Sebi का अहम फैसला, 7 एग्री कॉमोडिटीज की फ्यूचर्स ट्रेडिंग पर लगी पाबंदी बढ़ाई
मार्केट रेगुलेटर सेबी ने 7 एग्री कमोडिटीज पर लगे बैन को अगले साल तक बढ़ा दिया है. यह निर्णय महंगाई को कम करने के लिए लिया गया है. सरकार पहले भी इन पर प्रतिबंध लगा चुकी थी.
खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों को कम करने और जरूरी वस्तुओं की पर्याप्त आपूर्ति बनाए रखने के मकसद से भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (Sebi) ने अहम फैसला लिया है. मार्केट रेगुलेटर सेबी ने 7 एग्री कमोडिटीज की फ्यूचर्स ट्रेडिंग पर लगे बैन को जनवरी 2025 तक बढ़ा दिया है. इससे पहले यह बैन दिसंबर 2021 में लगाया गया था, जिसे दिसंबर 2022 में एक और साल के लिए बढ़ा दिया गया था.
सेबी की ओर से जिन सात कमोडिटीज पर प्रतिबंध लगाया है उनमें गेहूं, मूंग, चना, सरसों, सोयाबीन और इसके डेरिवेटिव, धान (गैर-बासमती) और कच्चा पाम तेल शामिल है. सरकार का मकसद इसके जरिए महंगाई के दबाव को कम करना और बाजार में स्थिरता कायम करना है. हालांकि, सेबी ने प्रतिबंध के स्पष्ट कारण का खुलासा नहीं किया है. यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब भारत जलवायु चुनौतियों और दूसरे खाद्य पदार्थों की वैश्विक मांग में वृद्धि के चलते कृषि उत्पादन में उतार-चढ़ाव से जूझ रहा है.
सस्पेंशन खत्म होने से एक दिन पहले लिया फैसला
जिन 7 एग्री कमोडिटीज पर बैन लगाया गया है, उनके फ्यूचर्स ट्रेडिंग का सस्पेंशन 20 दिसंबर 2024 को खत्म होने वाला था, लेकिन समयसीमा के खत्म होने से एक दिन पहले ही Sebi ने प्रतिबंध को आगे बढ़ाने का फैसला लिया. इस बार सेबी ने कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग पर बैन को एक महीने से ज्यादा के लिए बढ़ाया है.
पहले भी लग चुका है बैन
सेबी ने इससे पहले दिसंबर 2021 में गेहूं, सोयाबीन, क्रूड पाम ऑयल, धान और मूंग जैसी पांच कमोडिटीज की फ्यूचर्स ट्रेडिंग को एक साल के लिए सस्पेंड कर दिया था. वहीं, 17 अगस्त 2021 को चना और 8 अक्टूबर 2021 में सरसों व सरसों तेल के फ्यूचर ट्रेडिंग पर रोक लगाई थी. तब से यह बैन हर बार बढ़ता जा रहा है.
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बैन से नहीं पड़ा रिटेल प्राइस पर असर
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (BIMTECH), IIT-खड़गपुर में विनोद गुप्ता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट और IIT-बॉम्बे में शैलेश जे मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के शिक्षाविदों की ओर से किए स्टडी का हवाला दिया गया. जिसमें बताया गया कि कैसे इन एग्री कमोडिटीज पर बैन के बावजूद इनके रिटेल प्राइस में कुछ फर्क नहीं पड़ा. वहीं इसके विपरीत, इनमें से कई वस्तुओं में अस्थिरता काफी बढ़ गई. खुदरा कीमतें फ्यूचर्स ट्रेडिंग की तुलना में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मांग-आपूर्ति गतिशीलता से ज्यादा प्रभावित थीं.