इकोनॉमिक सर्वे में उठा सवाल, कंपनियों का मुनाफा 15 साल के टॉप पर, फिर सैलरी देने में कंजूसी क्यों?

Economic survey 2025 में भारतीय कंपनियों की कमाई और कंपनियों की तरफ से कर्मचारियों की दी जाने वाली पगार में बड़े फासले को लेकर सवाल उठाया गया है. आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि कंपनियों की कमाई 15 साल के टॉप पर है, लेकिन फिर भी सैलरी देने में कंजूसी की जा रही है.

आर्थिक समीक्षा के मुताबिक कर्मचारियों का वेतन नहीं बढ़ने से मंदी आ सकती है. Image Credit: freepik

Economic survey में इंडिया इंक की कमाई (कॉर्पोरेट प्रॉफिट) और प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी के बीच आ रहे फासले पर चिंता जताई गई है. आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि कंपनियों की कमाई डेढ़ दशक के शीर्ष पर है. लेकिन, इस अनुपात में कर्मचारियों की दी जाने वाली पगार में बढ़ोतरी नहीं हुई है. इससे यह बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर कंपनियां मोटा मुनाफा कमाने के बाद भी सैलरी देने में कंजूसी क्यों कर रही हैं.

आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में कहा गया है कि बढ़ते कॉरपोरेट मुनाफे की तुलना में कर्मचारियों की सैलरी में बढ़ोतरी नहीं होने से जो आय की असमानता पनप रही है, वह चिंताजनक है. इसका देश के आर्थिक विकास और उपभोक्ता मांग पर बुरा असर पड़ सकता है. सर्वेक्षण में बताया गया है कि कॉरपोरेट मुनाफा 5 साल के शीर्ष पर है, लेकिन यह कर्मचारियों की सैलरी रिफ्लैक्ट नहीं हो रहा है.

क्या बोले नागेश्वरन

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ से आर्थिक समीक्षा पेश किए जाने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, कॉर्पोरेट मुनाफे में वेतन हिस्सेदारी पर ध्यान देना जरूरी है. क्योंकि कर्मचारियों और कंपनियों के बीच आय वितरण में विसंगती उत्पादकता, प्रतिस्पर्धात्मकता और सतत विकास को प्रभावित कर सकता है.

जीडीपी के 5 फीसदी बराबर हुआ प्रॉफिट

आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि फाइनेंस, एनर्जी और ऑटोमोबाइल सेक्टर में मजबूत वृद्धि की वजह से वित्त वर्ष 2024 में कॉर्पोरेट प्रॉफिट 15 साल के शीर्ष पर पहुंच गया है. निफ्टी 500 कंपनियों का प्रॉफिट 2023 में जीडीपी के 2.1 फीसदी के बराबर था, जो 2024 में बढ़कर 4.8 फीसदी हो गया है. वित्त वर्ष 2008 के बाद यह सबसे अधिक है. इनमें भी 59 सबसे बड़ी कंपनियों ने अपने सेक्टर की छोटी कंपनियों की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है.

वर्कफोर्स घटाने पर जोर

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि कंपनियों के मुनाफे में भले ही बढ़ोतरी हुई है, लेकिन कंपनियों की तरफ से वेतन में होने वाले खर्च में कमी आई है. वित्त वर्ष 24 में कॉर्पोरेट मुनाफा 22.3 फीसदी बढ़ा, लेकिन इस दौरान रोजगार में 1.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. वहीं, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के विश्लेषण से पता चलता है कि 4,000 सूचीबद्ध कंपनियों के कर्मचारियों पर खर्च में 13 फीसदी की वृद्धि हुई, वित्त वर्ष 23 में 17 फीसदी रहा. इससे साफ हो जाता है कि कंपनियों का जोर वर्कफोर्स की लागत घटाने पर है.

सैलरी ग्रोथ रुकने से मंदी का खतरा

आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि पिछले चार वर्षों में भारतीय कंपनियों की तरफ से 22 फीसदी का स्थिर ईबीआईटीडीए मार्जिन हासिल किया गया है. लेकिन, इस दौरान वेतन वृद्धि में कमी आई है. यह असमान वृद्धि दर गंभीर चिंता का विषय है. इसके साथ ही आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि GVA में लेबर शेयर में मामूली वृद्धि देखी गई है. कंपनियों के प्रॉफिट में बढ़ोतरी के अनुपात में वेतन वृद्धि नहीं होने से मांग में कमी आने से अर्थव्यवस्था में मंदी आने का जोखिम है.आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि देश के सतत आर्थिक विकास के लिए रोजगार और कर्मचारियों की आय को बढ़ावा देना जरूरी है.

जापान से सीखना होगा

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान में औद्योगिकीकरण की मिसाल देते हुए सर्वेक्षण में कहा गया है कि लॉन्ग टर्म स्टैबिलिटी के लिए कैपिटल और लेबर मार्केट में इनकम का उचित वितरण जरूरी है. इसके लिए जापान से सबक लिया जा सकता है. “जापानी कामगारों, उपभोक्ताऔं और सेवानिवृत्त लोगों ने वस्तुओं और सेवाओं के लिए ज्यादा भुगतान किया. इस तरह पश्चिमी देशों के समकक्षों की तुलना में जीडीपी का कम हिस्सा अपने घर लेकर गए. इस मॉडल में क्रय शक्ति को घरों के बजाय व्यवसायों में ट्रांसफर किया गया. इससे औद्योगिक विकास को सब्सिडी मिली.”