लोन भरोसे भारतीयों की जिंदगी, परिवारों पर 121 लाख करोड़ का कर्ज, GDP में 43% पहुंची हिस्सेदारी
भारतीयों के कर्ज लेने की संख्या में इजाफा होता जा रहा है. सबसे ज्यादा होम लोन लिया जा रहा है. शहरी इलाकों के मुकाबले पिछले कुछ समय से गांवों में कर्ज लेने का चलन ज्यादा बढ़ा है. इससे उपभोग कम होता जा रहा है, लोग खर्च के लिए भी कर्ज पर निर्भर हैं.
Household Debt: कोविड महामारी के बाद से माना जा रहा था कि लोगों के पास पैसा आने पर उनकी खर्च करने की क्षमता में इजाफा होगा, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हुआ. लोगों पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है, जिससे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में मांग कमजोर पड़ रही है. कंज्यूमर प्रोडक्ट कंपनियों ने 5% से भी कम वॉल्यूम ग्रोथ दर्ज की है, तीसरी तिमाही में यह और कम हो सकता है. इसके पीछे की एक बड़ी वजह हाल के वर्षों में घरेलू ऋण यानी डोमेस्टिक लोन में हुई तेज बढ़ोतरी है. हैरानी की बात यह है कि शहरों के मुकाबले गांवों में लोन लेने का चलन ज्यादा बढ़ा है.
भारतीय परिवारों पर बढ़ा कर्ज
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की दिसंबर की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2021 में जब कोरोना की दूसरी लहर चल रही थी, तब भारतीय परिवारों पर कर्ज का बोझ ₹77 लाख करोड़ का था. मार्च 2024 आते-आते यह बढ़कर ₹121 लाख करोड़ हो गया. GDP के हिसाब से भी, यह जून 2021 के 36.6% से बढ़कर जून 2024 तक 42.9% हो गया. यानी भारतीयों की आमदनी इतनी नहीं बढ़ी, लेकिन कर्ज बढ़ गया. ऐसे में लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसा नहीं बच रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक ब्याज भुगतान घरेलू फाइनेंस की स्थिति को बिगाड़ रहे हैं, इससे खर्च करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है.
दूसरे देशों के मुकाबले भारतीयों पर कर्ज ज्यादा
RBI ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दूसरे देशों के मुकाबले भारतीयों पर कर्ज ज्यादा है. खासतौर पर उभरते बाजारों जैसे पोलैंड, मेक्सिको और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में प्रति व्यक्ति आय ज्यादा है लेकिन उनका डोमेस्टिक लोन कम है. वहीं भारत में घरेलू कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है. इसकी वजह से लोग कम खर्च कर रहे हैं. इससे कंज्यूमर डिमांड भी घट रही है.
भारतीयों के कर्ज में इजाफे का GDP पर असर
साल | कर्ज का बोझ (ट्रिलियन रुपये में) | GDP में हिस्सेदारी (%) |
जून 2021 | 77 | 36.6 |
सितंबर 2021 | 79 | 36 |
दिसंबर 2021 | 83 | 36.2 |
मार्च 2022 | 86 | 36.5 |
जून 2022 | 89 | 35.8 |
सितंबर 2022 | 92 | 35.9 |
दिसंबर 2022 | 97 | 36.8 |
मार्च 2023 | 102 | 37.9 |
जून 2023 | 105 | 38.3 |
सितंबर 2023 | 111 | 39.3 |
दिसंबर 2023 | 116 | 40.2 |
मार्च 2024 | 121 | 41 |
जून 2024 | – | 42.9 |
होम लोन में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी
वक्त के साथ कर्ज की मांग में भौगोलिक बदलाव भी देखने को मिल रहा है. महानगरों के मुकाबले गांव-कस्बों में कर्ज की मांग बढ़ी है. सबसे ज्यादा कर्ज घर खरीदने के लिए लिया जा रहा है. यही वजह है कि मार्च 2024 तक होम लोन का आंकड़ा डोमेस्टिक लोन का 30% था. इसी तरह वाहन खरीदने के लिए व्हीकल लोन की हिस्सेदारी 10% है. हैरानी की बात यह है कि लोग उपभोग के लिए भी कर्ज ले रहे हैं, इसमें 5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. हालांकि व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए लोन, जिसमें स्व-सहायता समूहों को दिए गए लोन भी शामिल हैं इसका हिस्सा कम हुआ है.
रिपोर्ट में जताई गई थी चिंता
मोतीलाल ओसवाल ने पिछले साल एक रिपोर्ट में बताया था कि भारत में घरेलू ऋण कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं से ज्यादा है. लोग खर्च करने के लिए कर्ज ले रहे हैं. अगर उपभोग के ज्यादा लोन लिया जा रहा है तो इससे भविष्य के लिए चिंताएं बढ़ सकती हैं.
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होम लोन की ब्याज दरों में हुआ इजाफा
पिछले कुछ वर्षों में घरेलू कर्ज जिनमें व्यवसाय या कृषि को छोड़ दिया जाए तो मार्च 2019 के बाद से पर्सनल लोन पर औसत ब्याज दर लगभग 0.21 प्रतिशत कम हुई है. मगर होम लोन की ब्याज दरों में काफी इजाफा हुआ है. जून 2022 में, होम लोन की औसत ब्याज दर 7.73% प्रति वर्ष थी, जे मार्च 2023 में 9% से ऊपर चली गई. सितंबर 2024 में, लगभग 66% होम लोन 9% या उससे ऊपर की दर पर थे, जो जून 2022 में 21% थी. हाल की तिमाहियों में दरें थोड़ी कम हुई हैं. सितंबर 2024 में 8.98% ब्याज दर है, लेकिन EMIs अभी भी दो साल पहले से काफी ज्यादा हैं.
शहर के मुकाबले गांव में ज्यादा बढ़ी कर्ज की मांग
क्रेडिट ब्यूरो ट्रांसयूनियन CIBIL के डेटा के अनुसार रिटेल लोन की मांग शहरों के मुकाबले गांव में ज्यादा बढ़ी है. बैंकों और दूसरे लोन देने वाली कंपनियों से जुटाए आंकड़ों के अनुसार लोन के लिए आई क्वेरीज के मुताबिक जून 2024 तक शहरों में लोन को लेकर पूछताछ का रेशियो पिछले दो वर्षों की तुलना में 4 प्रतिशत कम हुआ है, जबकि अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों, जो जून 2024 में लोन को लेकर पूछताछ के मामले ज्यादा थे.