देश के फॉरेक्स रिजर्व में लगातार 7वें हफ्ते गिरावट, शीर्ष स्तर से 48 अरब डॉलर घटा
India Forex Reserve Plunges: भारत के फॉरेक्स रिजर्व में आई भारी गिरावट का असर रुपये पर भी देखने को मिल सकता है. साथ ही सोने के भंडार में 2.068 अरब डॉलर की कमी आई है. अब यह भंडार 65.746 अरब डॉलर पर पहुंच गया है.
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार यानी फॉरेक्स रिजर्व में गिरावट आई है. हर देश विदेशी करेंसी समेत गोल्ड का रिजर्व रखता है. लेकिन ताजा आंकड़ों के अनुसार इसमें कमी हो गई है. इस गिरावट का असर भारत और यहां के बिजनेस पर भी पड़ता है. चलिए जानते हैं कि फिलहाल भारत के फॉरेक्स रिजर्व में कितना जमा है, कितने की गिरावट आई है और सोने का कितना भंडार है?
पूरी दुनिया में डॉलर समेत कुछ करेंसी बहुत महत्वपूर्ण होती है, इसलिए हर देश इसको रिजर्व में अपने पास रखता है. लेकिन भारत के फॉरेक्स रिजर्व में गिरावट आई है. 22 नवंबर को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी RBI ने आंकड़े जारी कर बताया कि, 15 नवंबर को भारत के विदेशी मुद्रा भंडार यानी फॉरेक्स रिजर्व में 17.76 अरब डॉलर की भारी गिरावट हुई है. अब फॉरेक्स रिडर्व घटकर 657.89 अरब डॉलर रह गया है. लगातार सातवें हफ्ते से गिरावट जारी है.
एक हफ्ते में कितनी गिरावट?
इसके पहले वाले हफ्ते जो 8 नवंबर को खत्म हुआ, में भी विदेशी मुद्रा भंडार में 6.47 अरब डॉलर की कमी दर्ज की गई थी. सितंबर के अंत में यह भंडार अपने उच्चतम स्तर 704.88 बिलियन डॉलर पर था, लेकिन तब से लगातार इसमें गिरावट आ रही है.
15 नवंबर को खत्म हुए हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार का मुख्य हिस्सा, विदेशी मुद्रा संपत्ति यानी Foreign Currency Assets, 15.55 अरब डॉलर घटकर 569.83 अरब डॉलर रह गया.
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सोने का भंडार भी घटा
इसी दौरान में भारत के सोने के भंडार में भी 2.068 अरब डॉलर की कमी आई है. अब यह भंडार 65.746 अरब डॉलर पर पहुंच गया है.
विदेशी मुद्रा भंडार में हुई गिरावट बड़ी है, चिंताजनक बात यह है कि गिरावट लगातार जारी है. इसके दो बड़े असर देखने को मिल सकते हैं. एक तो इससे रुपये पर दबाव पड़ सकता है यानी रुपया और कमजोर होगा, साथ ही साथ इंपोर्ट महंगा हो जाएगा.
इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड यानी IMF के पास भी भारत का फॉरेक्स रिजर्व जमा होता है. यहां भी 51 मिलियन डॉलर की गिरावट हुई और यह 4.247 अरब डॉलर रह गई है.
कुल मिलाकर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में यह लगातार गिरावट रुपये पर बढ़ते दबाव और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता का संकेत देती है. इससे देश की आयात क्षमता और मुद्रा स्थिरता पर प्रभाव पड़ सकता है.