रतन टाटा की नैनो की कहानी, स्कूटर पर मां-बाप के बीच बैठे बच्चे को देख आया आइडिया और बना डाली कार

टाटा इंडिका भारत की पहली स्वदेशी रूप से डेवलप पैसेंजर कार थी. यह टाटा मोटर्स के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी. फिर रतन टाटा ने लखटकिया कार नैनो को बनाने का सपना देखा.

रतन टाटा को कैसे आया था नैनो कार बनाने का आइडिया. Image Credit: Twitter Ratan Tata

भारत के सबसे बड़े बिजनेस समूहों में से एक टाटा ग्रुप के 86 वर्षीय मानद चेयरमैन रतन टाटा ने बुधवार को मुंबई में अपनी अंतिम सांस ली. रतन टाटा अपनी व्यावसायिक सूझबूझ, दूरदर्शिता और मजबूत कार्य नीति के लिए जाने जाते थे. रतन टाटा ने टाटा इंडिका को लॉन्च कर इतिहास रच दिया था. टाटा इंडिका भारत की पहली स्वदेशी रूप से डेवलप पैसेंजर कार थी. यह टाटा मोटर्स के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी. फिर रतन टाटा ने लखटकिया कार नैनो को बनाने का सपना देखा. खास बात यह कि नैनो का एक रफ डिजाइन उन्होंने खुद ही बनाया था. कुछ साल पहले इंस्टाग्राम पर एक फोटो शेयर कर नैनो के बनने के पीछे की कहानी बताई थी.

ऐसे आया था नैनो कार का आइडिया

रतन टाटा ने लिखा था कि भारतीय परिवारों के लिए सड़क यात्रा को सुरक्षित बनाने की उनकी इच्छा ने उन्हें टाटा नैनो बनाने के लिए प्रेरित किया. मुझे वास्तव में तब प्रेरणा मिली और इस तरह के वाहन बनाने की इच्छा जागृत हुई, जब मैंने देखा कि भारतीय परिवार स्कूटर पर सवार हैं. जहां कहीं भी जाना हो शायद बच्चा मां और पिता के बीच बैठा हुआ है. अक्सर फिसलन भरी सड़कों पर भी इस तरह से लोग स्कूटर से सफर करते हुए नजर आते थे.

डूडल से निकल गई कार

उन्होंने आगे लिखा कि स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर में होने का एक फायदा यह है कि इसने मुझे खाली समय में डूडल बनाना सिखाया. पहले हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि दो पहिया वाहनों को कैसे सुरक्षित बनाया जाए, लेकिन डूडल चार पहियों वाले बन गए, जिसमें कोई खिड़कियां नहीं, कोई दरवाजे नहीं, बस एक साधारण ड्यून बग्गी. लेकिन मैंने आखिरकार फैसला किया कि इसे कार होना चाहिए. नैनो, हमेशा हमारे सभी लोगों के लिए थी.

वादा तो वादा ही होता है

नैनो को जनवरी 2008 में ऑटो एक्सपो में आम आदमी की कार के रूप में पेश किया गया था. हालांकि, यह कार बाजार में कुछ ज्यादा कमाल नहीं कर पाई. कार को मार्च 2009 में बाजार में उतारा गया था, जिसकी शुरुआती कीमत लगभग एक लाख रुपये थी. भले ही लागत में वृद्धि हुई हो, रतन टाटा ने जोर देकर कहा था कि ‘वादा तो वादा ही होता है’.