहता है.