कभी दुनिया के टॉप-10 रईसों में शामिल थे अनिल अंबानी, अब धड़ाधड़ बिक रहीं कंपनियां, कहां कर बैठे थे गलती?
अनिल अंबानी की कंपनियों की वित्तीय सेहत खराब होती चली गई और फिर कई पर से उन्हें अपना नियंत्रण गंवाना पड़ा. ताजा मामला रिलायंस कैपिटल का है. अनिल अंबानी भारत के उद्योग जगत का चमकता सितारा थे. लेकिन फिर गड़बड़ी कहां हुई.
Anil Ambani Decline Story: एक दौर था जब अनिल अंबानी भारत के उद्योग जगत का चमकता सितारा थे. साल 2008 में 42 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ दुनिया के अमीरों की लिस्ट में वे छठे पायदान पर थे. लेकिन फिर उनके बुरे दिन शुरू हो गए और एक के बाद एक कारोबारी झटके लगने लगे. अनिल अंबानी की कंपनियों की वित्तीय सेहत खराब होती चली गई और फिर कई पर से उन्हें अपना नियंत्रण गंवाना पड़ा. ताजा मामला रिलायंस कैपिटल का है, जिसे अशोक हिंदुजा की अगुआई वाली इंडसइंड इंटरनेशनल होल्डिंग्स लिमिटेड (IIHL) ने अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कैपिटल का अधिग्रहण पूरा कर लिया है. दिवालिया हो चुकी इस कंपनी पर 5,600 करोड़ रुपये का कर्ज था, जिसका भुगतान IIHL ने किया है.
दिग्गज कारोबारी धीरूभाई अंबानी के छोटे बेटे अनिल अंबानी ने 1986 में अपने पिता के स्ट्रोक के बाद रिलायंस के वित्तीय कामकाज को संभालने की शुरुआत की. अपने बड़े भाई मुकेश अंबानी के साथ मिलकर उन्होंने 2002 में अपने पिता की मृत्यु के बाद रिलायंस कंपनियों का संयुक्त नेतृत्व संभाला.
कारोबार का बंटवारा
हालांकि, कंपनियों पर कंट्रोल को लेकर मतभेदों के कारण साल 2005 में दोनों भाइयों के बीच कारोबार का बंटवारा हो गया. इस बंटवारे में मुकेश के हिस्से ऑयल और पेट्रोकेमिकल का कारोबार आया. जबकि अनिल अंबानी के हिस्से में टेलीकॉम, पावर जेनरेशन और फाइनेंशियल सर्विसेज जैसे न्यू एज के बिजनेस आए. इसके बाद अनिल खूब सुर्खियों में रहे, इसी दौर में वे दुनिया के टॉप रईसों में की सूची में भी शामिल हुए. लेकिन एक बार जब गिरावट का दौर शुरू हुआ, तो फिर वो संभल नहीं सके और यह दौर अब भी जारी है.
रिपोर्ट के अनुसार, अनिल अंबानी के कंट्रोल से मोटे तौर अब तक पांच कंपनियां निकल चुकी हैं.
रिलायंस कैपिटल
मॉरीशस बेस्ड इंडसइंड इंटरनेशनल होल्डिंग्स लिमिटेड (IIHL) अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस कैपिटल के लिए विजयी दावेदार के रूप में उभरी थी, जिसने रिलायंस कैपिटल के लिए 9,650 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी. बाद में, निगम ने कंपनी की सॉल्वेंसी को मजबूत करने के लिए अतिरिक्त 200 करोड़ रुपये का भुगतान किया. अशोक हिंदुजा की अगुवाई वाली कंपनी ने अब रिलायंस कैपिटल का अधिग्रहण पूरा कर लिया है.
रिलायंस बिग प्राइवेट लिमिटेड
रिलायंस बिग प्राइवेट लिमिटेड (RBPL) पर कभी अनिल अंबानी का कंट्रोल हुआ करता था. यह रेडियो और टीवी प्रोग्राम प्रोडक्शन समेत रेडियो और टेलीविजन से जुड़े कारोबार में शामिल थी. अगस्त 2023 में कंपनी ने कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) में प्रवेश किया था. इसकी समाधान योजना को NCLT की मुंबई बेंच ने फरवरी 2025 में मंजूरी दी, जिसमें उपाध्याय और एसीएमई क्लीनटेक ने इसका अधिग्रहण किया था.
रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग
अनिल अंबानी समूह की कंपनी रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग (RNEL) का पिछले साल स्वान एनर्जी लिमिटेड ने अधिग्रहण किया था. इसके बाद कंपनी का नाम बदलकर स्वान डिफेंस एंड हैवी इंडस्ट्रीज लिमिटेड कर दिया है.
दिसंबर 2023 में, राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण ने RNEL के लिए स्वान एनर्जी लिमिटेड की 2,100 करोड़ रुपये की बोली को मंजूरी दी थी.
रिलायंस निप्पॉन लाइफ एसेट मैनेजमेंट
जापान की निप्पॉन लाइफ इंश्योरेंस ने अनिल अंबानी द्वारा नियंत्रित्त फाइनेंशियल कंपनी रिलायंस कैपिटल से रिलायंस निप्पॉन लाइफ एसेट मैनेजमेंट (RNAM) में 75 फीसदी हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया. RNAM के प्रमोटर्स में से एक रिलायंस कैपिटल इंश्योरेंस ज्वाइंट वेंचर में अपनी शेष 4.28 फीसदी हिस्सेदारी को लगभग 700 करोड़ रुपये में बेचने का फैसला किया था. इसने प्रमोटर हिस्सेदारी को कम करके सहमति प्रबंधन कंपनी में 25 फीसदी की न्यूनतम पब्लिक शेयर होल्डिंड हासिल करने के लिए RNAM में अपनी 17.06 प्रतिशत हिस्सेदारी को तीन किस्तों में 2,480 करोड़ रुपये में पहले ही बेच दिया था.
रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड
ऑथम इन्वेस्टमेंट्स एंड इंफ्रास्ट्रक्चर ने अनिल अंबानी की पूर्व कंपनी रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड (RHFL) का 3351 करोड़ रुपये का अधिग्रहण पूरा किया था. जो दिवालियापन अदालतों के बाहर कर्ज में डूबी नॉन- बैंकिंग फाइनेंस कंपनी (NBFC) का सबसे बड़ा समाधान था.
आखिर कैसे डूबा अनिल अंबानी का कारोबार?
जानकारों का मानना है कि कारोबार के बंटवारे के तुरंत बाद अनिल ने पूंजी-खपत वाले प्रोजेक्ट में हाथ डाल दिया. इंडिया टुडे ने एक मार्केट एनालिस्ट के हवाले से छापा था कि अनिल अंबानी के फैसले सावधानी से तैयार की गई रणनीति से नहीं निकले थे. वे महत्वाकांक्षा से प्रेरित थे.
एक अन्य ऑब्जर्वर ने कहा कि राजनेताओं के कहने पर पब्लिक सेक्टर के बैंकों (PSB) द्वारा फंडेड बड़ी परियोजनाओं के लिए बोली लगाना फैशन था. 2008 में लेहमैन ब्रदर्स के पतन के बाद आई आर्थिक मंदी से पहले वे घरेलू और विदेशी दोनों ही जगहों पर अधिग्रहण और विस्तार पर पैसे खर्च करने के मूड में थे.
मंदी के बाद बदल गया खेल
मंदी के बाद माहौल में भारी बदलाव देखने को मिला. पब्लिक सेक्टर के बैंक, जिन्होंने बुनियादी ढांचे और बिजली परियोजनाओं को अंधाधुंध तरीके फंड जारी करके भारी NPA का बोझ अपनी बैलेंसशीट में जमा कर लिया था. अब वे इन क्षेत्रों को और अधिक फंड जारी करने के मूड में नहीं थे. जबकि कई परियोजनाएं भूमि अधिग्रहण के मुद्दों या पावर प्लांट के लिए ईंधन लिंकेज की समस्याओं के कारण शुरू ही नहीं हो पाईं. इस तरह अनिल अंबानी के कारोबार के लिए बुरा दौर शुरू हुआ, जब अब तक नहीं थमा है.
हालांकि, इन चुनौतियों के बावजूद, भारत में विभिन्न उद्योगों पर अनिल अंबानी के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक होने से लेकर गंभीर वित्तीय और कानूनी कठिनाइयों का सामना करने तक का उनका सफर व्यापार जगत की अस्थिर प्रकृति को उजागर करता है. उनके एक समय के संपन्न साम्राज्य का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है.
यह भी पढ़ें: चाय की टपरी हो या सब्जी की दुकान… UPI से पेमेंट लेने पर होगी कमाई, सरकार देगी इतना पैसा