कौन है Indira IVF का मालिक, जिसने खड़ा कर दिया मेगा बाजार, जानें क्यों होता है लाखों का खर्च

भारत में तेजी से बदलते हेल्थकेयर सेक्टर में एक बड़ा उछाल आने वाला है. नई तकनीक, सरकारी योजनाएं और बढ़ती जागरूकता के चलते यह क्षेत्र करोड़ों का कारोबार करने को तैयार है. आखिर क्या है इसकी बड़ी वजह? जानिए पूरी खबर

अजय मुर्डिया Image Credit: Money9 Live

बदलती जीवनशैली, बढ़ता तनाव और वक्त लेकर शादी करने की प्रवृत्ति के चलते भारत में बांझपन (Infertility) की समस्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) तकनीक ने संतान सुख से वंचित दंपतियों के लिए एक नई उम्मीद जगाई है. भारत में IVF सेवाओं के विस्तार में इंदिरा IVF का नाम अग्रणी रहा है. हाल ही में इंदिरा IVF पर बनी बॉलीवुड बायोपिक फिल्म ने इस सेक्मेंटर में इस संस्थान के योगदान को और भी ज्यादा चर्चा में ला दिया है. यह फिल्म अजय मुरडिया के जीवन पर आधारित है, जिन्होंने इंदिरा IVF की स्थापना वर्ष 2011 में की. लेकिन यह फिल्म अब कंपनी के गले की हड्डी बन गई है.

हाल ही में इंदिरा IVF ने अपने आईपीओ के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) को कागज सौंपे थे लेकिन फिल्म का मसला आने के बाद कंपनी को सेबी के साथ कुछ आपत्तियों का सामना करना पड़ा और अपने ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) को वापस लेना पड़ा. यह IPO साल का सबसे बड़ा हेल्थकेयर IPO बनने जा रहा था, लेकिन SEBI की शर्तों के कारण इसे फिलहाल रोक दिया गया है. हाल के वर्षों में IVF सेवाओं की मांग में जबरदस्त बढ़त देखी गई है, जिससे यह बाजार तेज गति से आगे बढ़ रहा है.

IVF क्या है और कैसे करता है काम?

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें महिला के अंडों (Eggs) को लैब में पुरुष के शुक्राणु (Sperm) से फर्टिलाइज किया जाता है. फर्टिलाइज अंडाणु (Embryo) को फिर गर्भाशय (Uterus) में ट्रांसप्लांट किया जाता है जिससे गर्भधारण की संभावना बढ़ती है. यह प्रक्रिया उन दंपतियों के लिए कारगर साबित होती है जो प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने में सक्षम नहीं होते.

भारत में IVF मार्केट की मौजूदा स्थिति

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के मुताबिक, देश में लगभग 10-15 फीसदी दंपति बांझपन की समस्या से जूझ रहे हैं. बढ़ती जागरूकता और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के चलते IVF सेवाओं का बाजार तेजी से विस्तार कर रहा है.

Custom market insights के रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का IVF बाजार 2025 से 2034 के बीच 16.23 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ेगा.

सोर्स-custommarketinsights.com

IVF बाजार को बढ़ावा देने वाले कारक

  1. स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार और IVF क्लीनिक्स की बढ़ती संख्या: भारत में स्वास्थ्य सुविधाएं तेजी से उन्नत हो रही हैं. विशेष रूप से IVF क्लीनिक्स और फर्टिलिटी सेंटर बड़ी संख्या में खुल रहे हैं. इससे न सिर्फ इस तकनीक की उपलब्धता बढ़ी है, बल्कि इसकी सफलता दर में भी इजाफा हुआ है.
  1. सरकारी योजनाएं और वित्तीय सहायता: भारत सरकार ने IVF उपचार को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं:
  1. शहरीकरण और जागरूकता में वृद्धि: शहरीकरण और शिक्षा के बढ़ते स्तर के साथ IVF के प्रति जागरूकता भी बढ़ रही है. पहले लोग बांझपन को सामाजिक वर्जना मानते थे, लेकिन अब मेडिकल साइंस में विश्वास बढ़ने के कारण अधिक लोग IVF तकनीक को अपना रहे हैं.

उत्तर भारत में IVF बाजार सबसे अधिक विकसित हो रहा है. इसकी वजह यहां की बढ़ती आबादी, उच्च स्तरीय मेडिकल सुविधाएं और IVF क्लीनिक्स की आसान उपलब्धता है. नोएडा, दिल्ली, चंडीगढ़ और लखनऊ जैसे शहरों में IVF सेवाओं की मांग सबसे अधिक है.

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भारत में IVF सेवाएं प्राप्त करने में एक प्रमुख बाधा इसकी अत्यधिक लागत है, जिससे बड़ी संख्या में लोग इस उपचार को नहीं करा पाते. एक IVF प्रोसिजर की कीमत आमतौर पर 1.5 लाख रुपये से 3 लाख रुपये के बीच होती है, जो विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है.