कभी थी देश की नंबर 1 एयरलाइन, अब टेबल-कुर्सी से लेकर प्लेन तक होगा नीलाम
जेट एयरवेज को सुप्रीम कोर्ट की ओर से बड़ा झटका लगा है. अदालत ने कंपनी के लिक्विडेशन का आदेश दे दिया है. यानी अब एयरलाइन वापस से रिवाइव नहीं हो सकती है. लेकिन क्या आप जानते हैं जेट एयरवेज एक समय पर भारत के बड़े एयरलाइंस में से एक थी. जानें कंपनी की पूरी यात्रा.
जेट एयरवेज (Jet Airways) को सुप्रीम कोर्ट की ओर से बड़ा झटका लगा है. अदालत ने जेट एयरवेज के लिक्विडेशन का आदेश दे दिया है. इसका मतलब है कि एयरलाइन की फिर से रिवाइव होने की संभावना अब पूरी तरह से समाप्त हो गई है. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि जेट एयरवेज की सभी संपत्तियों को बेचा जाएगा. कोर्ट के आदेश के अनुसार उन पैसों का इस्तेमाल कंपनी के कर्ज को चुकाने में किया जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज नीलामी के कगार पर पहुंचा जेट एयरवेज एक समय में भारत के बड़े एयरलाइन्स में से एक था. लेकिन जेट एयरवेज के मालिक, नरेश गोयल (Naresh Goyal) ने कुछ ऐसे फैसले लिए जिससे कंपनी की हालत लगातार बुरी होती गई. आइए जानते हैं नरेश गोयल और जेट एयरवेज की कहानी.
बिजनेस में कब रखा कदम?
साल 1967 की बात है. गोयल ने अपने मामा सेठ चरण दास की ट्रैवल एजेंसी, ईस्ट वेस्ट एजेंसी में बतौर कैशियर काम करना शुरू किया. 300 रुपये की सैलरी के साथ गोयल ने अपने व्यावसायिक सफर की शुरुआत की. ग्रेजुएशन के बाद गोयल लेबनानी इंटरनेशनल एयरलाइंस के लिए जीएसए के साथ ट्रैवल बिजनेस में शामिल हो गए. समय बीतता गया, 1967 से 1974 के दौरान गोयल कई विदेशी एयरलाइंस के साथ जुड़कर ट्रैवल बिजनेस के बारे में कई बारीकियों को सीखा-समझा. इराकी एयरवेज से लेकर रॉयल जॉर्डनियन एयरलाइन्स तक, गोयल ने तमाम एयरलाइन्स के लिए तरह-तरह के पद को संभाला और अनुभव जुटाया. 1974 में अपनी मां से 55,000 रुपये लेकर गोयल ने जेट एयर नाम की एजेंसी स्थापित की. लेकिन सफर अभी लंबा था.
जेट एयरवेज की हुई शुरुआत
साल 1993, गोयल ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के भारतीय अर्थव्यवस्था को खोलने और भारत सरकार के ओपन स्काईज नीति की घोषणा का लाभ उठाते हुए घरेलू क्षेत्रों पर शेड्यूल हवाई सेवाओं के संचालन के लिए जेट एयरवेज की स्थापना की. जेट एयरवेज ने 5 मई 1993 को आधिकारिक रूप से अपना परिचालन शुरू किया. कुछ ही समय में शीर्ष श्रेणी की अंतरराष्ट्रीय सेवाएं प्रदान करते हुए भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन बन गई. 2005 में कंपनी ने इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO) लेकर आई. अभी तक चीजें बिल्कुल ठीक चल रही थी.
कहां से बढ़ने लगी मुश्किलें?
समय के साथ गोयल की चाह भी बढ़ती गई. इंटरनेशनल एयरवेज के मामले में खुद को एकमात्र कंपनी बनाने के उद्देश्य ने गोयल ने 2007 में एयर सहारा को 1,450 करोड़ रुपये में खरीद लिया. गोयल ने किंगफिशर एयरलाइन्स और दूसरे एयर डेक्कन, इंडिगो और स्पाइसजेट को टक्कर देने के लिए एयर सहारा को खरीदने का फैसला लिया था. उस समय गोयल के इस फैसले को बड़ी गलती के रूप में देखा गया था. उसके बाद से ही जेट एयरवेज की मुश्किलें एक के बाद एक बढ़ने लगी थी. फिर आता है साल 2011-12 का. इस दौरान जेट को पहली बार काफी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा था. एयरवेज की हालत इतनी खराब हो गई कि काफी मुश्किलों के बाद गोयल को 24 फीसदी हिस्सेदारी 379 मिलियन डॉलर में बेचनी पड़ी थी. लेकिन जेट एयरवेज का ये अंत नहीं था.
स्थिति सुधरी लेकिन कितने समय के लिए?
कुछ समय के बाद कंपनी ने अपनी स्थिति को सुधारने के लिए कई तरह के बदलाव किए. ब्रांडिंग में सुधार किया गया, लागत से संबंधित विसंगतियों की पहचान किया गया. गोयल को जल्द ही फिर से कार्यभार मिल गया. वित्त वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही में जेट एयरवेज को 1036 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था. जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में कंपनी को 602 करोड़ रुपये का लाभ हुआ था. इसके बाद से ही ऑडिट कंपनियों ने जेट के परिचालन जारी रखने को लेकर शंका जताना शुरू किया.
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बैंकों ने भी नहीं दिया कर्ज!
2019 में कंपनी ने 100 हवाई जहाजों का परिचालन रोक दिया. फिर अप्रैल 2019 में कंपनी ने अपनी सारी उड़ानों को रोक दिया. उसके कुछ साल बाद मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी ने नरेश गोयल को गिरफ्तार भी किया था. कंपनी के पास कैश खत्म हो चुका था. इससे इतर कंपनी में गोयल की हिस्सेदारी भी 50.1 फीसदी से घटकर आधी हो गई थी. इसका लाभ कर्जदाताओं को मिला, उनके पास जेट की आधी हिस्सेदारी पहुंच गई. कंपनी ने बैंकों से और 983 करोड़ रुपये का कर्ज मांगा लेकिन बैंकों ने बगैर किसी गारंटी के लोन देने से मना कर दिया. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, टाटा जेट में निवेश को तैयार थी लेकिन गोयल ने इस सौदे को ठुकरा दिया था. कंपनी की हालत इतनी खराब हो गई थी कि जेट अपने कर्मचारियों को सैलरी तक नहीं दे पा रही थी.
कैसा रहा शुरुआती जीवन?
बात 1949 के जुलाई महीने की है. पंजाब के एक छोटे से शहर संगरूर के ज्वेलरी डीलर के घर नरेश गोयल का जन्म हुआ. बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी. बाद में गोयल ने गवर्नमेंट हाई स्कूल में छठी कक्षा तक पढ़ाई की. उनका परिवार कई आर्थिक परेशानियों से गुजर रहा है. मुश्किलें इतनी बढ़ी कि उनका घर तक नीलाम तक करना पड़ गया. बाद में वह अपने रिश्तेदार के साथ रहने लगे थे. गोयल ने पटियाला के गवर्नमेंट बिक्रम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की.