400 साल पहले के वो भारतीय बिजनेसमैन, जो आज भी अंबानी-अडानी पर भारी! जाने कितना बड़ा था बिजनेस

अंबानी-अडानी और टाटा से भी पहले भारत में ऐसे व्यापारी थे जिन्होंने देश के व्यापार को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. मसालों और जहाजों के मालिक मुल्ला अब्दुल गफूर और जौहरी शांतिदास झवेरी की दास्तान आपको इतिहास के अनजाने पन्नों में ले जाएगी.

शांतिदास झवेरी और शाहजहां Image Credit: Jainknowledge/Pictures From History/Universal Images Group via Getty Images

जब भी भारतीय व्यापार की बात होती है, अंबानी और अडानी जैसे नाम सबसे पहले ज़हन में आते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन आधुनिक उद्योगपतियों से सदियों पहले भी भारत व्यापार की दुनिया का सिरमौर था? यह कहानी है उन महान व्यापारियों की जिन्होंने अंग्रेज हो या मुगल सबसे डट कर मुकाबला किया. जिन्होंने अपनी सूझबूझ और मेहनत से न सिर्फ विशाल व्यापार साम्राज्य खड़ा किया बल्कि भारत को वैश्विक व्यापार मानचित्र पर अमिट स्थान दिलाया. 17वीं शताब्दी के ये दो नाम हैं. मुल्ला अब्दुल गफूर और शांतिदास झवेरी.

मुगलों के दौर के ‘स्पाइस किंग’: मुल्ला अब्दुल गफूर

16वीं 17वीं सदी का दौर था जब यूरोप मसालों और वस्त्रों का दीवाना था. भारत इस व्यापार का केंद्र था और मुल्ला अब्दुल गफूर जैसे व्यापारी इसके प्रमुख कर्ता-धर्ता थे. शताब्दी का आखिरी दशक था जब समुद्र व्यापार का बोलबाला भी हुआ करता था. अब्दुल गफूर के व्यावसायिक सूझबूझ का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 1690 के दशक में 17 जहाजों का एक बेड़ा तैयार किया. यह संख्या आज के भारतीय शिपिंग दिग्गजों के बेड़े से तुलना में भले ही छोटी लगे लेकिन उस दौर में यह असाधारण थी.

उन्होंने सिर्फ व्यापार ही नहीं किया बल्कि अपने प्रभाव से मुगल दरबार में भी एक खास जगह बनाई. उनका व्यापार पश्चिम एशिया तक फैला हुआ था और वह अपने समय के एक ग्लोबल ट्रेड आइकन बन गए थे.

लेकिन उनकी सफलता ने अंग्रेज, डच और फ्रेंच व्यापारियों को परेशान कर दिया था. इन यूरोपीय व्यापारियों ने अपने जहाजी बेड़ों और हथियारों के बल पर समुद्री व्यापार पर नियंत्रण पाने की कोशिश की. उन्होंने भारतीय व्यापारियों को अपने अधीन लाने की रणनीति अपनाई. मुल्ला अब्दुल गफूर ने उनसे डट के मुकाबला किया लेकिन यूरोपीय व्यापारियों की सैन्य ताकत के सामने टिक पाना मुश्किल था. धीरे-धीरे, यूरोपीय व्यापारी व्यापार पर हावी हो गए और भारतीय व्यापारी हाशिये पर चले गए.

शांतिदास झवेरी: बैंकिंग और बुलियन ट्रेड का उस्ताद

अगर मुल्ला अब्दुल गफूर समुद्र के बादशाह थे तो शांतिदास झवेरी जमीन पर वित्त और व्यापार के बादशाह. 17वीं सदी के पहले भाग में, शांतिदास ने अपनी शुरुआत बतौर जौहरी की थी. लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा यहीं खत्म नहीं हुई. वह बुलियन (धातु व्यापार) और सर्राफा (बैंकिंग) के उस्ताद बन गए. शांतिदास का सबसे अनूठा योगदान उनकी बैंकिंग सेवाएं थीं, जिनमें विदेशी सिक्कों की ढलाई और पुराने सिक्कों का विनिमय शामिल था. उन्होंने भारतीय बाजारों में हुंडी (क्रेडिट नोट) जैसे वित्तीय उपकरणों को लोकप्रिय बनाने में भी भूमिका निभाई. इससे व्यापारियों के लिए वित्तीय लेनदेन आसान हो गया और व्यापारिक मंडियों का तंत्र और मजबूत हुआ.

वह अहमदाबाद के पहले “नगर शेख” थे जो आज के मेयर के समान एक सम्मानजनक पद था. शांतिदास का प्रभाव मुगल दरबार तक फैला हुआ था और उनकी वित्तीय ताकत ने उन्हें व्यापारी वर्ग का एक प्रमुख चेहरा बनाया.

शांतिदास की पहचान उनकी उदारता और धार्मिक आस्था से भी थी. वह एक कट्टर जैन थे और उन्होंने अहमदाबाद के सरसपुर में 1625 में एक भव्य जैन मंदिर का निर्माण करवाया. लेकिन अब उनके प्रभाव को इस बात से आंका जा सकता है कि जब गुजरात के सूबेदार औरंगजेब ने उनके मंदिर को मस्जिद में बदलने का आदेश दिया तो शांतिदास ने शाहजहां तक अपनी नाराजगी पहुंचा दी. उनकी अपील पर शाहजहां ने न केवल मंदिर को वापस दिलवाया, बल्कि जैन धर्म के प्रति अपनी सहिष्णुता भी दिखाई.

मंडी और व्यापार का नेटवर्क

इन व्यापारियों की सफलता का एक बड़ा हिस्सा भारत की उस समय की व्यापारिक संस्कृति पर निर्भर था. भारतीय बाजार बड़े पैमाने पर सामान बेचने और कम मार्जिन पर मुनाफा कमाने का केंद्र थीं. इन मंडियों में व्यापारियों के लिए अलग-अलग स्तर के बिचौलिए, जैसे गोलदार मौजूद थे जो व्यापार को आसान बनाते थे. वित्तीय उपकरणों, जैसे कि हुंडी ने व्यापार को और भी आसान बना दिया.इन दोनों उद्योगपतियों का जिक्र लक्ष्मी सुब्रमणियन की किताब “India Before The Ambanis” में मिलता है.

इतिहास की झलक है किताब

आज जब भारत वैश्विक व्यापार में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहा है, तो मुल्ला अब्दुल गफूर और शांतिदास झवेरी जैसे व्यापारियों की कहानियां हमें यह याद दिलाती हैं कि भारत व्यापार और उद्यमिता का केंद्र रहा है. लक्ष्मी सुब्रमणियन की किताब “India Before The Ambanis” न केवल इन व्यापारियों की अनसुनी कहानियां उजागर करती है, बल्कि भारतीय व्यापार के गौरवशाली इतिहास को भी सामने लाती है.