Budget 2025: डिसइन्वेस्टमेंट नहीं अब डिविडेंड, मोदी सरकार की कमाई का नया जरिया, बजट में दिखेगा असर
मोदी सरकार की डिसइन्वेस्टमेंट पॉलिसी में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. पिछले 4 साल के आंकड़ों से साफ है कि वह अब सरकारी कंपनियों के डिविडेंड से मिलने वाली राशि से कहीं ज्यादा कमाई कर रही है.
करीब तीन दशक से भी ज्यादा समय से सरकार के खजाने को भरने का सबसे अहम जरिया डिसइन्वेस्टमेंट रहा है. लेकिन लगता है कि अब सरकार की प्राथमिकता बदल रही है और अब से सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने से ज्यादा दूसरे दांव से अच्छी कमाई का भरोसा हो रहा है. जी हां हम बात डिविडेंड की कर रहे हैं. मोदी सरकार के पिछले 4 साल के आंकड़े देखें तो डिविडेंड उसकी कमाई का बड़ा जरिया बन गया है. पिछले 4 सालों के आंकड़े बताते हैं कि सरकार ने डिसइन्वेस्टमेंट की तुलना में डिविडेंड से ज्यादा पैसा जुटाया है. इस दौरान सरकार को डिविडेंड से 2.30 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई हुई है, जबकि डिसइन्वेस्टमेंट से उसे करीब 74 हजार करोड़ रुपये मिले हैं. ऐसे में लगता है कि पॉलिसी लेवल पर वह दिन गए जब सरकार बजट में डिसइन्वेस्टमेंट के जरिए बड़ी कमाई का ऐलान करती थी. पिछले रिकॉर्ड को देखा जाय तो इस बार भी बजट में डिसइन्वेस्टमेंट पर बड़े ऐलान की उम्मीद कम ही नजर आ रही हैं.
डिविडेंड से सरकार का भर रहा खजाना
पिछले 4 सालों के आंकड़ों में सरकार को डिसइंवेस्टमेंट के जरिए 73,960.27 करोड़ रुपये जुटाए, वहीं सरकार को डिविडेंड के जरिए पिछले चार सालों में 230,949.61 करोड़ मिला है. डिविडेंड ज्यादा मिलने की वजह सरकारी कंपनियों का बेहतर परफॉर्मेंस . जिसकी वजह से मुनाफा बढ़ा.ऐसे में आस लगाया जा रहा है कि इस बार के बजट में सरकार के बजट में डिसइंवेस्टमेंट शब्द का इस्तेमाल थोड़ा कम सुनने को मिलेगा.
साल 2024 में सरकारी कंपनियों के शेयरों ने भी शानदार प्रदर्शन किया. जहां निफ्टी ने 10.41% का रिटर्न दिया, वहीं PSU स्टॉक्स ने BSE पर 29% का रिटर्न दिया. इससे संकेत मिलता है कि सरकार भविष्य में डिसइन्वेस्टमेंट से अधिक डिविडेंड पर ध्यान केंद्रित कर सकती है. जानकारों का मानना है कि अगर सरकार पीएसयू में अपनी हिस्सेदारी बनाए रखती है, तो उसे डिविडेंड के रूप में लगातार कमाई होगी और जरूरत पड़ने पर वह अपनी हिस्सेदारी बेचकर अतिरिक्त धन भी जुटा सकती है.
पिछले 4 सालों के आंकड़े बताते हैं कि:
वित्तीय वर्ष | डिसइन्वेस्टमेंट ( करोड़ रुपये) | डिविडेंड ( करोड़ रुपये) |
FY2024-25 | 8,625.05 | 48,375.77 |
FY2023-24 | 16,507.29 | 63,749.28 |
FY2022-23 | 35,293.52 | 59,531.50 |
FY2021-22 | 13,534.41 | 59,293.06 |
Total | 73,960.27 | 230,949.61 |
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1991 से शुरू हुआ था डिसइन्वेस्टमेंट
पीवी.नरसिम्हा राव सरकार ने 1991-92 में उदारीकरण की नीति के साथ डिसइन्वेस्टमेंट की शुरुआत की थी. उस समय 31 सरकारी कंपनियों का डिसइन्वेस्टमेंट किया गया, जिससे 3,038 करोड़ रुपये सरकारी खजाने में आए. 1996 में जीवी रामकृष्णा की अध्यक्षता में एक डिसइन्वेस्टमेंट कमिटी बनाई गई. यह कमिटी सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया की निगरानी करती थी. हालांकि, 2004 में वाजपेयी सरकार ने इसे बंद कर दिया. इसके बाद बाजपेयी सरकार के दौर में डिसइन्वेस्टमेंट का दूसरा चरण शुरू हुआ था. जब अलग से इसके लिए बकायदा विभाग बना था.इस दौरान कुल 12 सरकारी कंपनियों की स्ट्रैटेजिक सेल की गई थी. और सरकार ने 5 साल के कार्यकाल में 24619 करोड़ रुपये जुटाए थे. बाजपेयी सरकार के दौरान मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल में सरकार ने डिसइन्वेस्टमेंट के जरिए 1,14,045 करोड़ रुपये जुटाए थे. चौथे चरण के तहत 2014-20 के दौरान मोदी सरकार ने डिसइन्वेस्टमेंट को जारी रखा और वित्त वर्ष 20 तक सरकार ने कुल 3.05 लाख करोड़ रुपये जुटाए. लेकिन पिछले 4 साल का आंकड़ा दूसरी कहानी बता रहा है.यानी अब कमाई का हथियार डिविडेंड है, न कि डिसइन्वेस्टमेंट हालांकि इसके राजनितिक मायने भी हैं.
सोर्स- NIPFP