रतन टाटा के चेयरमैन बनने के बाद नई ऊंचाइयां छूता गया टाटा ग्रुप, कई नए मुकाम किए हासिल

टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का 9 अक्टूबर की रात देहांत हो गया. उन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर टाटा समूह को ऊंचाई पर पहुंचा दिया. उनके नेतृत्व में कंपनी ने कई नए मुकाम हासिल किए. आइए जानते हैं कैसे-कैसे बढ़ा टाटा का बिजनेस.

टाटा समूह की शुरुआत की कहानी. Image Credit: Getty image

टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का 9 अक्टूबर की रात देहांत हो गया. भले ही वे इस दुनिया से चले गए हों उनके कामों को हमेशा देश याद रखेगा. टाटा ने देश के विकास में महती भूमिका निभाई है. न केवल उन्होंने टाटा ग्रुप को शीर्ष पर पहुंचाया है, बल्कि देश का प्रगति में भी योगदान दिया है. 86 वर्ष की उम्र में वे दुनिया से चले गए, लेकिन लोग उनके कामों को सदैव याद रखेंगे. उनके जाने से समूचे बिजनेस जगत के साथ-साथ आम जनता भी दुखी है. उन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर टाटा समूह को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया. उनके नेतृत्व में कंपनी ने कई नए मुकाम हासिल किए.

रतन टाटा का बचपन उनकी दादी के साथ बीता. मुंबई में उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई लिखाई की. उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चले गए. सन 1962 में भारत लौटने के बाद उन्होंने टाटा स्टील में एक कर्मचारी के तौर पर ज्वाइन किया और बाद में उसी कंपनी के चेयरमैन बने. रतन टाटा को केवल 21 साल की उम्र में टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनाया गया था. उन्होंने महज 21 साल की उम्र में कंपनी की बागडोर बखूबी संभाली. उनके नेतृत्व में कंपनी ने कई ऊंचाइयां देखीं.

कैसे बढ़ा बिजनेस

टाटा ग्रुप के चेयरमैन बनने के बाद से ही रतन टाटा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. कंपनी तरक्की के लिए नए-नए प्रोजेक्ट और नई-नई कंपनियां शुरू कीं. कुछ चली कुछ नहीं चलीं. उनके नेतृत्व में 1996 में टेलीकॉम कंपनी टाटा टेली सर्विसेज की स्थापना की गई.

2004 में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज टीसीएस मार्केट में लिस्ट हुई. इस कंपनी ने टाटा के बिजनेस को काफी ऊंचाइयों तक पहुंचाया. अभी भी इस कंपनी का मार्केट कैप टाटा की बाकी कंपनियों से ज्यादा है. यह दुनिया की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक बनने में सफल रही. इसके अलावा रतन टाटा ने 2007 में कोरस स्टील का अधिग्रहण किया जो कि दुनिया के टॉप स्टील प्रोड्यूसर में से एक बनी.

टाटा ने साल 2008 में अमेरिकी कार निर्माता कंपनी फोर्ड के साथ डील करके न केवल अपने अपमान का बदला लिया, बल्कि अपनी कंपनी की वैल्यू को भी बढ़ाया. वह 2012 तक टाटा संस के चेयरमैन रहे. उनको अपने कार्यकाल में टाटा को एक नए मुकाम तक पहुंचाया.

रतन टाटा की मौत की खबर के बाद से ही लोग काफी दुखी हैं. जो लोग उनसे जुड़े हैं वे तो दुखी हैं ही. इसके साथ ही देश का आम आदमी, ठेला चलाने वाले से लेकर के बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने शोक संवेदना प्रकट की है. वे देश के लाखों-करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा हैं.