ओबेरॉय परिवार में विरासत की जंग, 49000 करोड़ के लिए लड़ीं दो बहनें
दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे ओबेरॉय परिवार के विरासत विवाद ने हॉस्पिटिलिटी सेक्टर के इस प्रतिष्ठित साम्राज्य की परतों को खोल दिया है. ओबेरॉय समूह की संपत्ति, जिसमें होटल, रियल एस्टेट और विशाल शेयरहोल्डिंग शामिल है अब कई लोगों के लिए कानूनी लड़ाई का मैदान बन गई है..
ओबेरॉय होटल (Oberoi Hotel) का नाम सुनते ही लोगों के सामने सुपर लग्जरी होटल, सफलता और ऐसो आराम में बीत रही इनके मालिकों की जिंदगी की तस्वीर सामने आती थी. लेकिन बीते कुछ वक्त से यह तस्वीर बिल्कुल बदल गई है. ओबेरॉय फैमिली में खुशियों की जगह घरेलू कलह ने ले ली है. पिता के मौत के बाद परिवार की यह बड़ी सफलता दो बहनों के बीच दीवार का कारण बन गई हैं.
ओबेरॉय होटल ग्रुप के मालिक पृथ्वी राज सिंह ओबरॉय (PRS) की नवंबर 2023 में मौत हो गई. उद्योगपति अपने पीछे 49000 करोड़ (5.9 बिलियन डॉलर) से ज्यादा का साम्राज्य छोड़ कर गए. और अब इस दौलत को लेकर दो बहनों में बगावत छिड़ चुकी है, मामला इतना आगे बढ़ गया है कि विरासत की ये लड़ाई कानूनी झगड़े में तब्दील हो गई है.
कहां से शुरू हुआ विरासत का विवाद?
इस संघर्ष का केंद्रबिंदु पीआरएस ओबेरॉय की दूसरी शादी से जन्मी उनकी बेटी अनास्तासिया ओबेरॉय (Anastasia Oberoi) हैं. अनास्तासिया अपने सौतेली बहन नताशा, सौतेले भाई विक्रमजीत ओबरॉय और चचेरे भाई अर्जुन ओबेरॉय के बीच ओबेरॉय ग्रुप की प्रमुख कंपनी EIH लिमिटेड में महत्वपूर्ण शेयरों समेत परिसंपत्तियों के बंटवारें का विरोध कर रही हैं.
क्या है विवाद की जड़?
विवाद की जड़ में दो वसीयतें हैं – पहली, 1992 की जो अनास्तासिया के सौतेले भाई विक्रमजीत, सौतेली बहन नताशा और चचेरे भाई अर्जुन ओबेरॉय को मुख्य उत्तराधिकारी बनाती है. इस वसीयत में इनके लिए ट्रस्ट में शेयर और अन्य संपत्तियां रखी गई हैं. दूसरी ओर, अनास्तासिया 2021 की वसीयत है. 27 अगस्त 2022 की तारीख वाले कोडिसिल से इस विवाद ने और जड़ पकड़ लिया है. अनास्तासिया का दावा है कि कोडिसिल वसीयत एक कानूनी संसोधन है जो उनके पिता की अंतिम इच्छाओं को दर्शाती है. कोडिसिल, वसीयत में किया गया एक संशोधन है जो बिना पूरी वसीयत दोबारा लिखे संपत्ति के वितरण में बदलाव की इजाजत देता है.
किसकी वसीयत हो सर्वोपरि?
विक्रमजीत, नताशा और अर्जुन ने 1992 की वसीयत पर जोर दिया है जिसमें दावा किया गया है कि पीआरएस ओबेरॉय ने अपनी संपत्तियां उनके नाम पर ट्रस्ट में रखी थीं. अनास्तासिया का कहना है कि बाद की वसीयत और कोडिसिल इस संपत्ति के बंटवारे के लिए ज्यादा प्रासंगिक हैं. 2021 की वसीयत के मुताबिक, अनास्तासिया को ओबेरॉय ग्रुप में बड़ी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए और उसके साथ कोडिसिल को कानूनी रूप से वैध माना जाना चाहिए.
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दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला
सितंबर में हुई सुनवाई में दिल्ली हाईकोर्ट ने अनास्तासिया के पक्ष में एक अंतरिम आदेश जारी किया. इस फैसले में ओबेरॉय ग्रुप की किसी भी संपत्ति के ट्रांसफर पर रोक लगा दी गई. कोर्ट ने मामले के समाधान तक परिवार की संपत्तियों और शेयरों को स्थिर बनाए रखने का आदेश दिया है.
वहीं हाल में अनास्तासिया ओबेरॉय ने दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल करके एनुअल जनरल मीटिंग (AGM) पर रोक लगाने की भी मांग की. उनका शक है कि कंपनी के मीटिंग में उनके खिलाफ निर्णय लिया जा सकता है. जबकि कंपनी की ओर से पेश हुए वकील मुकुल रोहतगी ने उनके अर्जी को बेबुनियाद करार दिया है. उन्होंने कंपनी का पक्ष रखते हुए कहा कि अनास्तासिया ओबेरॉय को वापस कंपनी के बोर्ड में शामिल करने और डायरेक्टर बनाने का आश्वासन दिया जा चुका है. लेकिन अनास्तासिया ने इस बात का जिक्र अपने याचिका में नहीं किया है.
अनास्तासिया ओबेरॉय और नताशा के बीच टकरार
नताशा ओबेरॉय भी इस विरासत में अपनी प्रमुख भूमिका रखती हैं. वह ओबेरॉय समूह की कंपनियों में डायरेक्टर के पद पर काम कर रही हैं और हॉस्पिटैलिटी से वाइन व्यवसाय तक का सफर तय कर चुकी हैं. 2002 में उन्होंने “चिंकारा वाइन” नामक ब्रांड शुरू किया, जो ऑस्ट्रेलियाई अंगूर से बनी बेहतरीन वाइन को भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई बाजारों में निर्यात करती है.
अनास्तासिया ओबेरॉय के पास भी कम दौलत नहीं है. वह पांच कंपनियों में डायरेक्टर हैं. तमाम रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनके पास उनके अधीन ओबेरॉय होटल्स प्राइवेट लिमिटेड, ओबेरॉय होल्डिंग्स, ओबेरॉय प्रॉपर्टीज, ओबेरॉय बिल्डिंग्स और ओबेरॉय इन्वेस्टमेंट्स जैसी कई कंपनियां हैं.