क्या अमेरिका और क्या यूरोप… चीन के दबदबे के आगे सब बेदम, अब भी है मौका सबक सीख ले भारत
Economic Survey 2025: भारत ने भी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं. लेकिन चीन पर निर्भरता को कम करने की दिशा में अब भारत को गंभीर तरीके से सोचने की जरूरत है और आने वाले समय में उसे कुछ बड़े बदलाव करने होंगे.
Economic Survey 2025: दुनिया की अर्थव्यवस्था एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, जहां लंबे समय से चले आ रहे सिद्धांतों और पैटर्न को फिर से री वैल्यूएट किया जा रहा है. कुछ मामलों में पुराने सिद्धांत अपनी प्रासंगिकता खो रहे हैं. इस बदलाव में ग्लोबल सप्लाई चेन में चीन की प्रमुख भूमिका भी शामिल है, जो आर्थिक परिदृश्य को नया आकार दे रही है. इस वजह से कई देश अब ऐसे माहौल में काम कर रहे हैं जो उनके पहले के वातावरण से बिल्कुल अलग है, जहां पारंपरिक नियमों पर पुनर्विचार किया जा रहा है और इस बात को लेकर अनिश्चितता है कि उनकी जगह कौन लेगा. भारत ने भी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं. भारत सर्विसेज सेक्टर से हटकर अपनी पहचान एक मजबूत मैन्युफैक्चरिंग देश के रूप में बनाने की कोशिश कर रहे है, लेकिन उसे महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. खासतौर से चीन की सप्लाई चेन पर निर्भरता ने उसकी राह मुश्किल की है.
मैन्युफैक्चरिंग और एनर्जी ट्रांजिशन
आर्थिक सर्वेक्षण 2025 के अनुसार, चीन ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग और एनर्जी ट्रांजिशन इकोसिस्टम में एक बड़ी ताकत है. इसने अपनी प्रतिस्पर्धा और आर्थिक नीति का लाभ उठाकर ग्लोबल सप्लाई चेन के लिए आज के समय में अहम माने जाने वाले प्रमुख रिसोर्स तक पहुंचने और उनपर नियंत्रण करने के लिए रणनीतिक फायदा उठाया है.
सबसे आगे निकल जाएगा चीन
साल 2020 में एशिया, यूरोप और लैटिन अमेरिका में संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों ने ग्लोबल इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन के क्षेत्र में बड़ी शक्ति थे. जबकि दो दशकों की जोरदार ग्रोथ के बावजूद चीन का योगदान सिर्फ 6 फीसदी था. लेकिन परिस्थितियां तेजी बदली हैं और केवल 30 साल बाद UNIDO का अनुमान है कि ग्लोबल मैन्युफैक्चरिग में चीन की हिस्सेदारी 45 फीसदी होगी. इस तरह चीन अकेले अमेरिका और उसके सहयोगियों से बराबरी या उससे आगे निकल जाएगा.
यह किसी एक देश का मैन्युफैक्चरिंग में दबदबे का ऐसा स्तर है जो विश्व इतिहास में केवल दो बार पहले देखा गया है. औद्योगिक क्रांति की शुरुआत में ब्रिटेन और द्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद अमेरिका में ऐसी ग्रोथ देखने को मिली थी. इसका मतलब है कि उत्पादन के एक बढ़ते वॉर में इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि पूरी दुनिया एकजुट होकर अकेले चीन को हरा सकती है.
बढ़ती जा रही चीन पर निर्भरता
मैन्युफैक्चरिग सेक्टर में चीन के उदय का प्रभाव ऑटोमोबाइल (विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहन) मैन्युफैक्टरिंग, मिनिरल्स (तांबा, लिथियम, निकल, कोबाल्ट, ग्रेफाइट, आदि) की माइनिंग और क्लीन एनर्जी उपकरणों आदि में देखा जाता है. ग्लोबल ऑटो मार्केट में चीन की दखल ने जर्मनी और जापान जैसी अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया है. इसके अलावा अहम मिनिरल्स और अन्य आर्थिक संसाधनों के ग्लोबल डिस्ट्रीब्यूशन पर हावी है, जिससे आने वाली जेनरेशन के लिए निर्भरता बढ़ती जा रही है.
भारत की पहल
भारत के घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने में प्रभावशाली प्रगति हुई है, जिसमें FAME India, ऑटो कॉम्पोनेंट्स के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना और भारत में इलेक्ट्रिक पैसेंजर कारों की मैन्युफैक्चरिंग बढ़ावा देने की योजना (SPMEPCI) जैसी अन्य योजनाएं शामिल हैं. ये योजनाएँ घरेलू सप्लाई चेन बनाने की आवश्यकता के बारे में भारत सरकार की जागरूकता को प्रदर्शित करती हैं. ये अच्छी नींव हैं.
भारत को क्या करना होगा?
इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि भारत को भविष्य की नीतियों को अपने कवरेज के दायरे को इस तरह से बड़ा बनाना होगा कि वे इलेक्ट्रिक व्हीकल उद्योग की बढ़ती जरूरतों के अनुकूल हों. जैसे-जैसे EV की मांग में तेजी आएगी, इंपोर्ट होने वाले कॉम्पोनेंट्स जैसे DC मोटर्स, ई-मोटर मैग्नेट और अन्य इलेक्ट्रिल पार्ट्स पर निर्भरता बढ़ने की संभावना है. प्रमुख EV निर्माताओं ने अपने ओवरऑल मैटेरियल एक्सपेंडिचर में चीनी आयात के बढ़ते रेश्यो को नोट किया है, जो कुछ रिसोर्स और टेक्नोलॉजी की जानकारी के लिए चीन पर महत्वपूर्ण निर्भरता को दिखाता है.
ऐसे जोखिमों से निपटने के लिए एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल मैन्युफैक्चरिंग के लिए पीएलआई योजना और खानजी बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) की स्थापना जैसी पहल की गई है. आगे बढ़ते हुए, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए पॉलिसियों को सोडियम-आयन और सॉलिड-स्टेट बैटरी जैसी एडवांस्ड बैटरी टेक्नोलॉजी में बढ़े हुए R&D ऑपरेटेड अधिक आत्मनिर्भर इकोसिस्टम को बढ़ावा देकर सप्लाई चेन को रिस्क फ्री करने पर घ्यान देना चाहिए.
इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से भारतीय ऑटोमोटिव सेक्टर को लॉन्ग टर्म में लाभ मिल सकता है. इस बीच, पीएलआई योजनाएं ईवी सेल (लिथियम-आयन सेल) के निर्माण को भी रिवॉर्ड कर सकती हैं. इसके अलावा, भारत को उन अन्य देशों के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर एग्रीमेंट स्थापित करने का लक्ष्य रखना चाहिए.
भारत को जरूरत
इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने में कुछ बातों का ध्यान रखा होगा. उदाहरण के लिए, एक पारंपरिक कार की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहन को बनाने के लिए लगभग 6 गुना अधिक खनिजों की आवश्यकता होती है, जिनमें से अधिकांश का उपयोग ईवी बैटरी के उत्पादन में किया जाता है. इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मैन्युफैक्चरिंग के लिए कई महत्वपूर्ण कई खनिज भारत में मुश्किल से उपलब्ध हैं या प्रोसेस किए जाते हैं.
ग्लोबल सोलर फोटोवोल्टिक सेल
पिछले एक दशक में ग्लोबल सोलर फोटोवोल्टिक सेल (PV) मैन्युफैक्चरिंग क्षमता यूरोप, जापान और अमेरिका से चीन में तेजी से ट्रांसफर हुई है. इससे नई फोटोवोल्टिक सेल सप्लाई क्षमता में 50 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है. यह यूरोप की तुलना में 10 गुना अधिक है. सोलर पैनलों (पॉलीसिलिकॉन, सिल्लियां, वेफ़र्स, सेल और मॉड्यूल) में चीन की हिस्सेदारी सभी मैन्युफैक्चरिंग चरणों में 80 फीसदी से अधिक है. दिलचस्प बात यह है कि यह वैश्विक पीवी मांग में चीन की हिस्सेदारी दोगुना से भी अधिक है.
चीन का विंड एनर्जी में दबदबा
दुनिया की लगभग 60 फीसदी विंड एनर्जी स्थापित क्षमता चीन से आती है, चीन में दुनिया की लगभग 80 फीसदी बैटरी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता भी है. अकेले 2022 में चीन ने सोल और विंड एनर्जी, इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरी टेक्नोलॉजी में विभिन्न निवेशों के लिए 546 अरब अमरीकी डॉलर अलॉट किए, जबकि इन सेक्टर्स में अमेरिका और यूरोपीय संघ ने उसी वर्ष 321 अरब अमरीकी डॉलर का निवेश किया.
कैसे कम होगी निर्भरता
पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क का विस्तार करना विदेशी सप्लाई चेन पर निर्भरता को कम करने का एक और तरीका है, जो ई-मोबिलिटी के लिए जरूरी है और आने वाले समय में भी जरूरी रहेगा. भारतीय शहर मेट्रो रेल नेटवर्क में भारी निवेश कर रहे हैं और यह सही भी है. ब्राज़ील और चीन में, 50 फीसदी से अधिक शहरी आबादी के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा प्राप्त है. हालांकि, भारत में केवल 37 फीसदी शहरी निवासियों के पास ही पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन तक आसान पहुंच है.
अन्य देशों की सफलता को दोहराने के लिए भारत को इंटीग्रेटेड ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम को डेवलप करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो बसों, मेट्रो रेल और परिवहन के अन्य साधनों को कुशलतापूर्वक जोड़ती हों. पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन क अधिक एफिशिएंट, विश्वसनीय, आरामदायक, सुलभ और सुरक्षित बनाने में निवेश करना भी आयात पर हमारी निर्भरता को कम करते हुए नेट ज़ीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा. इसके अलावा, एक मजबूत पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम ट्रैफिक की भीड़ को कम करने, एनर्जी एफिशएंट को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने में भी मदद करेगी.
मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने में प्रगति
इस बात पर जोर दिया जा सकता है कि भारत ने प्रोडक्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी पहलों के माध्यम से रिन्यूएबल एनर्जी बढ़ावा देने और इसके उपकरणों के घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण प्रगति की है. PLI योजना का उद्देश्य घरेलू निर्माताओं को प्रोत्साहन देकर सौर पैनल, विंड टर्बाइन और बैटरी स्टोरेज सहित प्रमुख क्षेत्रों में भारत की मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं को बढ़ाना है. घरेलू क्षमताएं तैयार की जा रही हैं. अभी भारत 75 प्रतिशत लिथियम-आयन बैटरियां चीन से खरीदता है और पॉलीसिलिकॉन, इनगोट और वेफर जैसे प्रमुख कॉम्पोनेंट के लिए इसकी उत्पादन क्षमता जीरो है.