खत्म होने वाली है गधे की ये खास नस्ल, 7 हजार प्रति लीटर में बिकता है दूध, कभी नहाया करती थी रानियां

हलारी गधों का दूध ₹5,000-7,000 प्रति लीटर बिकता है और यह न्यूट्रास्युटिकल और चिकित्सकीय गुणों से भरपूर है. लेकिन केवल 439 हलारी गधे बचे हैं, और यह नस्ल विलुप्ति के कगार पर है. बीकानेर स्थित NRCE ने जागरूकता अभियान चलाकर किसानों को इनके संरक्षण और दूध उत्पादन के लिए प्रेरित कर रही है.

हलारी गधों के दूध से मिस्र (इजिप्ट) की महारानी नहाया करती थी. Image Credit:

Halari donkey : अगर आपसे कहा जाए कि किसी गधे का दूध ₹5,000 से ₹7,000 प्रति लीटर बिकता है, तो शायद आप विश्वास न करें, लेकिन यह सच है. हम बात कर रहे हैं गुजरात और राजस्थान में पाए जाने वाले हलारी गधे की, जिसका दूध विदेशी बाजार में इतना महंगा बिकता है. इसका उपयोग कॉस्मेटिक प्रोडक्ट बनाने में होता है. यहां तक कहा जाता है कि इसके दूध से मिस्र (इजिप्ट) की महारानी नहाया करती थी. लेकिन आज यह नस्ल खतरे में है, और इनकी संख्या केवल 500 के करीब रह गई है.

कॉस्मेटिक प्रोडक्ट बनाने में होता है यूज

हलारी गधों का दूध दुनिया का सबसे महंगा दूध माना जाता है. यह न्यूट्रास्युटिकल और चिकित्सकीय गुणों से भरपूर है. इसका एक लीटर दूध विदेशी बाजार में ₹5,000 से ₹7,000 तक बिकता है. यह स्किन हाइड्रेशन और झुर्रियों को रोकने के लिए कॉस्मेटिक उत्पादों जैसे साबुन और फेस वॉश बनाने में उपयोग होता है. आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल त्वचा रोगों जैसे एक्जिमा और सोरायसिस के इलाज में होता है. यह विटामिन और पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड से भरपूर है. रिपोर्ट के अनुसार, इन गधों की वर्तमान में कीमत ₹1 लाख से अधिक है.

अस्तित्व पर संकट

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में हलारी गधों की संख्या 8 वर्षों में 71.31% और गुजरात में 70.94% घट गई है. देशभर में केवल 439 हलारी गधे बचे हैं. बीकानेर स्थित नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वाइन्स (NRCE) में 43 हलारी गधों को रखा गया है, जो कुल आबादी का 10% हैं. केंद्र ने किसानों को इन गधों को खरीदने के लिए प्रेरित किया है और उनके चारा-पानी पर निगरानी के लिए ऑटोमेशन प्रोग्राम शुरू किया है.

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2018 में मिला स्वतंत्र नस्ल का दर्जा

2018 में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की नोडल एजेंसी, नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेज (NBAGR) ने हलारी गधों को स्वतंत्र नस्ल का दर्जा दिया था. लेकिन आज यह नस्ल गंभीर संकट में है. इस खतरे को देखते हुए NRCE ने जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कर रही है, जहां किसानों और पशुपालकों को इन्हें बचाने और दूध उत्पादन के लिए पालने की सलाह दी जा रही है.