हल्दीराम पर विदेशियों की नजर, दिख रही है मोटी कमाई, जानें क्या है इरादा
ब्लैकस्टोन और केलॉग जैसे दिग्गजों के बाद अब एक और विदेशी कंपनी ने भारतीय ब्रांड हल्दीराम में दिलचस्पी दिखाई है. यह सिंगापुर की कंपनी है, जिसका नाम टेमासेक है, यह कंपनी की 10 फीसदी हिस्सेदारी लेना चाहती है. इससे पहले भी कई विदेशी ब्रांड्स ने इसमें दांव लगाने की कोशिश की है तो क्यों हल्दीराम में बाहरी निवेशक दिखा रहे हैं दिलचस्पी, जानें वजह.
Haldiram’s snacks: हल्दीराम पर विदेशियों की नजर है, दुनिया के बड़े निवेशक हल्दीराम में हिस्सेदारी खरीदने के लिए लाइन लगाए बैठे हैं. इस भारतीय दिग्गज की देसी बाजार में पकड़ और ब्रांड वैल्यू को देखते हुए ज्यादातर विदेशी कंपनियां इसमें निवेश का मौका तलाश रही हैं. वो इसके जरिए मोटा मुनाफा कमाना चाहती हैं. यही वजह है कि सिंगापुर सरकार के स्वामित्व वाली निवेश कंपनी टेमासेक का नाम भी इसमें सामने आ रहा है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक टेमासेक के हल्दीराम स्नैक्स फूड्स में 10% हिस्सेदारी खरीदने की चर्चा है. इसके लिए अग्रवाल परिवार और टेमासेक के बीच बातचीत भी चल रही है, इसके लिए दोनों ने एक टर्म शीट पर साइन भी किए हैं. यह पहली बार नहीं है जब किसी विदेशी कंपनी ने हल्दीराम में निवेश को लेकर दिलचस्पी दिखाई है. इससे पहले भी कई बाहरी ब्रांड्स ने इसमें दांव लगाने की कोशिश की थी, जिनमें पेप्सिको से लेकर केलॉग जैसी कंपनियां शामिल थीं. तो आखिर क्या वजह है जिसके कारण विदेशी कंपनियों में हल्दीराम में निवेश की होड़ मची है, आज हम आपको इसी के बारे में बताएंगे.
देसी मार्केट पर कब्जा जमाने की कोशिश
लिब्ररलाइजेशन के बाद से पेप्सिको, नेस्ले और केलॉग जैसे विदेशी ब्रांड भारत में रेडी टू ईट फूड बेच रहे हैं, लेकिन ये सभी ब्रांड विदेशी कल्चर में चलने वाले फूड आइटम्स भारतीयों कोे परोस रहे हैं. इसी कमी को दूर करने के लिए हल्दीराम कचौरी, समोसे और भुजिया जैसे देसी आइटम्स को पैकेट में पेश करता है. चूंकि भारतीय जायकेदार खाने के शौकीन हैं, इसलिए हल्दीराम उनके पसंदीदा पैकेज्ड फूड ब्रांड में से एक है. इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसके न सिर्फ नमकीन बल्कि मिठाइयों की भी मार्केट में काफी डिमांड है. बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों में भी लोग इसे चाव से खाते हैं. हल्दीराम की टियर 2 और टियर 3 क्षेत्रों में मौजूद पकड़ को देखते हुए ही विदेशी कंपनियां इसमें निवेश करना चाहती हैं. उनका मानना है कि इसके जरिए वे देसी बाजार में भी अपनी पकड़ मजबूत कर पाएंगे.
ब्रांड वैल्यू का उठाना चाहते हैं फायदा
बार्कलेज हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2024 के अनुसार, हल्दीराम स्नैक्स को भारत की सबसे मूल्यवान नॉन लिस्टेड कंपनी का दर्जा दिया गया है, जिसकी वैल्यूएशन 63,000 करोड़ रुपये है. खाद्य और पेय पदार्थ क्षेत्र में हल्दीराम स्नैक्स 1,29,300 करोड़ रुपये के कुल मूल्य के साथ छठे स्थान पर है. कंपनी 11 संस्थाओं के जरिए काम करती है और इसका नेतृत्व आठ पारिवारिक सदस्य करते हैं. टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2024 में हल्दीराम नागपुर और दिल्ली के ज्वाइंट ऑपरेशन ने 2580 करोड़ रुपये के EBITDA के साथ 12,800 करोड़ रुपये का रेवेन्यू हासिल किया है. टैक्स के बाद उनका लाभ 1350-1400 करोड़ रुपये के बीच रहा. देश के इस बड़े ब्रांड की वैल्यू को भुनाने के मकसद से ही तमाम विदेशी कंपनियां हल्दीराम में हिस्सेदारी खरीदने में दिलचस्पी दिखा रही थीं.
इन कंपनियों ने भी दिखाई थी दिलचस्पी
- रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक मई 2024 में ब्लैकस्टोन के नेतृत्व वाले एक संघ ने हल्दीराम के कारोबार में 75% हिस्सेदारी पर नजर गड़ाए हुए था, लेकिन यह बातचीत सफल नहीं हो सकी, क्योंकि हल्दीराम बड़ी हिस्सेदारी बेचने के लिए उत्सुक नहीं था.
- बाद में ब्लैकस्टोन ने हल्दीराम के स्नैक्स व्यवसाय की 20 फीसदी हिस्सेदारी 8 बिलियन डॉलर के मूल्यांकन पर हासिल करने का लक्ष्य रखा था, मगर हल्दीराम $12 बिलियन के मूल्यांकन की मांग कर रही थी, जिससे बात नहीं बन सकी थी.
- रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2023 में टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स भी हल्दीराम में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिए बातचीत कर रहा था, लेकिन प्रमोटरों की ओर से मांगे गए 10 बिलियन डॉलर (83,300 करोड़ रुपये) के मूल्यांकन से वह संतुष्ट नहीं थे, जिसके चलते डील फाइनल नहीं हो पाई.
- इसके अलावा 2019 में अमेरिका स्थित केलॉग्स ने हल्दीराम में हिस्सेदारी खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी, लेकिन बातचीत सफल नहीं हो पाई थी.
- ऐसी भी खबरें थीं कि निजी इक्विटी फर्म जनरल अटलांटिक भी इस फूड ब्रांड में 10% हिस्सेदारी खरीदना चाहती थी.
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बीकानेर की गलियों से हुई थी शुरुआत
हल्दीराम जो अब एक घरेलू नाम है, इसकी शुरुआत 1937 में बीकानेर की गलियों से हुइ थी. जिसकी शुरुआत गंगा बिशन अग्रवाल ने की थी, उन्हें प्यार से हल्दीराम कहा जाता था. बाद में, व्यवसाय तीन अलग-अलग संस्थाओं में बंट गया, जिनमें से एक दिल्ली में है, जिसे मनोहरलाल (हल्दीराम के दादा) ने शुरू किया था, एक नागपुर में है, जो शिव किशन (हल्दीराम के पोते) ने शुरू किया था और एक कोलकाता में है.