कहानी एयरबस की, 3 देशों ने मिलकर बनाया था पहला विमान, आज हर दूसरा प्लेन इनका
एयरबस की नींव इसलिए रखी गई, ताकी हाई कैपिसिटी वाले जेटलाइनर के लिए एविएशन मार्केट में जगह बनाई जा सके. दूसरी ओर उस समय अमेरिकी कंपनियों का जलवा था, तो इन कंपनियों से मुकाबले के लिए यूरोप के देशों को लिए एयरबस की शुरुआत काफी अहम थी.

विमान बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी एयरबस अब भारत में टाटा के साथ मिलकर एयरक्राफ्ट बनाएगी. गुजरात के वडोदरा में टाटा के प्लांट में दोनों कंपनियां मिलकर C-295 मिलिट्री एयरक्राफ्ट तैयार करेंगी. एयरबस की नींव साल 1870 में फ्रांसीसी और जर्मन एयरोस्पेस कंपनियों के एक कॉन्सॉर्टियम (संघ) के रूप में रखी गई थी. बाद में इस ग्रुप में ब्रिटिश और स्पेनिश एयरोस्पेस कंपनियां भी शामिल हो गईं. आज एयबस कंपनी का एविएशन सेक्टर पर कब्जा है. कुल मार्केट की 60 फीसदी हिस्सेदारी पर इसका कब्जा है. यानी हर दूसरा विमान एयरबस का है. कंपनी का 2023 का रेवेन्यू 65,446 मिलियन यूरो रहा है.
कंपनी की को-ऑनरशिप जर्मन-फ्रेंच-स्पैनिश यूरोपीय एयरोनॉटिक डिफेंस एंड स्पेस कंपनी (EADS) के पास है, जिनकी 80 फीसदी हिस्सेदारी है और ब्रिटेन की BAE सिस्टम्स के पास है इसकी 20 फीसदी हिस्सेदारी है.
क्यों रखी गई थी एयरबस की नींव
एयरबस की नींव इसलिए रखी गई, ताकी हाई कैपिसिटी वाले जेटलाइनर के लिए एविएशन मार्केट में जगह बनाई जा सके. दूसरी ओर उस समय अमेरिकी कंपनियों का जलवा था, तो इन कंपनियों से मुकाबले के लिए यूरोप के देशों को लिए एयरबस की शुरुआत काफी अहम थी.
एयरबस का पहला विमान
इस ग्रुप ने का पहला विमान एयरबस A300 था, जो साल 1974 में सर्विस आया. यह पहला वाइड-बॉडी जेटलाइनर था और फिर यहीं इस कमर्शियल विमान की कंपनी ने उड़ान भरी. क्योंकि एयरबस की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले इंजन नहीं बन पाए इसलिए शुरुआती डिजाइन को A300 नाम दिया गया और उसे 250 सीटों वाले एडीशन में बदल दिया गया.
कब बनी एयरबस की नींव की योजना?
एयरबस प्रोग्राम 1965 में तब शुरू हुआ, जब फ्रांस और जर्मनी की सरकारों ने यूरोपीय हाई कैपिसिटी और कम दूरी के ट्रैवल के लिए जेट बनाने के लिए एक ग्रुप बनाने की चर्चा की. अगले वर्ष फ्रांसीसी, जर्मन और ब्रिटिश अधिकारियों ने घोषणा की कि सुद एविएशन (फ्रांस), अर्गे एयरबस (जर्मन एयरोस्पेस कंपनियों का एक अनौपचारिक समूह) और हॉकर सिडली एविएशन (ब्रिटेन) कम दूरी के क्षेत्र के लिए 300 सीटों वाले एयरलाइनर को डेवलप करने से लिए रिसर्च करेंगे.
ब्रिटिश सरकार ने चुना बाहर का रास्ता
1969 में ब्रिटिश सरकार इस प्रोग्राम से बाहर हो गई, लेकिन फ्रांस और जर्मनी ने आगे बढ़ने का फैसला किया. मूल रूप से 50 फीसदी फंडिंग फ्रांस के एयरोस्पेशियल (बाद में एयरोस्पेशियल माट्रा ) से आई थी , जो नॉर्ड एविएशन और फ्रांसीसी मिसाइल निर्माता SEREB के साथ सुद एविएशन के विलय से बनी थी. स्पेन की कॉन्स्ट्रुक्शियोनेस एरोनॉटिकस एसए 1971 में 4.2 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ इसमें शामिल हुई.
ब्रिटिश कंपनी की वापसी
साल 1977 में हॉकर सिडली और अन्य ब्रिटिश कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर एक सिंगल सरकारी समूह, ब्रिटिश एयरोस्पेस (बाद में बीएई सिस्टम्स ) बनाया गया. फिर यह साल 1979 में 20 फीसदी हिस्सेदारी के साथ एयरबस में एक पार्टनर के रूप में शामिल हो गई. साल 2000 में बीएई सिस्टम्स को छोड़कर सभी पार्टनर का ईएडीएस में विलय हो गए. इस तरह ईएडीएस ने एयरबस का 80 प्रतिशत हिस्सा हासिल कर लिया.
पहले विमान की बिक्री रही खराब
A300 की शुरुआत में खराब बिक्री हुई क्योंकि एयरलाइंस कंपनियों को नई कंपनी एयरबस पर भरोसा नहीं था. हालांकि, कंपनी को एक सफलता उस वक्त हाथ लगी, जब अमेरिकी कैरियर ईस्टर्न एयर लाइन्स ने विमान के लिए लीज पर देना की व्यवस्था की. एयरबस को दूसरा बढ़ावा 1978 में मिला, जब उसने एक छोटी कैपिसिटी, मध्यम दूरी के विमान को विकसित करने के लिए एक प्रोग्रम शुरू किया. A310 विमान ने पहली बार 1982 में उड़ान भरी और तीन साल बाद सर्विस में शामिल हुआ.
बड़े बॉडी वाले विमान की लॉन्चिंग
साल 1987 में एयरबस ने लंबी दूरी के एयरलाइनर सेगमेंट में अपनी प्रोडक्ट लाइन का विस्तार करने के लिए एक ही फ्यूजलेज और विंग पर आधारित दो बड़े बॉडी वाले विमान लॉन्च किए. चार इंजन वाले A340 ने 1993 में सर्विस में प्रवेश किया और एक साल बाद ट्विन इंजन A330 ने मार्केट में एंट्री की. खासतौर पर ट्विन इंजन A330 एक बेहतरीन एयरलाइनर के साथ-साथ मालवाहक और मिलिट्री के लिए बेहद कारगर साबित हुआ. साल 2007 में एयरबस ने दुनिया के सबसे बड़े एयरलाइनर अल्ट्रालॉन्ग-रेंज A380 के साथ लंबी दूरी के बाजार में एक और जगह बनाई. ट्विन इंजन वाले A350 में नए फ्यूल एफिशिएंट रोल्स-रॉयस इंजन और हल्का एयरफ्रेम लगा था.
ग्रोथ और फंडिंग
एयरबस के शुरुआती वर्षों में सदस्य देशों की सरकारों ने हर एक नए विमान की रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए चुकाने योग्य कर्ज के रूप में प्रोग्राम लॉन्च कर सहायता की. हालांकि, सरकारों द्वारा वहन की जाने वाली लागत का हिस्सा धीरे-धीरे कम हो गया. 1989 में A321 के डेवलपमेंट से एयरबस प्रोजेक्ट को पूरी तरह से आंतरिक रूप से कैश फ्लो और बाहरी कमर्शियल सोर्स के जरिए फंड किया गया. साल 1997 में, बोइंग के नेतृत्व में एयरबस ने A319 विमान पर आधारित एयरबस कॉरपोरेट जेटलाइनर के लिए एक प्रोग्राम शुरू करके बिजनेस जेट बाजार में विस्तार किया. दो साल बाद एयरबस मिलिट्री कंपनी को एक सहायक कंपनी के रूप में बनाया गया, जिसका नाम A400M था.
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