क्या ‘हल्दीराम’ और ‘हल्दीराम भुजियावाला’ एक हैं ? 99% नहीं जानते होंगे सही जवाब
मौजूदा समय में हल्दीराम को कौन नहीं जानता होगा. लेकिन क्या आपको पता है कि 'हल्दीराम' नाम के स्वामित्व को लेकर लंबे समय से परिवार के बीच लड़ाई चली है? आइए जानते हैं आखिर 'हल्दीराम' और 'हल्दीराम भुजियावाला' के बीच 34 साल पुरानी ये लड़ाई क्या है.
मौजूदा समय में हल्दीराम को तो सभी जानते हैं. इसके कचौड़ी से लेकर भुजिया तक के स्वाद से हम सभी परिचित हैं. आज भी हल्दीराम का नाम जब जुबां पर आता है तो मुंह में पानी आ ही जाता है. लेकिन आपके चेहरे के हाव-भाव को थोड़ा बदलते हुए एक अनोखी बात बताते हैं. दरअसल हल्दीराम के स्वामित्व को लेकर लंबे समय से परिवार के बीच लड़ाई चली है. इसकी वजह से कारोबार 4 इलाकों के आधार पर चलता है. साथ ही 90 के दशक में हल्दीराम नाम के इस्तेमाल को लेकर लंबी कानूनी लड़ाई भी चली. आइए जानते हैं कि वो कहानी क्या है और किसे क्या मिला…
कहां से शुरू हुई ‘हल्दीराम’ की कहानी?
कहानी की शुरुआत 1919 के बीकानेर में होती है. 11 साल का एक लड़का है जिसका नाम गंगा बिशन अग्रवाल. उनकी मां उन्हें प्यास से हल्दीराम के नाम से बुलाती थी. शहर में गंगा के पिता का भुजिया का व्यवसाय था. गंगा को पिता के व्यवसाय में दिलचस्पी आने लगी थी. धीरे-धीरे गंगा भुजिया के बिजनेस में तरह-तरह के प्रयोग करते रहे. उनमें से एक सबसे बड़ा बदलाव भुजिया को बनाने के तरीके में था. गंगा उसमें बेसन की जगह मोठ दाल का इस्तेमाल करते थे. गंगा के इस प्रयोग ने पिता के बिजनेस को काफी बढ़त दिलाई. समय गुजरता गया, धीरे-धीरे हल्दीराम का भुजिया बीकानेर में काफी पॉपुलर हो गया. काम बढ़ता चला गया, साल 1941 तक हल्दीराम की नमकीन का स्वाद बीकानेर के आसपास तक फैलने लगा था.
कोलकाता में खुला पहला स्टोर
अपने ब्रांड को लेकर बिशन अग्रवाल काफी स्पष्ट थे. वो चाहते थे कि उनका ब्रांड पूरे देश में फैल जाए. उसी कड़ी में पहला कदम कोलकाता में हुई एक शादी के जरिये बढ़ा था. दरअसल बिशन अग्रवाल कोलकाता में आयोजित एक शादी में गए थे. वो अपने साथ हल्दीराम का भुजिया रखते थे. वहां कुछ रिश्तेदारों ने भुजिया के स्वाद को चखा. लोगों को भुजिया काफी पसंद आए. यही देखते हुए बिशन अग्रवाल ने कोलकाता में अपना पहला दुकान खोलने का फैसला किया. हल्दीराम का एक ब्रांच कोलकाता में खुल गया. कोलकाता के बाद हल्दीराम का ब्रांच नागपुर और फिर दिल्ली में भी खुल गया.
कारोबार के साथ बढ़ता रहा विवाद
हल्दीराम का कारोबार काफी तेजी से देश में फैल रहा था. लेकिन परिवार के अंदर उसी तेजी से विवाद के स्वर भी बढ़ रहे थे. हल्दीराम के तीन बेटे थे. मूलचंद, सत्यनारायण और रामेश्वर लाल. इनमें से सत्यनारायण ने पिता के व्यवसाय से अलग होने का फैसला किया. सत्यनारायण अलग होकर हल्दीराम एंड संस की शुरुआत की. उसके बाद हल्दीराम के पोते ने नागपुर ब्रांच का दायरा बढ़ा दिया. बढ़ते कारोबार के बाद हल्दीराम को इलाकों के आधार पर बांट दिया गया.
किसको किसका हिस्सा मिला?
1990 के दशक की शुरुआत में अग्रवाल के भाइयों- गंगा बिशन अग्रवाल के पोते ने हल्दीराम का बंटवारा कर दिया. इसका मकसद बिजनेस को अलग-अलग चलाना था. मधुसूदन और मनोहर लाल को उत्तर भारत का बिजनेस मिला. शिव किशन को दक्षिण और पश्चिम भारत का कारोबार मिला. प्रभु शंकर और अशोक को पूर्वी भारत की जिम्मेदारी मिली.
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नाम को लेकर छिड़ा विवाद?
लेकिन हल्दीराम नाम को लेकर असली कानूनी लड़ाई और भाइयों और भतीजों के बीच चली. इसमें भतीजे प्रभुजी भी हल्दीराम नाम का इस्तेमाल भी करना चाह रहे थे. लेकिन 90 के दशक में मामला कोर्ट में चला गया. और 2010 में कोर्ट ने फैसला दिया कि प्रभुजी और उनके भाई हल्दीराम नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकते. जिसके बाद उन्होंने अपना नामउसके बाद ही प्रभुजी ने ब्रांड का नाम बदल कर ‘प्रभुजी:फ्रॉम द हाउस ऑफ हल्दीराम’ कर दिया. इसके बाद से प्रभु शंकर जो प्रभुजी ब्रांड से कारोबार करते हैं, वह हल्दीराम का नाम यूज नहीं कर सकते. बल्कि बाकी भाई अलग-अलग क्षेत्र में हल्दीराम नाम का इस्तेमाल कर बिजनेस चला रहे हैं.